ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है. छोटा जानवर होने के वजह से बकरी के रख-रखाव में लागत भी कम लगता है. सूखा पड़ने के दौरान भी इसके खाने का इंतज़ाम आसानी से हो सकता है.
इसकी देखभाल का कार्य भी महिलाएं एवं बच्चे आसानी से कर सकते हैं और साथ ही जरुरत पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है.
बकरियों के नस्ल का चुनाव (Goat breed selection)
देश में जमनापरी, बीटल, बरबेरी, कच्छी, उस्मानावादी, ब्लैक बंगाल, सुरती, मालवारी तथा गुजराती आदि विभिन्न नस्लों की बकरियां पैदावार के लिए अच्छी नस्ल की समझी जाती है.
वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ ऐसी भी बकरियां पाई जाती है, जिनके बालों से अच्छे कपड़े बनाए जाते हैं, लेकिन उपर्युक्त सभी नस्लों में दूध मांस और खाद्य उत्पादन के लिए जमनापारी, बीटल और बरबेरी बकरियों काफी उपयोगी साबित हुई है.
बकरी पालन के फायदे (Benefits of Goat Farming)
सूखा प्रभावित क्षेत्र में खेती के साथ बकरी पालन (Bakari Palan)आसानी से किया जा सकने वाला कम लागत का अच्छा व्यवसाय है, इससे मोटे तौर पर निम्न लाभ होते हैं-
- जरूरत के समय बकरियों को बेचकर आसानी से नकद पैसा प्राप्त किया जा सकता है.
- बकरी पालन करने के लिए किसी भी प्रकार की तकनीकी ज्ञान की जरुरत नहीं पड़ती.
- यह व्यवसाय बहुत तेजी से फैलता है. इसलिए यह व्यवसाय कम लागत में अधिक मुनाफा देना वाला है.
- इनके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध है. अधिकतर व्यवसायी गांव से ही आकर बकरी-बकरे को खरीदकर ले जाते हैं.
बकरियों को खुराक देने के संबंध में निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है –
- बकरियों को खिलाने–पिलाने का समय निश्चित कर लेना चाहिए. इससे बकरियों की भूख अच्छी रहती है.
- बकरी एक बार में जितना खाना खा सकती है, उतना ही चारा दें या बकरी के सामने थोड़ा – थोड़ा करके चारा रखें.
- सूखा चारा के साथ–साथ बकरियों को हरा चारा भी जरूर खिलाएं.
- चारा खिलाने की नाद या बाल्टी की प्रतिदिन सफाई आवश्यक है.
- बकरियों को साफ बर्तन में ताजा पानी ही पीने की लिए दें.
- बाली या फफूंदीवाली चीजों से बकरियों को बचाना चाहिए.
- बकरियों को भींगी हुई घास या वर्षा ऋतु की नई घास अच्छी तरह साफ करने के बाद ही खिलाई जाए.
बकरियों को होने वाले सामान्य रोग (Common diseases of goats)
पी. पी. आर: यह रोग “काटा” या “गोट प्लेग” के नाम से भी जाना जाता है. यह एक संक्रमक बीमारी है जो भेड़ एवं बकरियों में होती है.
खुरपका मुहंपका रोग: मुहं के अंदर जीभ, होठ गाल, तालू और मुहं के अन्य भागों में फफोले निकल जाते हैं. केवल खुरपका होने पर खुर के बीच और खुर के ऊपरी भागों में फफोलें निकल आते हैं. ये फफोले फट जाते हैं. कभी – कभी बीमार बकरी को दस्त होने लगता है निमोनिया भी हो जाती है. यह रोग ज्यादातर गर्मी या बरसात में फैलता है.
प्लूरों निमोनिया (संक्रामक): यह बहुत खतरनाक बीमारी है और इसका शिकार किसी आयु की बकरी को हो सकती है. खाँसी आना, लगातार छींकना, नाक बहना और भूख की कमी इस रोग के खास लक्षण है.
निमोनिया: सर्दी लग जाने या लंबी सफर तय करने के फलस्वरूप यदि बकरी को बुखार हो जाए, उसे भूख नहीं लगे, कभी – कभी खाँसी हो और साँस लेने में कठिनाई हो तो समझ लेना चाहिए की उसे निमोनिया हो गया है.
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