मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात से लेकर देश के अलग-अलग कोने में इस वक़्त पालतू पशुओं पर एक ही खतरा मंडराता नज़र आ रहा है, वो लम्पी रोग का है. तेज़ी से फैल रहे इस खतरनाक बीमारी ने ना सिर्फ पशुपालक बल्कि राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार और बड़े-बड़े दूध उत्पादक कम्पनियों को भी चिंता में डाल दिया है.
इस बीमारी के चलते ना सिर्फ गाय तड़प रही हैं, बल्कि हजारों के संख्या में गायों की मौत भी हो रही है. बताया जा रहा है कि इस बीमारी का सटीक इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन कई होम्योपैथिक कंपनियां ऐसी भी हैं, जो इस बात का दावा कर रही हैं कि उनकी दवाई से लम्पी रोग पर काबू पाया जा सकता है.
आपको बता दें कि गोएल वेट द्वारा पेश की गई होमियोनेस्टगोल्ड ऐल एस डी 25 कैट इस रोग पर काफी सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है. तो आइए जानते हैं क्या है लम्पी रोग और कैसे करें इसकी रोकथाम?
लम्पी रोग के लक्षण
लम्पी रोग की शुरूआती लक्षण त्वचा पर चेचक, नाक बहना, तेज बुखार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इस रोग की वजह से पशुओं को काफी तेजी बुखार आता है. बुखार आने के बाद उनकी शारीरिक क्षमता काफी कम होने लगती है. इसके कुछ दिनों बाद पशुओं के शरीर पर बड़े- बड़े चकत्ते या फफोले नजर आने लगते हैं.
लम्पी रोग फैलने का कारण:
लम्पी रोग के फैलने का कारण बताया जा रहा है कि लम्पी रोग संक्रमित गाय के संपर्क में आने से हो रहा है. यह मक्खी, मच्छर या फिर जूं द्वारा खून चूसने के दौरान फैल सकती है. इस संक्रमण का खतरा समय के साथ बढ़ता जा रहा है. इसके कारण अब तक कई गायों की मौतें हो चुकी है और समय के साथ इसका आकड़ा बढ़ता जा रहा है.
लम्पी संक्रमण से बचाव के तरीके
-
संक्रमित पशुओं को बाकी पालतू पशुओं से दूर रखें.
-
मवेशियों के आसापास की जगहों को समय-समय पर साफ करें.
-
पालतू जानवर जहां रहते हैं, वहां मच्छरों और मक्खियों को पनपने से रोकें यानी पानी और गंदगी को ना होने दें.
क्या है लम्पी रोग का इलाज
लम्पी डिजीज के लिए अभी तक कोई टिका या सटीक दवाई तैयार नहीं हुई है. यह कोरोना वायरस और मंकीपॉक्स की तरह एक दुर्लभ संक्रमण है. ऐसे में यह अब चिंता का विषय बनता जा रहा है. गोएल वेट द्वारा होमिओनेस्ट मैरीगोल्ड ऐल एस डी 25 किट– लम्पी स्किन डिजीज (लम्पी त्वचा रोग) तथा अन्य वायरल बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. यह दवा एक बेहतरीन व् कारगर होम्योपैथिक पशु औषधि है.
संक्रमित पशुओं को यह दवा 10 से 15 दिन तक पिलाने से पशुओं का घाव ठीक होने लगता है तथा मेरीगोल्ड एंटीसेप्टिक स्प्रे पशु के घाव में पस नहीं भरने देता है. यदि किसी कारण से पस भर जाए, तो इस दवा से घाव जल्दी ठीक होने लग जाता है.
यह विशेष होम्योपैथीक पशु औषधि उत्पाद जानी मानी होम्योपैथिक वेटरनरी कंपनी गोयल वैट फार्मा प्रा. लि. द्वारा पशु पालकों के लिए बनाए गए हैं. यह कंपनी आई० एस० ओ० सर्टिफाइड है तथा इसके उत्पाद डब्लू. एच. ओ. -जि. ऍम. पी. सर्टिफाइड फैक्ट्री में बनाए जाते हैं.
आपको बता दें कि यह सभी फार्मूला पशु चिकित्सकों द्वारा जांचे व परखे गए हैं तथा पिछले 40 वर्ष से अधिक समय से पशु पालकों द्वारा उपयोग किए जा रहे हैं.
पशु को दवा देने का तरीका
-
प्रभावी नतीजों के लिए होम्योपैथिक दवा पशु की जीभ से लग कर जाए इस बात का ध्यान पशुपालकों को रखना है. याद रहे होम्योपैथिक दवा पशु को अधिक मात्रा में ना पड़े.
-
दवा को समय-समय पर कम अंतराल में देने से अधिक प्रभावी नतीजा प्राप्त होता है.
-
दवा को पीने के पानी में अथवा दवा के चूरे को साफ हाथों से पशु की जीभ पर भी रगड़ा जा सकता है.
तरीका 1
गुड़ अथवा तसले में पीने के पानी में दवा या टेबलेट या बोलस को मिला कर पशु को स्वयं पीने दें.
तरीका 2
रोटी या ब्रेड पर दवा या टेबलेट या बोलस को पीस कर डाल दें तथा पशु को हाथ से खिला दें.
तरीका 3
थोड़े से पीने के पानी में दवा को घोल लें तथा एक 5 मि0ली0 की सीरिंज (बिना सुईं की) से दवा को भरकर पशु के मुँह में अथवा नथुनों पर स्प्रै कर दें. ध्यान रहे कि पशु दवा को जीभ से आवश्य चाट लें.
Share your comments