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कृषि विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा विश्वविद्यालय

सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पांचवें नियमित कुलपति के रूप में प्रो. गया प्रसाद ने 10 मार्च 2016 को कार्यभार सम्भाला है। इससे पहले वे संयुक्त राष्ट्र संगठन में खाद्य एवं कृषि के राष्ट्रीय सलाहाकार के रूप में कार्यरत रहे। यही नहीं वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में एडीशनल डायरेक्टर जनरल, एनीमल हैल्थ और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर] बरेली में निदेशक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। कई महत्वपूर्ण पदों पर आसीन प्रो. प्रसाद के 150 से अधिक शोधपत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जा चुके हैं।

कृषि जागरण की टीम ने प्रो. गया प्रसाद से विश्वविद्यालय में आकर मुलाकात की और साथ ही भारतीय किसानों के सामने आ रही चुनौतियों और उनसे निपटने के उपाय] कृषि को लाभकारी बनाने तथा कृषि शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाने जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश-

सवाल- कृषि विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र क्या है?

जवाब- विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 04 मण्डल मेरठ] सहारनपुर] मुरादाबाद एवं बरेली हैं जिनके अन्तर्गत कुल 18 जिले हैं। तीन मुख्य शोध केन्द्र नगीना (बिजनौर)] बुलन्दशहर एवं उझानी (बदायूं) में हैं। प्रसार संबंधित कार्यों के लिए 13 कृषि विज्ञान केन्द्र एवं 02 कृषि ज्ञान केन्द्र कार्यरत हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा शामली] सम्भल] हापुड़] अमरोहा] मुजफ्फरनगर] बदायूं तथा मुरादाबाद में नए कृषि विज्ञान केन्द्र खोलने की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।

विश्वविद्यालय के मास्टर प्लान में प्रस्तावित 12 महाविद्यालयों में से 03 महाविद्यालयों क्रमशः कृषि महाविद्यालय] जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय एवं पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान महाविद्यालय में शिक्षण कार्यक्रम चल रहे हैं जबकि मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। चालू वर्ष में खाद्य प्रसंस्करण महाविद्यालय का कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है। इसके अतिरिक्त पशुचिकित्सा पाॅलीक्लीनिक काॅम्पलेक्स निर्माणाधीन है व विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्कालय का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

सवाल- आज के परिप्रेक्ष्य में कृषि की उपयोगिता पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब- कृषि रोजगार सृजित करने के साथ-साथ भोजन एवं पोषण की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर कृषि की एक विशिष्ट छाप है। गरीबी हमारे देश की एक गम्भीर चुनौती है जबकि अभाव एक अभिशाप है। इन दोनों समस्याओं के निदान में कृषि ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज कृषि में नए-नए शोधों से हमने खाद्य-सुरक्षा प्राप्त कर ली है एवं पोषण-सुरक्षा की दिशा में अग्रसर हैं। हमारा कृषि योग्य क्षेत्रफल लगभग स्थिर है जबकि जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है। सीमित भूमि एवं जल की उपलब्धता] जलवायु परिवर्तन] प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण हमारी खाद्य-सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नई चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें एक सुदृढ़ रणनीति अपनानी होगी।

प्राकृतिक आपदाओं एवं जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि एक जोखिमपूर्ण व्यवसाय हो गया है। इस जोखिम को कम करने के लिए आवश्यक है कि कृषि के साथ कृषक अन्य व्यवसायों को भी अपनाएं। इन व्यवसायों में डेयरी एवं मुर्गी-पालन प्रमुख हैं। इन व्यवसायों को अपनाने से जहां कृषकों को अतिरिक्त आय होगी वहीं पोषण-सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

सवाल- कृषि कार्यों के प्रति लोगों की रूचि किस प्रकार बढ़ाई जाए

जवाब- वर्तमान समय में जैव प्रौद्योगिकी] बायोइंफाॅर्मेटिक्स एवं नैनो टेक्नोलाॅजी जैसी आधुनिक विज्ञान की विधाएं प्रचलित हैं जो उच्चस्तरीय अनुसंधानों द्वारा मनुष्यों एवं पशुओं की दुरूह रोगों से रक्षा करने में समर्थ हैं। रिकाॅम्बीनेन्ट वैक्सीन द्वारा असाध्य रोगों का समाधान उपलब्ध है। दुधारू पशुओं की नस्ल का सुधार] उच्चगुणवत्ता वाले पशुओं का विकास] बेहतर दुग्ध उत्पादक पशुओं से दुग्ध क्रांन्ति का शुभारम्भ] विलुप्तप्राय पादप प्रजातियों के जर्मप्लाज्म का संरक्षण जीन के डाटाबेस का संयोजन एवं नैनो कणों द्वारा असाध्य रोगों के उपचार की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय का इस क्षेत्र में बहुत महत्व है। अतः इस ज्ञान को धरातल पर लाया जाना चाहिए।

कृषि में पौधों के संवर्धन औषधीय पौधों के संरक्षण एवं पर्यावरण सुधार के लिए जैव उर्वरक] जैव नियंत्रण] आॅर्गेनिक फार्मिंग] वर्मी कम्पोस्ट द्वारा खेती जैसे प्रयोग अत्यन्त उपयोगी सिद्व हो रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्नातकों को व्यावहारिक ज्ञान में भी दक्ष बनाया जाए। हमारा अपना भी मत यही है कि कृषि स्नातकों को मूल विषयों के अतिरिक्त बाहर से कौशल और क्षमताओं के ज्ञान से भी अभिसिंचित करना होगा। व्यावसायिक कौशल के अलावा संचार] निर्णय लेने की क्षमता भाषा व उद्यमशीलता में भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

सवाल- आज के कृषि स्नातकों की भी कृषि क्षेत्र में रूचि न होने को आप किस तरह से आंकते हैं?

जवाब- हां मेधावी छात्रों का कृषि व्यवसाय के प्रति लगाव कम है जिसके लिए उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है। भारत सरकार भी योग्य स्नातकों को उपने उद्यम स्थापित करने के लिए प्रेरित कर रही है। विश्वविद्यालय से पास हुए योग्य स्नातक देश में कृषि से सम्बन्धित सार्वजनिक एवं निजी उपक्रमों में अपना लोहा मनवा रहे हैं।

सवाल- शोधकार्यों में कृषि विज्ञान केन्द्रों की भूमिका पर आपके क्या विचार हैं?

जवाब- वर्तमान में 15 जनपदों के केवीके विश्वविद्यालय के अन्तर्गत कार्य कर रहे हैं एवं सभी कृषि विज्ञान केन्द्र कृषि के विकास में अपनी सफल भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। समय-समय पर किसान मेलों का आयोजन भी किया जाता है जिनमें किसानों को फसल सुरक्षा] बायोमास संग्रहण] बीज उत्पादन] फसल उत्पादन] मछली उत्पादन तथा दुग्ध उत्पादन आदि का प्रशिक्षण निःशुल्क प्रदान किया जाता है। कृषि विज्ञान केन्द्रों के अन्तर्गत कृषकों के खेतों पर प्रक्षेत्र परीक्षण] विभिन्न फसलों की अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का आयोजन] लघु एवं सीमान्त कृषकों के खेतों पर समन्वित कृषि प्रणाली का प्रदर्शन आदि कार्य किए जा रहे हैं।

किसानों की आवश्यकतानुसार उच्च गुणत्तायुक्त बीजों को उपलब्ध कराना एवं अन्य पौध सामग्री उपलब्ध कराना] युवा बेरोजगारों को रोजगारमूलक कृषि आधारित कौशल प्रशिक्षण] कृषकों] कृषक महिलाओं को सामयिक प्रशिक्षण] जिले में पदस्थ कृषि एवं अन्य सम्बन्धित विभागों के फील्ड कर्मचारी एवं अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण का आयोजन कराना। हमारे विश्वविद्यालय द्वारा संचालित सभी केवीके प्रगतिशील हैं।

सवाल- कृषि विज्ञान केन्द्रों से किसान किस प्रकार एवं कितना लाभान्वित हो रहा है 

जवाब- कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को जिला स्तर, विकास खण्ड स्तर एवं ग्राम स्तर पर कृषि एवं कृषि विभाग से सम्बन्धित विभागों को कृषि की नई तकनीकी जानकारी उपलब्ध हो जाती है। विभिन्न फसलों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता जिला स्तर एवं गांव स्तर पर हो जाती है। साथ ही कृषि से सम्बन्धित विभिन्न तकनीकी प्रदर्शनों का जिला स्तर एवं विकास खण्ड स्तर पर किसानों को लाभ मिलता है और मुख्य रूप से कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से सभी विषयों की जानकारी किसानों को एक ही स्थान से प्राप्त हो जाती है।

सवाल- अगर डिजिटल केवीके की बात करें तो कितने केवीके आधुनिक तकनीकी से लैस हैं 

जवाब- सभी 15 कृषि विज्ञान केन्द्र उच्च गुणवत्ता से परिपूर्ण एवं डिजिटल सिस्टम से लैस हैं जिसका सीधा लाभ कृषकों को मिल रहा है। जैसे किसान मोबाइल सन्देश द्वारा उन्नत तकनीकी समय-समय पर किसानों तक पहुंचाई जाती है।

सवाल- शोध परिणामों को किसानों तक पहुंचाने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर किस प्रकार कार्य किया जाता है \

जवाब- शोध एवं किसानों के मध्य बहुत बड़ी खाई है। हमारे मुर्गी पालन] मछली पालन] कृषि क्षेत्रों के विभिन्न शोध] प्रसंस्करण] भण्डारण इत्यादि को समाचार पत्र] विभिन्न पत्रिकाओं आदि के माध्यम से किसानों तक पहुंचाया जाता है। हम इन सभी माध्यमों के आभारी हैं। इसी वर्ष बीज विकास वाहन योजना का शुभारम्भ किया जा रहा है जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय प्रत्येक मेले और गांव-गांव जाकर कम कीमत पर किसानों को बीज उपलब्ध कराएगा। इससे ऐसे किसानों को भी लाभ मिलेगा जो विश्वविद्यालय तक आकर बीज की खरीदारी में असमर्थ हैं।

सवाल- वर्तमान में आपके विश्वविद्यालय में कौन-कौन से पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं \

जवाब- वर्तमान में कृषि सम्बन्धित पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त इंजीनियरिंग] पशु चिकित्सा] फूड टेक्नोलॉजी] एवं बायोटेक्नोलॉजी इत्यादि पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त अन्य कई रोजगारपरक पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किए जा रहे हैं।

सवाल- आधुनिक परिस्थितियों में समाज से क्या साझा करना चाहेंगे \

जवाब- मैं राष्ट्र के सीमान्त तथा भूमिहीन कृषकों से कहना चाहता हूं कि मुर्गी-पालन] डेयरी फार्म व्यवसाय जीविकोपार्जन तथा उद्यम का एक सरल तथा कम लागत वाला उपाय है। इसे किसान भाई अपनी खेती-किसानी या पशुपालन के साथ लघु स्तर पर भी अपना सकते हैं। साथ ही यह उच्च स्तरीय प्रोटीन प्रदान कर कुपोषण की समस्या से छुटकारा पाने का एक प्रभावी उपाय भी है।

सवाल- आज इतनी तरक्की के बावजूद भी कृषक तकनीकी से दूर क्यों है \

जवाब- कृषकों का आज भी उच्च गुणवत्ता वाली तकनीकी से दूर होने का मुख्य कारण है आज भी 70-80 प्रतिशत किसान लघु एवं सीमान्त जोत की सीमा में आते हैं] जिनकी जोत की सीमा 1-5 एकड़ से 2-5 एकड़ प्रति परिवार होने के कारण उच्च कृषि तकनीकी को समाहित करने में कठिनाई आती है। उच्च तकनीकी के संसाधनों की कमी और आर्थिक स्थिति की कमजोरी एवं शिक्षा के स्तर का निम्न होना है।

सवाल- किसान की स्थिति आज से 10 वर्ष पहले] आज व आज के 10 वर्ष बाद तीनों स्थितियों को आप किस प्रकार देखते हैं \

जवाब- किसानों की स्थिति आज से 10 वर्ष पूर्व बहुत ही नाजुक थी। जैसे - कुल उत्पादन, उत्पादकता प्रति इकाई बहुत कम थी और औसत शुद्व आय प्रति एकड़ रू. 8] 000&10]000 प्रतिवर्ष थी जो आज बढ़कर रू. 20]000 &25]000 प्रतिवर्ष प्रति इकाई हो गई है। इसके चलते किसानों के सामाजिक एवं शैक्षणिक स्तर में काफी सुधार आया है जिसका प्रमाण लगातार 3 वर्षों से गन्ना उत्पादन में कई पुरस्कार हमारे किसान भाईयों ने जीते हैं। यदि हम आने वाले 10 वर्षों की बात करें तो हमारे किसानों की आय में दोगुनी वृद्धि होगी और सभी कृषक वर्ग साधन-सम्पन्न तथा कृषि की उच्च तकनीकी से परिपूर्ण होंगे यही मुझे आशा है।

सवाल- भारत में डेयरी फार्मिंग की क्या सम्भावनाएं हैं \

जवाब- पशुपालन आज एक विकसित उद्योग का आकार ले चुका है। अब यह क्षेत्र डिग्रीधारी युवकों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक संरचना भी तेजी से सुदृढ़ हो रही है।

सवाल- डेयरी फार्मिंग हेतु कौन-कौन सी सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं \

जवाब- हां, डेयरी फार्मिंग से संबंधित कई सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। इस व्यवसाय हेतु प्रमुख सरकारी योजनाएं इस प्रकार हैं- दुधारू मवेशी योजना, मिनी डेयरी योजना (दस मवेशियों के लिए)] कामधेनु डेयरी योजना आदि हैं।

सवाल- डेयरी व्यवसाय शुरू करने से पहले किसानों को किन-किन बातों का ख्याल रखना चाहिए \

जवाब- डेयरी फार्मिंग का व्यवसाय शुरू करने से पूर्व रणनीति] उद्देश्य और योजनाओं को निर्धारित करने की आवश्यकता होती है। व्यापारियों के लिए सबसे पहला और महत्वपूर्ण उद्देश्य कच्चे दूध एवं दुग्ध उत्पादों की सुरक्षा तथा गुणवत्ता होनी चाहिए। पशुओं को रोग से बचाने के लिए उनकी नियमित देखभाल करना आवश्यक है। योजना बनाते समय पेशेवर विशेषज्ञों एवं अकाउंटेंट की सलाह लेना बेहतर है। व्यापार शुरू करते समय बुनियादी ढांचा जैसे पशु प्रजातियां] आवश्यक पूंजी] चारे एवं पानी की उचित व्यवस्था] स्वच्छता] कुशल कर्मचारी] अनुकूल वातावरण] प्रभावी नियंत्रक उपायों की जानकारी के अतिरिक्त पशुओं का चयन] आहार] स्वच्छता व देख-रेख] दूध निकालने की प्रक्रिया] डेयरी उत्पादों की बिक्री] अपशिष्ट प्रबन्धन आदि ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिनकी जानकारी डेयरी संचालक या डेयरी प्रबंधक को होनी चाहिए।

सवाल- कृषक भाईयों के लिए कोई विशेष सन्देश देना चाहेंगे \

जवाब- जलवायु परिवर्तन के चलते किसानों की घटती जोत की स्थिति में उन्नत खेती करना बहुत ही कठिन होगा। अतः इस स्थिति से निपटने के लिए किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि वे समन्वित-उन्नत कृषि प्रणाली एवं वर्षा जल संरक्षण तकनीकी] उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग तथा मृदा स्वास्थ्य परीक्षण करा कर उन्नत खेती करें।

English Summary: University will play key role in agricultural development

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