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Wheat Variety Update: गेहूं की फसल से ज्यादा पैदावार पाने के लिए करें इन 8 क़िस्मों की बुवाई

रबी मौसम में गेहूं की खेती सबसे ज्यादा तादाद में की जाती है. इसलिए आपको इसकी अच्छी किस्मों के बारे में जानकारी होनी बेहद जरूरी है जो आपको भविष्य में फायदा पहुंचाए...

श्याम दांगी
wheat
wheat variety for madhya bharat

रबी का सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में मध्य भारत के किसानों के लिए हम गेहूं की 8 उन्नत क़िस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी खेती करके वे अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं गेहूं की कौन सी किस्म सबसे अच्छी है-

पूसा तेजस (Puja Tejas)

गेहूं की इस किस्म को एचआई 8759 के नाम से भी जाना जाता है. इसमें प्रोटीन, आयरन, जिंक और विटामिन-ए की भरपूर मात्रा होती है. गेरूआ रोग, करनाल बंट और खिरने की समस्या नहीं आती है. इसकी बुवाई 10 नवंबर से 25 नवंबर तक होती है. इसमें 3 से 5 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसमें कल्ले की अधिकता होती है इसलिए उत्पादन में ज्यादा रहता है. बुवाई के लिए प्रति एकड़ 50 से 55 किलो बीज ले सकते हैं. 115 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 65 से 75 क्विंटल का उत्पादन होता है.

पूसा पोषण (Pusa Poshan)

इसके एचआई 8663 के नाम से भी जाना जाता है. यह दिखने में पूसा तेजस जैसी ही होती है. ये 120 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यदि मौसम ठंडा रहता और गर्मी नहीं आती है तो पकने में 4-5 दिन अधिक लग जाते हैं. इसका भी मध्य भारत में बेहतर उत्पादन होता है. इसका दाना चमकीला और काफी बड़ा होता है. यह रोटी बनाने के काम नहीं आती है. इसका दलिया, सूजी, पास्ता बनाया जाता है. इसमें सिंचाई 4-5 पानी की होती है.

पूसा अनमोल (Pusa Anmol)

इसे एचआई 8737 के नाम से जाना जाता है. यह भी मालवी कठिया गेहूं की उन्नत प्रजाति है जिसे 2014 में विकसित किया गया है. इसका दाना गेहूं की मालव राज किस्म की तरह होता है. जो काफी बड़ा होता है. यह भी लगभग 130 दिनों की फसल है. इसके भी गिरने खिरने की समस्या नहीं आती है. प्रति हेक्टेयर इससे 60-70 क्विंटल का उत्पादन लिया जा सकता है. इसकी बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 से 125 किलो बीज लगता है.

पूसा मंगल (Pusa Mangal)

इसे एचआई 8713 के नाम से जाना जाता है. यह एक हरफनमौला किस्म है जो रोग प्रेतिरोधक होती है. हालांकि इसका कुछ दाना हल्का और कुछ रंग का होता है जिस वजह से यह भद्दा दिखता है. लेकिन इसके पोषक तत्वों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है. इसके पौधे की लंबाई 80 से 85 सेंटीमीटर होती है. 120 से 125 दिन में यह किस्म पककर तैयार हो जाती है. इसकी बुवाई 15 से 25 नवंबर तक उचित रहती है. इसमें 3 से 4 सिंचाई लगती है. प्रति हेक्टेयर इससे 50 से 60 क्विंटल का उत्पादन होता है.

पूसा पूर्णा (Pusa Purna)

इसे एचआई 1544 के नाम से जाना जाता है. इसकी रोटी अन्य किस्मों की तुलना में काफी अच्छी गुणवत्ता की बनती है. इसका दाना थोड़ा छोटा होता है इसलिए उत्पादन थोड़ा कम होता है. 3 से 5 पानी में यह पककर तैयार हो जाती है. यह 110 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 50 से 55 क्विंटल होता है. 

राज (Raj)

यह राजस्थान की किस्म है जो मध्य भारत के किसानों के बीच काफी प्रचलित हो रही है. इसकी प्रमुख तीन किस्में हैं- राज 4037, राज 4120 और राज 4079. यह सभी किस्में कम उपजाऊ और ढलान वाली भूमि में भी अच्छा उत्पादन देती है. इन किस्मों को केवल 3 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इनकी रोटी भी अच्छी बनती है वहीं भाव भी अच्छा मिलता है. यह किस्में 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इनका दाना थोड़ा छोटा होता है लेकिन बालियां पूरी भरी होती है. इनकी बालियां जल्दी तना देरी से सुखता है. इन किस्मों की 20 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ की पैदावार होती है.

English Summary: top eight wheat variety for madhya bharat Published on: 14 October 2020, 01:03 PM IST

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