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कतला मछली बांगलादेश के अलावा भारत में विशेष तौर पर प्रसिद्ध है. भोजन के रूप में इसका सेवन बड़े चाव से किया जाता है. यही कारण है कि मत्सय पालन के रूप में ये एक फायदे का बिज़नेस है. वैसे भारत में क्षेत्रियों भाषाओं के आधार पर इसके अलग-अलग नाम भी हैं पर आम तौर पर लोग इसे भाकुरा के रूप में जानते हैं. चलिए आपको इस मछली के बारे में बताते हैं.
वर्ष में एक बार अंडे देती है कतला
कतला मछली वर्ष में एक बार मानसून के मौसम में अंडे देती है. इसका शरीर चौड़ा और सिर लंबा होता है. किनारों पर चांदी रंग होते हैं और निचला होंठ समतल लेकिन मोटा है. इसके पंख काले रंग के होते हैं.
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भोजन
भोजन के लिए ये पानी की ऊपरी सतह का प्रयोग करती है. पानी के किनारे सतह पर पाए जाने वाले वनस्पति इसके विकास में सहायक होते हैं.
पालने के लिए क्षेत्र
इस मछली को बहुत आसानी से गहरे पानी में पाला जा सकता है. आप चाहें तो क्षेत्र के रूप में टैंकों या तालाबों का चुनाव भी कर सकते हैं. लेकिन ध्यान रहे कि इसे रहने के लिए विशेष तौर पर पानी साफ चाहिए. धान के खेतों में वैसे ये और अधिक विकसित होते हैं.
तापमान
इसे रहने और बढ़ने के लिए 25 से 32 डिगरी सेल्सियस तक का तापमान चाहिए. एक सवस्थ कतला मछली का भार तालाब से निकालने के वक्त 1.5—2.0 के लगभग होता है.
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बनावटी फीड
इसकी बनावटी फीड आराम से बाजार में पैलेट के रूप में मिल सकती है. पैलेट दो तरह के होते हैं- गीला पैलेट और शुष्क पैलेट.
शैल्टर और देखभाल
फिश फार्म के रूप में आप खेती के लिए अनुपयुक्त भूमि का उपयोग कर सकते हैं. ध्यान रहे कि भूमि में पानी को रोक के रखने की क्षमता हो. ऐसा करने में रेतली और दोमट मिट्टी सक्षम होते हैं.
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