जौ उत्तर भारत के मैदानी भाग की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है. जौ का विश्व में चावल, गेहूँ एवं मक्का के बाद चौथा स्थान है. विश्व के कुल खाद्यान्न उत्पादन में 7 प्रतिशत योगदान जौ का है. माल्ट एवं बीयर बनाने के उद्देश्य से हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं राजस्थान में अच्छे प्रबंधन द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाले दानों के लिए भी इसकी खेती की जाती है.
किसान आज भी जौ की पुरानी किस्में जैसे मंजुला, आजाद, जागृति (उत्तर प्रदेश), बी.एच. 75 (हरियाणा), पी.एल. 172 (पंजाब), सोनू एवं डोलमा (हिमाचल प्रदेश) उगा रहें हैं, जिनकी उत्पादकता काफी कम है. ऐसी स्थिति में अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को जौ की नई किस्में उगानी चाहिए. इसी कड़ी में कृषि जागरण के इस लेख के माध्यम से हम आपको 5 टॉप जौ की किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं.
टॉप 5 जौ की किस्में (Top 5 varieties of barley)
डी डब्ल्यू आर बी 92
डीडब्ल्यूआरबी 92 जौ की ये किस्म माल्ट परिवार से ही है. इस किस्म की औसत अनाज उपज 49.81 क्विंटल/हेक्टेयर है. DWRB92 की औसत परिपक्वता लगभग 131 दिनों की थी और पौधे की औसत ऊंचाई 95 सेमी है. इसकी खेती मुख्य तौर पर उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में की जाती है.
डी डब्ल्यू आर बी 160
जौ की उन्नत किस्में में से एक है, जो कि माल्ट परिवार से ही ताल्लुख रखती है. इस किस्म को आईसीएआर करनाल द्वारा विकसित किया गया है. इस खास किस्म की औसत उपज झमता 53.72 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और संभावित उपज क्षमता 70.07 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसके साथ ही बुवाई के 86 दिनों के बाद इनके पौधों में बालियां आनी शुरू हो जाती है तथा 131 दिनों में यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है. डी डब्ल्यू आर बी 160 जौ की यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान (कोटा व उदयपुर डिविजन को छोड़कर) और दिल्ली में की जाती है.
रत्ना
जौ की रत्ना किस्म को IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है और इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए जारी किया गया था. इस खास किस्म में बुवाई के 65 दिनों के बाद बालियां आनी शुरू हो जाती है. लगभग 125-130 दिनों के यह फसल पककर तैयार हो जाती है.
करण-201, 231 और 264
आईसीएआर द्वारा जौ की किस्म करण 201, 231 और 264 विकसित की गई है. यह अच्छी उपज देनी वाली किस्में हैं और रोटी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है. रबी सीजन में धान की खेत खाली करने के बाद इन किस्मों को उगाने से अच्छी पैदावार मिलती है. यह मध्य प्रदेश के पूर्वी और बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान और हरियाणा के गुड़गांव और मोहिंदरगढ़ जिले में खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. करण 201, 231 और 264 की औसत उपज क्रमशः 38, 42.5 और 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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नीलम
यह जौ की किस्म 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है. यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है जो कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार की सिंचित और बारानी दोनों स्थितियों में खेती के लिए उपयुक्त है. इस किस्म में प्रोटीन और लाइसिन की मात्रा अधिक होती है.
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