अगर आपके दूध में एंटीबायोटिक दवाओं और उच्च स्तर के एफ़लाटॉक्सिन और मिलावट हैं, तो यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. एंटीबायोटिक अवशेषों के कारण एंटीबायोटिक प्रतिरोधी या रेसिस्टेंट बैक्टीरिया मनुष्यों में बसने लगते हैं और मात्रा में बढ़ते जाते हैं. कुछ एंटीबायोटिक् दवाइया ऑटोइम्यूनिटी, हेपेटोटॉक्सिसिटी, प्रजनन संबंधी विकार, इत्यादि बीमारियों का कारण हैं.
कुछ विशिष्ट एंटीबायोटिक्स कैंसर या कार्सिनोजेनेसिस (सल्फामेथज़ीन, ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन), किडनी को नुकसान या नेफ्रोपैथी (जेंटामाइसिन), बोन मेरो टॉक्सिसिटी (क्लोरैम्फेनिसोल और एलर्जी (पेनिसिलिन)) के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. मनुष्यों पर एंटीबायोटिक दवाओं का प्रभाव कम समय में हो सकता है जहां उनका शरीर जल्दी प्रभावित होता हैं.
एंटीबायोटिक रेसिडुए जितने लम्बे दौर तक आपके शरीर में आते रहेंगे तब तक अप्रत्यक्ष रूप से आप के शरीर को खतरा बना रहेगा. एंटीबायोटिक्स दूध में अगर उतारते हैं तो आपके स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष खतरा हो सकता है.
अनुचित रूप से संग्रहीत फीड में अक्सर कई मायकोटॉक्सिन होते हैं, और वे डेयरी जानवरों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. मायकोटॉक्सिन की एक बड़ी खुराक मवेशियों में एक तीव्र विषाक्तता का कारण बन सकती है, लेकिन वास्तव में जानवरों के स्वास्थ्य पर समय के साथ कम मात्रा में विष का सेवन देखा जा सकता है. मायकोटॉक्सिन डेरी पशुओं में फ़ीड खाने की मात्रा को कम करते है, फ़ीड में पोषक तत्वों को कम संग्रह करने और प्रतिरक्षा की क्षमता को कम करते हैं. वे समय के साथ प्रजनन समस्याओं और त्वचा की जलन का कारण बनते हैं. इन सभी समस्याओं से दुग्ध उत्पादन में कमी और डेयरी किसान को नुकसान होता है.
आपको कैसे पता चलेगा कि आपके डेयरी फार्म में दूध अच्छी गुणवत्ता का है?
फैट: एफएसएसएआई जो कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण है, उनके अनुसार भैंस के दूध में कम से कम 6% फैट होना आवश्यक है. गाय के दूध में फैट प्रतिशत न्यूनतम 3.2% रहना चाहिए. आपकी भैंस या गायों के दूध के फैट की मात्रा इन निर्धारित स्तरों के भीतर होना चाहिए.
एसएनएफ: एसएनएफ का मतलब है सॉलिड्स नॉट फैट. दूध में पाए जाने वाले पानी और फैट के अलावा सब को एसएनएफ कहते है. इसमें कैसिन, लैक्टोज, विटामिन और खनिज आदि जैसे घटक शामिल हैं. एफएसएसएआई के अनुसार, भैंस के दूध के लिए, देश भर में एसएनएफ न्यूनतम 9% और गायों के लिए 8.3% होना चाहिए.
बैक्टीरियल काउंट: अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार कच्चे दूध में बैक्टीरिया की संख्या 30,000 प्रति मिलीलीटर से कम होनी चाहिए.बैक्टीरिया, दूध में सामान्य रूप से पाए जाने वाले कीटाणु होते हैं
सोमेटिक सेल काउंट : सोमेटिक सेल्स रक्त में पायी जाती हैं जो संक्रमण से लड़ती हैं और दूध में स्वाभाविक रूप से होती हैं. अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, दूध में सोमेटिक सेल्स की गिनती 200000 प्रति मिली लीटर से कम होनी चाहिए.
एफ़्लैटॉक्सिन का स्तर: एफ़्लैटॉक्सिन कुछ कवक या फंगस द्वारा उत्पादित विषाक्त पदार्थ हैं जो आम तौर पर मक्का, मूंगफली, कपास के बीज और अन्य फसलों में पाए जाते हैं. जब डेरी पशुवो को ऐसे संक्रमित खाद खिलाये जाते है तो अफ्लाटॉक्सिन उनके शरीर से दूध में उतर जाता है. एफएसएसएआई के मानकों के अनुसार, दूध में एफ्लाटॉक्सिन की अनुमेय सीमा 0.5 माइक्रोग्राम प्रति किलोग्राम है.
एंटीबायोटिक अवशेष: जब आप डेयरी जानवरों पर एंटीबायोटिक्स इंजेक्शन देते हैं तो एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष उनके दूध तक पहुंच जाते हैं. एफएसएसएआई ने हाल ही में खाद्य और दूध उद्योग में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर एक अधिसूचना दी है. अधिसूचना में दूध में 43 एंटीबायोटिक्स दवाओं के लिए नई सहिष्णुता सीमाएं या टॉलरेंस लिमिट दिए हैं. यदि आप किसी भी अधिसूचित एंटीबायोटिक्स का उपयोग करते हैं तो डेयरी को ऐसे दूध की आपूर्ति नहीं करि.
यदि दूध में अफ्लाटॉक्सिन के उच्च स्तर पाए जाए तो क्या करें?
जब दूध में एफ़्लैटॉक्सिन की मात्रा 0.5 पीपीबी से अधिक मिले तो जानवरों को खिलाए जाने वाले सभी अनाज के उत्पादों को तुरंत राशन से हटा दिया जाना चाहिए. पशुओं के आहार में नए अनाज को दिया जाना चाहिए. चूंकि कपास और मकई एफ्लाटॉक्सिन संदूषण के सबसे संभावित स्रोत होते हैं, इसलिए इन अनाजों में एफ्लाटॉक्सिन के स्तर का पता करने के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए. जब हम फसलों से अनाज को अलग करते हैं, तो हमें उन्हें ठीक से सूखना चाहिए. यदि वे नम रहते हैं तो ऐसे अनाजों में एल्फ्लैटॉक्सिन अधिक हो सकते हैं. आपको अपने फ़ीड को सूखे और हवादार स्थानों में संग्रहित करना चाहिए. जब आप खेत से चारे की कटाई करते हैं और उन्हें लंबे समय तक ज़मीन पर जमा करके ढेर या टीले के रूप में रखते हैं, तो उनमें फंगस पनप जाता है. कॉन्सेंट्रेटस या ठोस फीड को फर्श पर नहीं रखना चाहिए. उन्हें लकड़ी के स्लैब पर रखा जाना चाहिए.
डेयरी जानवरों को जो भी टॉक्सिंस या विषाक्त पदार्थ खिलाए जाते हैं वे डिटॉक्सिफिकेशन या विषहरण के लिए उनके लिवर में पहुंच जाते हैं. इसलिए हमें दूध में एफ़्लैटॉक्सिन के स्तर को कम रखने के लिए उन्हें लिवर टॉनिक देने की आवश्यकता है.
दूध में बैक्टीरिया की गिनती कैसे कम करें?
यदि आप चाहते हैं कि दूध दुहने के बाद आपका दूध जल्दी खराब न हो तो आपको अपने दूध के बैक्टीरिया की संख्या को नियंत्रित करने की आवश्यकता है.कभी-कभी डेरी फार्म में पानी ज़मीन पे स्थिर पाया जाता है. यहां बैक्टीरिया बढ़ने की संभावना होती है. ऐसी जगहों पर आपको अपने फ़ार्म में एक ढलान बनाना चाहिए ताकि सारा पानी बाहर निकल जाए. आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके खेत के किसी भी हिस्से में पानी जमा न हो. यदि आपके पास गीला फर्श है और सूरज की रोशनी ऐसे क्षेत्रों में नहीं पहुंचती है, तो ऐसे स्थानों में बैक्टीरिया के बढ़ने की संभावना अधिक होती है.
ऐसे मामलों में आपको नियमित रूप से पोटेशियम परमैंगनेट जैसे कीटाणुनाशक से फार्म को स्प्रे करना चाहिए. यदि आपके नालियों या गटर में गन्दगी जमा रहता है और नियमित रूप से साफ नहीं किया जाता है तो बैक्टीरिया का विकास यहाँ हो सकता है. हर हफ्ते ब्लीचिंग पाउडर या फिनाइल का इस्तेमाल करके अपनी नालियों को साफ़ करें. यदि आप पशुओं के लिए बेडिंग या मैट्स का उपयोग कर रहे हैं तो उन्हें नियमित रूप से बदलें.
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