Seaweed Farming: समुद्री शैवाल समुद्री पौधे और शैवाल की अनगिनत प्रजातियों के लिए सामान्य नाम है जो महासागरों के साथ-साथ नदियों, झीलों और अन्य जल निकायों में भी उगते हैं. कुछ समुद्री शैवाल सूक्ष्म होते हैं, जैसे कि फाइटोप्लांकटन जो की पानी के स्तंभ से निलंबित रहते हैं और अधिकांश समुद्री खाद्य श्रृंखलाओं के लिए आधार प्रदान करते हैं. वहीं कुछ समुद्री शैवाल बड़े आकार के होते हैं, जैसे विशाल केल्प जो बड़ी मात्रा में "जंगलों" में उग जाते हैं और टावर जैसे पानी के नीचे उगने वाले रेडवुड समुद्र के तल पर अपनी जड़ों का विस्तार करते हैं. अधिकांश मध्यम आकार के होते हैं, लाल, हरे भरे और काले रंग के होते हैं. यह समुद्री तटों और तट रेखाओं पर लगभग हर जगह होते हैं.
समुद्री शैवाल/ सीवीडी" एक मिथ्या नाम है, क्योंकि खरपतवार/वीड एक ऐसा पौधा होता है, जो तेजी से फैलता है और उस स्थान को नुकसान पहुंचा सकता है जहां वह उगता है. हालांकि समुद्री शैवाल कई लाभ प्रदान करता है.
कमजोर वर्ग के लिए आय का स्रोत
समुद्री शैवाल की खेती से विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में महिलाओं के लिए नए रास्ते खोलने, ग्रामीण क्षेत्र के बीच समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आय का स्रोत प्रदान करने और उद्यमिता को बढ़ावा देने की उम्मीद है. लंबी तट रेखा और विशेष आर्थिक क्षेत्र के साथ, भारत में समुद्री शैवाल की खेती और समुद्री शैवाल आधारित उद्योग को बढ़ावा देने की भारी गुंजाइश की जाती है. समुद्री शैवाल की लगभग 844 प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 60 प्रजातियां व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण है. मछुआरों की आजीविका में सुधार के लिए तमिलनाडु में भारत का पहला समुद्री शैवाल पार्क स्थापित किया जाएगा.
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खाद्य उद्योग में समुद्री शैवाल से होने वाले लाभ
समुद्री शैवाल स्वादहीन होता है, इसलिए इससे भोजन के स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता. इसका उपयोग खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थो को गाढ़ा पायसीकारक और सुरक्षित करने के लिए एक स्टेबलाइजर स्थिरक के रूप में किया जाता है. उदाहरण- एलिगनेट एक पारसी कारक और बाइंडर के रूप में कार्य करता है और मांस की ताजगी को बनाए रखने में मदद करता है. जैविक खेती पर बढ़ते ध्यान के साथ समुद्री शैवाल भविष्य का उर्वरक है, इसके औषधीय लाभ भी है. इसका उपयोग मोटापा, मधुमेह और गठिया के इलाज की दवा बनाने में किया जाता है. इसका इस्तेमाल कॉस्मेटिक वस्तुओं में भी किया जाता है.
क्या आप जानते हैं?
1. आर्थिक सर्वेक्षण 2021 व 22 के अनुसार मत्स्य पालन देश के जीवीके में लगभग 24 प्रतिशत और कृषि जीवीके में 7. 28% से अधिक का योगदान देता है.
2. मत्स्य पालन क्षेत्र ने 2014 व 15 से दो अंको की उत्कृष्ट वृद्धि दर 87% का प्रदर्शन किया है.
3. मत्स्य पालन क्षेत्र भारत में 28 मिलियन से अधिक लोगों को आजीविका का समर्थन करता है, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले और कमजोर समुदायों का.
4. भारत में कुल मछली उत्पादन 2021 व 22 में 16,24 मिलियन टन रहा समुद्री मछली उत्पादन 12 मिलियन टन अंतर्देशीय मछली उत्पादन 12. 12 मिलियन टन.
5. चीन और इंडोनेशिया के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक मछली उत्पादन में 8% का योगदान देता है.
6. चीन के बाद जलीय कृषि के माध्यम से मत्स्य पालन उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है.
7. साल 2021 व 22 में भारत ने 76 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 57,586 करोड रुपए मूल्य के 13. 69 मिलियन तन समुद्री उत्पादों का निर्यात किया, जो मूल्य के हिसाब से अब तक का सबसे अधिक दर्ज किया गया निर्यात है.
8. चीन दुनिया में मछली और समुद्री उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है.
9. मत्स्य पालन क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा कृषि निर्यात मद बन गया है, जिसमें भारत के कृषि निर्यात का लगभग 17% मछली और मछली संबंध उत्पाद है.
10. संयुक्त राज अमेरिका मूल्य और मात्र दोनों के मामले में भारतीय समुद्री भोजन का सबसे बड़ा आयातक बना रहा.
11. वर्ष 2025 तक भारत में समुद्री निर्यात 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने की उम्मीद है. MPEDA ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पहले ही एक रोड मैप में प्रस्तावित किया है.
12. वर्ष 2019 व 20 के आंकड़े के अनुसार भारत में मुख्य रूप से आठ प्रमुख मछली उत्पादक राज्य है, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल.
13. आंध्र प्रदेश समुद्री उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद गुजरात और कर्नाटक का स्थान है.
14. आंध्र प्रदेश अंतर्देशीय मत्स्य पालन के सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद पश्चिम बंगाल और बिहार है.
15. गुजरात समुद्री मत्स्य पालन का सबसे बड़ा उत्पादक है इसके बाद तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश है.
लेखक
रबीन्द्रनाथ चौबे
ब्यूरो चीफ, कृषि जागरण
बलिया, उत्तरप्रदेश.
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