भारत के गांवों से लेकर शहरों तक गाय सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक पशु है. उसके दूध से लेकर गोबर तक की उपयोगिता है. भारत में गाय की 30 से ज्यादा देशी प्रजतियां (Breeds) पायी जाती हैं. गाय की नस्ल को तीन भागों में बांटा गया है जैसे दुधारू नस्ल (Milch breed), भारवाहक नस्ल और दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल. आज हम उत्तरी भारत में पाई जाने वाली देसी गायों की प्रमुख प्रमुख प्रजातियों के बारे में जानकारी देंगे-
साहीवाल नस्ल की पहचान (Identification of Sahiwal breed)
साहीवाल दुधारू गाय की उन्नत नस्ल है. इस गाय की नस्ल का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा शरीर मध्यम आकार का होता है. गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है. ये लाल और गहरे भूरे रंग की होती है तथा कभी-कभी इनके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी पाये जाते हैं. इस नस्ल के वयस्क बैल का औसतन वजन 450 से 500 किलो और मादा गाय का वजन 300-400 किलो तक हो सकता है. बैल के पीठ पर बड़ा कूबड़ जिसकी ऊंचाई 136 सेमी तथा मादा कि ऊंचाई 120 सेमी के लगभग होती है.
साहीवाल गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Sahiwal cows)
साहीवाल को भारत के सर्वश्रेष्ठ दुधारू पशुओं में से एक माना जाता है. वैज्ञानिक ब्रीडिंग के ज़रिए देसी गायों की नस्ल सुधार और अनुसंधान करनाल में राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) द्वारा किया जा रहा है. पंजाब और राजस्थान में साहीवाल गायों का बड़ा झुंड कुछ गौशाला में पाला जाता है. इसके इसका उदगम स्थल पाकिस्तान पंजाब के मोंटगोमेरी जिले और रावी नदी (Ravi river) के आसपास का है. सबसे ज्यादा दूध देने वाली यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में पायी जाती है. पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाज़िलका और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल (Pure Sahiwal) गायों के झुंड देखने को मिलते हैं.
साहीवाल नस्ल की क्षमता (Sahiwal breed ability)
यह गाय एक ब्यांत में 10 महीने तक दूध देती है और दूधकाल के दौरान ये गायें औसतन 2270 लीटर दूध देती हैं. यह 10 से 16 लीटर प्रतिदिन दूध देने की क्षमता रखती है. इनके दूध में अन्य गायों के मुकाबले ज़्यादा प्रोटीन और वसा मौजूद होता है. इस नस्ल के बैल सुस्त और काम में धीमे होते हैं. प्रथम प्रजनन की अवस्था जन्म के 32-36 महीने में आती है. इसकी प्रजनन अवधि (Reproduction period) में अंतराल 15 महीने का होता है.
थारपारकर नस्ल की पहचान (Identification of Tharparkar breed)
इसका शरीर मध्यम आकार का तथा रंग हल्का सफ़ेद होता है. शरीर गठीला और जोड़ मजबूत होते है. चेहरा सामान्य रूप से लम्बा, सिर चौड़ा और उभरा हुआ होता है. इनके सींग मध्यम आकार, किनारे तीखे होते हैं.
थारपारकर गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Tharparkar cows)
इस नस्ल का उदगम स्थान पश्चिम राजस्थान और सरहद पार सिन्ध पाकिस्तान है. भारत में यह गाय की शुद्ध नस्ल मुख्यत बाड़मेर, जैसलमर, जोधपुर, कच्छ क्षेत्रों में पाई जाती है. इसे ग्रे सिंधी, वाइट सिंधी और थारी के नाम से भी जाना जाता है. केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) के कृषि विज्ञान केंद्र, जोधपुर में थारपारकर गायों की शुद्ध नस्ल पाली जा रही है.
थारपारकर नस्ल की क्षमता (Tharparkar breed ability)
यह नस्ल दुधारू होने के साथ-साथ इनके बैल खेती व अन्य कार्य में इस्तेमाल किए जाते हैं. अतः इस नस्ल को दोहरे उद्देश्य (Dual purpose) वाली नस्ल भी कहा जाता है. यह गाय प्रति ब्यांत में 1400 लीटर दूध देती है. इनके दूध में पांच फ़ीसदी वसा पायी जाती है. इस नस्ल की गाय प्रतिदिन दस लीटर तक दूध देती हैं. इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Resistance capacity) बहुत अच्छी होती है.
रेड सिंधी नस्ल की पहचान (Identification of Red Sindhi breed)
यह नस्ल मध्यम ऊंचाई, मध्यम आकार और गहरे लाल रंग का शरीर होता है. सिर चौड़ा, छोटे और इसके सींग जड़ों के पास से काफी मोटे होते हैं, लंबी पूंछ, छोटी टांगे और ढीली त्वचा होती है. शरीर की तुलना में इसके कुबड बड़े आकर के होते हैं.
रेड सिंधी गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Red Sindhi cows)
इसका मुख्य स्थान पाकिस्तान का सिंध प्रान्त माना जाता है. भारत में यह नस्ल पंजाब और राजस्थान में पाई जाती है.
रेड सिंधी नस्ल की क्षमता (Red Sindhi breed ability)
यह नस्ल विभिन्न मौसमों को सहन कर सकती है. इस नस्ल को बीमारियां कम लगती हैं. लाल रंग की सिंधी गाय की गणना सर्वाधिक दूध देने वाली गायों में है. यह गाय प्रति ब्यांत (lactation period) में औसतन 1600 लीटर दूध देती है. दूध में 5.0 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है. इस नस्ल का बैल खेतों में अच्छे से काम करता है. प्रौढ़ बैल का औसतन भार 4.5 क्विंटल और गाय का भार 3.15 क्विंटल होता है. इसका वजन औसतन 350 किलोग्राम तक होता है.
नागौरी नस्ल की पहचान (Identification of Naugori breed)
इसकी खाल का रंग सफेद होता है. इसका मुंह लंबा, माथा चपटा और तंग, कान लंबे और लटके हुए, सींग मध्यम आकार के, आंखे छोटी, शरीर का अगला हिस्सा पूरी तरह विकसित और कमर सीधी होती है.
नागौरी गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Naugori cows)
नागौरी प्रजाति के गोवंश का उदगम स्थान राजस्थान का नागौर जिला है. इस नस्ल का मूल स्थान (Origin) राजस्थान है. इनका प्राप्ति स्थान राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर और नागौर जिले हैं.
नागौरी नस्ल की क्षमता (Naugori breed ability)
ये ज्यादा दुधारू नहीं होती है. यह एक ब्यांत में औसतन 479-905 किलो दूध पैदा करती है. इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता और दौड़ने के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं.
हरियाणा नस्ल की पहचान (Identification of Haryana breed)
इस नस्ल का शरीर, सफेद या हल्का धुएं के रंग जैसा और मध्यम आकार का होता है. सिर छोटा, माथा और पुट्ठे गहरे सलेटी रंग के और टांगे लंबी होती हैं.
हरियाणा गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Haryana cows)
इसकी शुद्ध नस्ल हरियाणा के रोहतक, हिसार, करनाल और गुड़गांव जिलों में पाई जाती है.
हरियाणा नस्ल की क्षमता (Haryana breed ability)
बैल खेती का काम अच्छा करते हैं. इस नस्ल के बैल का औसतन भार 5 क्विंटल और गाय का भार 3.5 क्विंटल होता है. यह गाय औसतन 1.5 किलो दूध प्रतिदिन देती है. इस नस्ल की गाय का प्रति ब्यांत में औसतन दूध 1000 लीटर होता है.
राठी नस्ल की पहचान (Identification of Rathi breed)
इसका शरीर मुख्य तौर पर भूरे रंग का होता है, जिस पर सफेद धब्बे बने होते हैं. इसके बाकी शरीर के मुकाबले शरीर का निचला भाग रंग में हल्का होता है. इसका चौड़ा मुंह, पूंछ लंबी और लटकी हुई चमड़ी कोमल और ढीली होती है.
राठी गायों की शुद्ध नस्ल के स्थान (Places of pure breed of Rathi cows)
इस नस्ल का मूल स्थान राजस्थान है. यह नस्ल राजस्थान के बीकानेर, गंगानगर और जैसलमेर जिलों तक फैली हुई है.
राठी नस्ल की क्षमता (Rathi breed ability)
भारतीय गायों की नस्लों में राठी गाय दुधारू पशु की श्रेणी में आती है, जो कि राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों (Dry area) में पाई जाती है. राठी गाय को राजस्थान की कामधेनु भी कहा जाता है. पशुपालक के लिए इस गाय का पालन करना फायदेमंद साबित हो सकता है. यह यह एक ब्यांत (Lactation period) में औसतन 1500-2800 किलो दूध पैदा करती है.
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