कम लागत में अगर आप भी बड़ा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो कलिहारी की खेती कर सकते हैं. यह एक जड़ी-बूटी वाली फसल है, जो बहुत हद तक किसी बेल की तरह बढ़ती है. इसके पत्तो, बीजों और जड़ों आदि का उपयोग दवाइयें के निर्माण में होता है. इससे बनने वाली दवाईयों जोड़ों के दर्द, एंटीहेलमैथिक आदि के उपचार में सहायक है. इसके अलावा इससे कई तरह टॉनिक और पीने वाली दवाइयां भी बनाई जाती है, जिस कारण बाजार में इसकी अचछी मांग है.
कैसा हाता है पौधा
इस पौधे की औसतन ऊंचाई 3.5 से 6 मीटर तक हो सकती है. इसके पत्तों की लम्बाई 6-8 इंच होती है, जो डंठलों के बिना होते हैं. इनके फूलों रंग हरा और फल 2 इंच लम्बे हो सकते हैं.
मिट्टी
वैसे तो इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन लाल दामोट या रेतीली मिट्टी इसके विकास में अधिक सहायक है. मिट्टी का पीएच मान 5.5 -7 तक होना चाहिए.
खेती की तैयारी
कलिहारी को बिजाई से पहले खेतों को भुरभुरा और समतल बनाना जरूरी है. मिट्टी की जुताई 2 से 3 बार करें. पानी की निकासी के लिए मार्ग बनाएं.
बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए जुलाई से अगस्त तक का महीना फायदेमंद है. बिजाई के समय ध्यान रखें कि पौधों में 60x45 सै.मी. तक का फासला हो. बीजों को 6-8 सै.मी. की गहराई में बोयें.
सिंचाई
इसकी फसल को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है. फिर भी अच्छी फसल के लिए 5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें. बरसात के दिनों में सिंचाई की आवशयक्ता नहीं है. फल पकने के समय दो बार सिंचाई करना फायदेमंद है.
कटाई
इसके फलों के रंग हरे होने के बाद इसकी तुड़ाई की जाती है. इसी तरह गांठों की कटाई बिजाई से 5-6 साल के बाद की जाती है.
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