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Success Story: किसानों की किस्मत बदल देगा राजाराम त्रिपाठी का यह सफल मॉडल, कम लागत में होगी करोड़ों की आमदनी!

Interview by विवेक कुमार राय ,
richest farmer of India Rajaram Tripathi and Vivek Kumar Rai
सफल किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी की सफलता की कहानी

Success story of successful farmer Dr. Rajaram Tripathi: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में रहने वाले सफल किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. राजाराम त्रिपाठी को हरित-योद्धा, कृषि-ऋषि, हर्बल-किंग, फादर ऑफ सफेद मूसली आदि की उपाधियों से नवाजा जाता है. इन्होंने खेती-किसानी के जरिए न सिर्फ अपनी जिंदगी बदली है बल्कि सैकड़ों अन्य किसानों को भी आर्थिक रूप से मजबूत बनाया है. मौजूदा वक्त में राजाराम त्रिपाठी हजार एकड़ से ज्यादा जमीन में औषधीय फसलों की सामूहिक रूप से खेती करते और कराते हैं. राजाराम त्रिपाठी और इनके साथ खेती करने वाले किसानों का सालाना टर्नओवर 70 करोड़ रुपये के आसपास है. कहते हैं- जीवन में सफल तो सभी होना चाहते हैं. लेकिन सफलता उसी को मिलती है जो अपार गुणों से भरपूर होता है. इन्हीं गुणों में एक है ‘आत्मविश्वास’ जो कि डॉ. राजाराम त्रिपाठी में कूट-कूट कर भरा है. यही कारण है कि ग्रामीण बैंक में मैनेजर के पद से इस्तीफा देकर किसान बन गए.

डॉ. त्रिपाठी देश के पहले ऐसे किसान हैं, जिन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ किसान होने का अवार्ड अभीतक चार बार, भारत सरकार के अलग-अलग कृषि मंत्रियों के हाथों मिल चुका है. इसके अलावा कृषि जागरण द्वारा आयोजित और महिंद्रा ट्रैक्टर्स द्वारा प्रायोजित मिलेनियर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स-2023 में डॉ. राजाराम त्रिपाठी को केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला द्वारा रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड (Richest Farmer of India Award) मिला था. वही राजाराम त्रिपाठी ने नेचुरल ग्रीन हाउस का एक ऐसा मॉडल विकसित किया है जिसकी लागत बहुत कम है और मुनाफा बहुत ज्यादा है. इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कृषि जागरण के वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार राय ने डॉ. राजाराम त्रिपाठी से विशेष बातचीत की. पेश है साक्षात्कार के संपादित अंश...

सवाल: कृषि क्षेत्र में अभी तक का आपका सफर कैसा रहा है?

जवाब: कृषि क्षेत्र में हमारा सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. खेती में हम लोगों ने लाखों कमाए भी. इस दौरान सर्वश्रेष्ठ किसान का खिताब भी लिया और एक समय ऐसा भी आया जब हम सफेद मूसली उगा रहे थे जो ₹1600 किलो बिक रहा था वह ₹400 किलो बिकने लगा और उस समय हमारी जमीन नीलाम होने लगी और कुछ जमीन नीलम भी हुई थी. लेकिन फिर हम वापस उठ खड़े हुए, क्योंकि हमने खेती छोड़े नहीं थे बल्कि लगातार करते रहे. हम यह नहीं बोल सकते हैं कि सब कुछ अच्छा ही अच्छा रहा है.

सवाल: अभी फिलहाल आप किन-किन फसलों की खेती कर रहे हैं?

जवाब: अभी हम हर उस फसल की खेती करना पसंद करते हैं जो ज्यादा पैसा दे सके और मौजूदा वक्त में हम काली मिर्च, स्टीविया और सफेद मूसली समेत लगभग 22 तरह की औषधीय फसलों की खेती करते हैं. साथ में आस्ट्रेलियन टीक की भी खेती करते हैं.

सवाल: आपकी उपज को सिर्फ देश में ही बेचा जाता है या फिर विदेशों में भी बेचा जाता है?

जवाब: आमतौर पर हम दो तरह की खेती पर ध्यान देते हैं. पहला वह जो देश में इंपोर्ट किया जा रहा है. दूसरा वह जो देश से एक्सपोर्ट किया जा रहा है, जैसे- देश में इमारती लकड़ी इंपोर्ट की जाती है. इसलिए हम ऑस्ट्रेलिया ट्रिक की बागवानी करते हैं. वही दूसरी चीज जो इंपोर्ट की आती है, जैसे- हर्बल, मेडिसिनल प्लांट, हल्दी और काली मिर्च समेत अन्य मसाले हैं. इन सभी की हम खेती करते हैं.

सवाल: मौजूदा वक्त में आपकी उपज से कितने उत्पादों को बनाया जा रहा है?
 
जवाब: जिन हर्बल, मेडिसनल प्लांट यानी औषधीय पौधों की हम खेती करते हैं वह मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के अंतर्गत उगाया जाता है और प्राइमरी प्रोसेसिंग किया जाता है. वही एमडी बॉटनिकल ब्रांड के अंतर्गत प्रोडक्ट बनाया जाता है जिसकी सीईओ अपूर्वा त्रिपाठी हैं. वह लगभग 30 प्रोडक्ट बनाई हैं जो ऑनलाइन मार्केट में इंटरनेशनल फोरम में लॉन्च कर रही हैं.

सवाल: हर्बल प्रोडक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने की वजह से लोग असमंजस में रहते हैं कि क्या यह शुद्ध है या इसमें मिलावट है...आपके मुताबिक क्या इसमें भी मिलावट होती है? यदि हां, तो लोग सही उत्पाद तक अपनी पहुंच कैसे बनाएं?

अगर आप मिलावट की बात करेंगे, तो हमारे यहां दूध से लेकर आटे तक, मसाले तक में भी मिलावट होती है. आपने हाल ही में सुना होगा कि दो बड़े ब्रांड के मसालों में मिलावट की वजह से उनकी सेल पर रोक लगा दी गई है. मिलावट हमारे यहां के व्यापार के स्वभाव में है, किसान के स्वभाव में नहीं है. किसान मिलावट नहीं करता है यदि आपको शुद्ध चीज चाहिए तो आपको किसान से खरीदनी पड़ेगी. अच्छी बात यह है कि हर्बल उत्पाद हमारे जैसे किसान भी तैयार करने लगे हैं. अगर आपको शुद्ध दूध चाहिए तो सीधा ग्वाले के पास जाइए और जाकर दूध ले लीजिए. वैसे ही अगर आपको शुद्ध जड़ी-बूटी चाहिए तो किसान से संपर्क कीजिए.

सवाल: मौजूदा वक्त में मां दंतेश्वरी हर्बल समूह का सालाना टर्न ओवर कितना है?

अभी हम हजारों-हजार एकड़ में खेती कर रहे हैं. अगर हम सभी किसानों को जोड़ दें जिनके साथ हम उत्पादन करके बेचते हैं तो हमारा सालाना टर्नओवर लगभग 70 करोड़ रुपये के आसपास है.

सवाल: एमएफओआई अवार्ड्स 2023 में आपको रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड-2023 मिला था. आपके मुताबिक, रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड-2024  किस कैटेगरी में जा सकता है?

सबसे पहले मैं मिलेनियर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड के आयोजक कृषि जागरण के संपादक एवं प्रधान संपादक एम.सी डोमिनिक जी का धन्यवाद दूंगा कि उन्होंने मुझे रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया का अवार्ड दिया. यह बड़ा सम्मान था और बहुत ही भव्य तरीके से केंद्रीय कृषि मंत्री जी के हाथों से मुझे मिला. देखिए, हमारा देश भारत पूरे विश्व में मसाले के लिए जाना जाता है. मेरे मुताबिक, रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया (RFOI) अवार्ड-2024   मसाले और हर्बल कैटेगरी में जाएगा या फिर हॉर्टिकल्चर में जाएगा, क्योंकि हॉर्टिकल्चर कैटेगरी में बहुत सारी संभावनाएं हैं. इन तीनों में से किसी एक कैटेगरी में जाएगा.

सवाल: कृषि जागरण द्वारा आयोजित और महिंद्रा ट्रैक्टर्स द्वारा प्रायोजित मिलेनियर फार्मर ऑफ इंडिया अवार्ड्स- 2024 के ‘फार्मर स्टार स्पीकर्स’ में से आप एक हैं. इस आयोजन को लेकर आप क्या कहना चाहेंगे?

मैं खेती और किसी के लिए हमेशा बोलता रहा हूं, लेकिन स्टार स्पीकर कृषि जागरण और महिंद्रा ट्रैक्टर्स ने बनाया है. इसके लिए पहले तो मैं धन्यवाद देता हूं. मेरा मानना है कि इस आयोजन में एक लाख मिलेनियर किसान हिस्सा लेंगे. यह एक बहुत बड़ा आयोजन है. देश की खेती में एक जो एक नकारात्मकता फैली हुई है उसे दूर करने में इस तरह के आयोजन से बहुत मदद मिलेगी.

सवाल: देश के कई हिस्सों के किसान औषधीय फसलों की खेती करते हैं, लेकिन आपकी तरह सफलता किसी को नहीं मिली है. इसके पीछे का कारण है?

जो भी खेती करता है उसको शुरुआती दौर में संघर्ष करना पड़ता है. जब हमने हर्बल की जैविक खेती की शुरुआत 1995-96 में किया था, तब हमें काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा था. जो खेती करते हैं उनको उनको संघर्ष के साथ-साथ लाइमलाइट भी मिलता है, प्रसिद्धि भी मिलती है. ऐसा नहीं है कि यह प्रसिद्धि सिर्फ मुझे मिली है. एक लंबी फेहरिस्त है जो लोग हर्बल की खेती में काफी सफलता हासिल किए हैं. ऐसे कई नाम है उनमें उत्तर प्रदेश के रंग बहादुर जी, चंद्रशेखर मिश्रा जी और विंध्यवासिनी जी शामिल हैं. इसके अलावा भी बड़ी फेहरिस्त है... अगर दक्षिण भारत की बात करें तो विनय ओझा जी, ललित जी और चंद्रशेखर राव जी समेत बड़ी फेहरिस्त है. अगर मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां के धार जिले के लगभग 100 किसान हैं जो सफलता पूर्वक खेती कर रहे हैं... अगर हम हमारे यहां छत्तीसगढ़ की बात करें तो बहुत किसान ऐसे किसान हैं जो औषधीय फसलों की खेती कर शानदार मुनाफा कमा रहे हैं. उनमें काली मिर्च की खेती में संतुराम नेता जी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. रायपुर में योगेंद्र नारायण जी हैं वह भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. उद्योगपति होने के बाद भी स्टीविया की खेती कर रहे हैं. इस तरह से बहुत सारे किसान हैं जो बहुत अच्छी खेती कर रहे हैं.

काली मिर्च की आपकी किस्म के बारे में सुना है जिससे कई गुना उपज मिलती है, यह कैसे संभव हो पाया है?

यह बात सही है कि भारत में एक काली मिर्च की पेड़ से औसतन से एक से डेढ़ किलो उत्पादन मिलता है, जबकि हमारे यहां एक पेड़ से लगभग 8 से 10 किलो उत्पादन है. जब शुरू में यह बात चर्चा में आई तो लोगों ने यकीन नहीं किया. भारत सरकार की स्पाइस बोर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर ने हमारे फार्म का दो-तीन बार दौरा किया. इसके इसके बाद तीन वैज्ञानिकों ने मिलकर एक आर्टिकल लिखा जोकि स्पाइस इंडिया का जर्नल है उसमें प्रकाशित हुआ. उसमें उन्होंने लिखा है कि ‘ब्लैक गोल्ड- कल्चर ऑफ बस्तर रीजन’. भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ कि काली मिर्च की एक पेड़ से 8 से 10 किलो का उत्पादन मिला हो. जो हमने काली मिर्च की वैरायटी विकसित की है उसे हमने मां दंतेश्वरी ब्लैक पीपर-16  (MDBP-16) नाम दिया है.

भारत के काली मिर्च अनुसंधान केंद्रों के शीर्ष वैज्ञानिकों के दल के द्वारा काली मिर्च की खड़ी फसल का निरीक्षण
भारत के काली मिर्च अनुसंधान केंद्रों के शीर्ष वैज्ञानिकों के दल के द्वारा काली मिर्च की खड़ी फसल का निरीक्षण

उपज को लेकर डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि मेरा मानना है कि इसमें कोई मेरा कोई बड़ा रोल नहीं है. बड़ा रोल मैं मानता हूं आस्ट्रेलियन टीक पेड़ों का जो हरी खाद भी देते हैं. धूप से भी बचाते हैं और वॉटर हार्वेस्टिंग भी करते हैं. साथ-साथ ही साथ नाइट्रोजन फिक्सेशन करते हैं.

सवाल: आपने नेचुरल ग्रीन हाउस का एक ऐसा मॉडल विकसित किया है जिसकी लागत बहुत कम है तो वह मॉडल क्या है, और उसकी क्या विशेषता है?

हमारे देश में ज्यादातर किसान छोटे हैं. हमारे देश में लगभग 84 प्रतिशत ऐसे किसान हैं जिनके पास जमीन का रकबा चार एकड़ से कम है. ऐसे में यह किसान कम से कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कैसे लें? इसको ध्यान में रखते हुए मैंने पर्यावरण से जोड़ा है. वही एक एकड़ जमीन में पाली हाउस लगाने के लिए लगभग 40 लाख रुपये की जरूरत पड़ती है जिसमें नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड 20 लाख रुपये अनुदान देता है. फिर भी एक एकड़ में पाली हाउस लगाने के लिए किसानों को 20 लाख रुपये की जरूरत पड़ती है.

वही हमने पेड़ लगाकर एक नेचुरल ग्रीन हाउस का एक ऐसा मॉडल बनाया है जिससे पाली हाउस से जो लाभ मिलता है वह सभी लाभ मिलने के साथ ही अतिरिक्त लाभ भी मिलता है. मतलब यह कि नेचुरल ग्रीन हाउस का यह मॉडल पेड़ों की छाया से फसल की सुरक्षा भी करेगा, धूप से भी बचाएगा और बीमारी से भी बचाएगा. यह मॉडल विशेष टेक्नोलॉजी में तैयार होता है. इस विशिष्ट टेक्नोलॉजी को नेशनल पेटेंट के लिए हमने अप्लाई किया था और आपको मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि वह स्वीकार कर लिया गया है. नेचुरल ग्रीनहाउस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह वह भी दे सकता है जो एक पॉलीहाउस नहीं दे सकता है, जैसे- वाटर हार्वेस्टिंग और हरी खाद आदि.

एक नेचुरल ग्रीन हाउस तैयार करने के लिए आस्ट्रेलियन टीक का पौधा लगाया जाता है जोकि बाबुल से तैयार हुआ है जिसकी खेती रेगिस्तान में भी की जा सकती है और जहां पर जल की समुचित व्यवस्था है वहां पर भी की जा सकती है. साथ ही आस्ट्रेलियन टीक पेड़ नाइट्रोजन फिक्सेशन करता है. यह अपने 5 मीटर एरिया में काली मिर्च को नाइट्रोजन देता है. साथ में जो इसमें इंटरक्रॉपिंग (यह एक बहुफसलीय प्रथा है जिसमें एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों की खेती होती है) करते हैं उसको भी नाइट्रोजन मिलता है. उन फसल को अलग से नाइट्रोजन नहीं देना पड़ता है, क्योंकि हमारा जो मॉडल है उसमें जो पेड़ लगाए जाते हैं तो वह लगभग 10 प्रतिशत एरिया कवर करते हैं बाकी जो एरिया होता है उसमें इंटरक्रॉपिंग आसानी से की जा सकती है.

आमतौर पर जो प्लास्टिक और लोहे का पाली हाउस बनता है. वह 7 से 8 साल में खराब होने लगता है लेकिन वही जो नेचुरल ग्रीन हाउस में आस्ट्रेलियन टीक का पौधा लगता है वह 8 से 10 सालों में लगभग तीन से चार करोड रुपये का हो जाता है. एक तरफ पाली हाउस का 40 लाख रुपया जीरो में कन्वर्ट हो जाता है, लेकिन यह दूसरी तरफ नेचुरल ग्रीन हॉउस में लगा 2 लाख रूपया 3 से 4 करोड़  रुपये का हो जाता है.

इसके अलावा, नेचुरल ग्रीन हाउस पर्यावरण को भी सुधारता है, क्योंकि वह पेड़ों से बना होता है. मेरा मानना है कि यह जो मॉडल है आने वाले वक्त में पूरे विश्व के लिए एक अच्छा मॉडल होगा. साथ  ही नेचुरल ग्रीन हाउस में आमतौर पर हम किसी भी फसल की खेती करेंगे वह ऑर्गेनिक होगी और साथ ही साथ उत्पादन भी ज्यादा होगा.

English Summary: richest farmer of India Rajaram Tripathi success story of farmer know all about Rajaram Tripathi

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