गोबिन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्दोगिकी विश्वविद्दालय, पंतनगर जो कि हरित क्रांति की जन्मस्थली भी कही जाती है, यह उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत में कृषि नवाचार एवं उन्नत बीज के अनुसंधान के लिए विख्यात है। यह विश्वविद्दालय किसानों एवं वैज्ञानिकों के सीधे-सीधे संवाद के लिए किसान कुंभ मेले का आयोजन करती है। इस दौरान पंतनगर विश्वविद्दालय के कुलपति प्रोफेसर आदित्य कुमार मिश्रा से कृषि जागरण ने बातचीत के दौरान न केवल उनके एक पशुचिकित्सक से लेकर इस विश्वविद्दालय के कुलपति बनने के सफर के बारे में पूछा बल्कि विश्वविद्दालय द्वारा अन्य गतिविधियों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त की।
इस दौरान प्रोफेसर मिश्रा ने बताया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही NDDB ( नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड) में चयनित हुए। एन.डी.डी.बी ने कैंपस सेलेक्शन के जरिए उन्हें चुना और विशेष प्रकार की ट्रेनिंग के लिए उन्हें कुछ चुनिंदा जगहों पर भेजा। वह बताते हैं कि डॉ. कुरियन के निर्देशन में उस समय एन.डी.डी.बी बहुत अच्छा कार्य कर रही थी और चयनितों को प्रशासनिक सेवा की तरह प्रशिक्षण कराती थी। जिस दौरान इन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में एक बेहतरीन प्रशिक्षण काल पूरा किया जिसके बाद साबरमती गौशाला में नियुक्त हुए जो कि महात्मा गाँधी जी द्वारा स्थापित की गई थी। यहाँ सन् 1982 से लेकर 1999 तक वह सेवारत रहे। इस विश्व प्रसिद्ध गौशाला उस समय दुनिया में सबसे ज्यादा सीमन उत्पादन करती थी। इसके साथ-साथ पशु प्रजनन आदि के लिए यह एक विशिष्ट केंद्र के रूप में जाना जाता था। इसके बाद वह अनुसंधान में रुचि रखने के कारण विश्वविद्दालय में आ गए।
प्रो. मिश्रा गोबिन्द बल्लभ पंत विश्वविद्दालय, कुलपति के रूप में इस संस्थान का नाम जिसे प्रथम कृषि विश्वविद्दालय होने का गौरव प्राप्त है अपने बेहतरीन कृषि शिक्षा प्रसार के लिए जानी जाती है। भारत में अन्य विश्वविद्दालयों की अपेक्षा यहाँ के विद्दार्थियों को एक अलग पहचान मिलती है। विश्वविद्दालय का शिक्षा प्रसार कार्य इतिहास में अनुपम रहा है। लगभग ग्यारह हजार एकड़ में विस्तारित यह विश्वविद्दालय अपने फसल अनुसंधान केंद्र, पुष्प अनुसंधान केंद्र इत्यादि के माध्यम से अतुल्य कार्य कर रहा है। आज भी यहाँ के शिक्षकों में और विद्दार्थियों में अलग जज्बा है। हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन एवं शिक्षा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के एक ट्वीट के माध्यम से जानकारी दी कि टाइम्स की एशिया रैंकिग में 350 की सूची में भारत के अन्य संस्थानों के साथ विश्वविद्दालय भी शुमार है।
उनका मानना है कि पंतनगर कृषि एवं प्रौद्दोगिकी विश्वविद्दालय द्वारा उनकी जानकारी के अनुसार लगभग 280 किस्में विकसित कर चुका है जिसमें से 13 किस्मों को सरकार द्वारा लैंडमार्क किस्मों का दर्जा दिया गया यानिकि यह किस्में किसी भी विशेष क्षेत्र तक सीमित न रहकर पूरे देश में इस्तेमाल के लिए अनुकूल हैं।
इस बीच विश्वविद्दालय लगातार यह कृषि कुंभ मेले के आयोजन कर किसान, उद्दमियों, वैज्ञानिकों, विद्दार्थियों एवं उद्दोग जगत को सीधे-सीधे संवाद के लिए एक मंच प्रदान करता है। इस दौरान यहां तीन व्याख्यान आयोजित किए गए जिसमें प्रथम ज़ीरो टिलेज, मधुमक्खी पालन व तीसरा व्याख्यान केंद्र एवं राज्य सरकारों की योजनाओं की जानकारी पर आधारित था। ज़ीरो टिलेज का उद्देश्य फसल अवशेष प्रबंधन के लिए बहुत साल पहले विश्वविद्दालय द्वारा विकसित की गई थी जिसके अन्तर्गत पराली आदि को न जलाकर सीधे दूसरी फसल की बुवाई कर दी जाने की तकनीक का विकास किया गया था। जिससे किसान को कम लागत के साथ में अधिक मुनाफा मिलता है। इसके साथ समेकित खेती के लिए किसानों को प्रेरित किया जाता है जिससे किसानों को फसल खराब होने की दशा में पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी आदि के जरिए अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशा में किवी फल की खेती को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि इसे बंदर नुकसान नहीं करते हैं। तो इस तरीके से अन्यान्य उपाय विश्वविद्दालय द्वारा बताए जा रहें हैं जिनका ज्ञान प्राप्त कर किसान भाई लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
खेती की पद्धतियों के बारे में वह किसानों से जैविक पद्धति अपनाने की राय देते हैं क्योंकि रसायनों के बढ़ते प्रयोग के मद्देनज़र भूमि की उर्वरा शक्ति काफी खराब होती जा रही है जिसके लिए वह पंजाब के भंटिडा का उदाहरण भी देते हैं कि वहाँ के किसान गेहूँ को बेच देते हैं खुद खाने के लिए नहीं रखते हैं। जिसका कारण वहाँ की भूमि रसायनों के चलते खराब हो गई है कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।
तो वहीं पहाड़ी इलाकों में खेती के बारे में उनका विचार है कि यदि बात उत्तराखंड की करें तो दस जिले पहाड़ पर हैं वहाँ के किसान ऑक्सीजन फल खेती कर नीचे मैदानी इलाकों में बेच सकते हैं। औषधि जड़ी बूटी की खेती कर सकते हैं जिसके लिए वहाँ की जलवायु अनुकूल है। यहाँ विदेशी नस्लों की गाय या अन्य पशु ठंड के कारण अधिक काफी सहज महसूस करती है जिसके लिए उन्हें पहाड़ी इलाकों में पालना चाहिए ताकि वह मैदानी जगहों की अपेक्षा अधिक दूध उत्पादन कर सकें। यह भी एक प्रकृति प्रदत्त लाभ किसानों को उठाना चाहिए।
इस दौरान पशुपालन के लिए उनका मानना है कि महाराष्ट्र में एक गौशाला बहुत मशहूर है जो कि एक मॉडल पर आधारित गौशाला है। वहाँ दूध उत्पादन के अतिरिक्त गाय का गोबर को बायोगैस के लिए इस्तेमाल करते हैं साथ ही वेस्ट को केंचुओं के हवाले कर देते हैं जो कि उसे वर्मीकंपोस्ट में बदलकर सर्वोत्तम खाद बनाते हैं। गाय यदि दूध उत्पादन नहीं कर रही है तो उसके गोबर व गौमूत्र से अच्छी कमाई की जा सकती है। ऐसा कर लोग अच्छी कमाई कर भी रहें हैं। यह एक मॉडल अन्य किसानों के लिए एक अच्छा उदाहरण है। जैविक खेती के लिए गोबर आवश्यक है। जिसके लिए गौशाला के माध्यम से अच्छी कमाई की जा सकती है।
भारत में पशुपालन के बारे में उनका मानना है कि आधारभूत चीजों को अच्छी तरीके से बनाकर बेहतर बनाया जा सकता है। देशी गायों के पालन से दूध उत्पादन करें क्योंकि उसमें विदेशी नस्लों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्व मौजूद होते हैं उसमें वसा की मात्रा भी अधिक होती है। हमारे यहां किसान कम लागत में बेहतर कर सकते हैं। उन्हें पशुपालन के लिए यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हम किस प्रकार पशुओं को रख रहें हैं। उनका रख-रखाव अच्छा होना चाहिए। चारे की कटाई अच्छी से करनी चाहिए ताकि उनका पाचन तंत्र अच्छा हो सके। पंतनगर विश्वविद्दालय इसके लिए एक मॉडल प्रस्तुत कर रहा है जिसमें देशी गाय को रखा गया है उसके रख-रखाव का मॉडल बिल्कुल साधारण है उसे एक छप्पर के शेड के नीचे रखा गया साथ ही एजबेस्टेस शेड का विकल्प दिया गया है।
किसानों को उनके उत्पाद का सही बाजार उपलब्धता के विषय पर उनका कहना है कि मूल्य संवर्धन के द्वारा किसान अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गाँव स्तर पर किसान मूल्य संवर्धन जितना अधिक कर सकते हैं वह उसे कर वह अच्छा लाभ कमाएं। कई बार किसान यदि केवल दूध का उत्पादन करें तो अधिक लाभ नहीं मिलता लेकिन यदि पनीर या खोया बनाकर बेचें तो उन्हें अच्छा लाभ मिलेगा।
कुलपति मिश्रा के अनुसार किसान समेकित खेती, जैविक खेती, मूल्य संवर्धन, पशुपालन व बागवानी आदि के जरिए किसान अच्छा लाभ उठाएं साथ ही थोड़ा सा वैज्ञानिक सुझाव मानकर भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। किसान आय दो गुनी करने के लिए ड्रिप इरीगेशन आदि पद्धतियों को अपनाकर इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
English Summary: AK Mishra
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