सर्दी के मौसम में होने वाली शलजम की खेती जड़ों और हरे पत्तों के लिए की जाती है. जड़ें विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती हैं जबकि पत्ते विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलिएट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत होते हैं. भारत के समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसकी खेती में मुनाफा बहुत है लेकिन फसल की देखभाल करना, कीट - रोग से भी बचाना बेहद जरूरी है तभी पैदावार अच्छी होने से मुनाफा ज्यादा मिलेगा. आइए जानते हैं फसल की देखभाल की जरूरी जानकारी...
खरपतवार नियंत्रण :
शलजम की बुवाई के 10 से 15 दिन बाद खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए निराई-गुड़ाई करें, क्योंकि फसल में खरपतवार पर विशेष ध्यान देना होता है. शलजम की फसल 2 से 3 गुड़ाई में तैयार हो जाती है. अगर खेत में ज्यादा खरपतवार है और खेती बड़े स्तर पर की गई है, तो निराई- गुड़ाई के अलावा पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करें.
फसल में रोग
शलजम की फसल में अंगमारी, पीला रोग जैसे फफूंद रोग लग जाते है, जिससे बचाव के लिए खेत में रोगरोधी क़िस्मों को ही लगाए, और बीजों को उपचारित जरूर करें इसके साथ ही रोगी पौधों को जड़ से उखाड़ कर हटा दे, और प्रति हेक्टेयर के खेत में M 45 या Z 78 की 0.2 प्रतिशत की मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करें.
गलन रोग से बचाव
शलजम में मुख्य रूप से जड़ गलन रोग का प्रकोप देखने को मिलता है. इस रोग से बचाव के लिए, बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें, बिजाई के बाद 7 से 15 दिन बाद नए पौधों के आस-पास की मिट्टी में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.
कीट से बचाव के लिए
शलजम की फसल पर कीट रोग मुंगी, माहू, सुंडी, बालदार कीड़ा और मक्खी के रूप में आक्रमण करते है इस कीट रोग के आक्रमण को रोकने के लिए 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान को डालकर उसका छिड़काव खेत में करना चाहिए. इसके अलावा 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को उतने ही पानी मिलाकर उसका छिड़काव प्रति हेक्टेयर के खेत में करे.
ये भी पढ़ेंः शलजम की खेती में शानदार मुनाफा, जानिए उन्नत खेती का सही तरीका
Share your comments