उद्यानिकों फसलों में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है. आज देश के हर राज्य में इन उत्पादों के लिए बड़े उद्योगों की स्थापना हो चुकी है. अतः वर्तमान में उद्यानिकी फसलों की गुणवत्ता व उत्पादकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक हो गया है. नई उत्पादन तकनीकों को अपनाकर ही उत्पादन बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए आजकल सघन खेती कर भूमि की उपयोग क्षमता को बढ़ाई जा रही है. इसके लिए उर्वरक उपयोग, सिंचाई, रोपाई, निंराई आदि कृषि क्रियाओं जिनमें अधिक श्रम की आवश्यकता होती है. ऐसी क्रियाओं में श्रम को कम करने हेतु उस तरह की तकनीक अपनानी चाहिए, जिससे उपरोक्त सभी कृषि क्रियाओं में श्रम व धन की बचत हो सके. टपक सिंचाई पद्धति एक ऐसी तकनीक है, जिसमें सिंचाई व पोषण तत्वों के प्रबंधन में समय व श्रम की बचत होती है. साथ ही जल व उर्वरकों का अधिक दक्षता से उपयोग होता है. उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए टपक सिंचाई पद्धति का उपयोग कर घुलनशील उर्वरकों का उद्यानिकी फसलों में महत्व देखा जा सकता है.
घुलनशील उर्वरक -
घुलनशील उर्वरक जल में आसानी से घुल जाते हैं. ये ठोस व द्रव दोनों रूपों में उपलब्ध होते हैं व अम्लीय प्रवृति के होते हैं. कुछ ठोस घुलनशील उर्वरकों में सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाए जाते हैं. ये उर्वरक क्लोराइड मुक्त होते हैं.
घुलनशील उर्वरकों के प्रकार -
1. द्रवीय उर्वरक - इन उर्वरकों में पादप पोषक विलियन के रूप में उपस्थित होते है. इन उर्वरकों में एक या एक से अधिक पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं.
2. संस्पेंशन उर्वरक - यह उर्वरक प्रवीय अवस्था में रहता है, जिसमें की पादक पोषक ठोस रूप में होते हैं तथा द्रव के साथ - साथ फैल जाते है.
3. ठोस उर्वरक - इनमें पादप पोषक ठोस रूप में हो रहते हैं किन्तु ये पूरी तरह से घुलनशील होते हैं. घुलनशील उर्वरकों की बाजार में उपलब्धता -ठोस व द्रविय उर्वरक दोनों ही बाजार में उपलब्ध है. द्रवीय उर्वरक हमारे देश में ही निर्मित होते हैं, किन्तु ठोस उर्वरक विदेशों से आयात किये जाते है.
द्रवीय उर्वरक - ये बिना क्लोराइड व क्लोराइड युक्त दोनों ही रूपों में उपलब्ध है. ये 40 कि.ग्रा. की प्लास्टिक बैग में उपलब्ध है.
सिंचाई के साथ उर्वरक उपयोग - पौधों के जड़ क्षेत्र में टपक सिंचाई पद्धति से पानी दिया जाता है जिसके साथ ही घुलनशील उर्वरकों को भी दिया जाता है, जिससे कि जल व उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ती है. फलस्वरूप फसल की उत्पादकता व गुणवत्ता भी बढ़ती है. घुलनशील उर्वरकों को पौधों की आवश्यकतानुसार प्रतिदिन या कुछ दिनों के निश्चित अंतराल में टपक सिंचाई द्वारा दिया जाता है.
सिंचाई के साथ घुलनशील उर्वरकों की उपयोगिता से होने वाले लाभ -
1. सिंचाई जल के साथ घुलनशील उर्वरकों को सीधे पौधे की जड़ों के पास दिया जाता है, जिससे पौधों को पोषण आसानी से उपलब्ध हो जाता है.
2. इस विधि द्वारा उर्वरक जल में घोलकर पौधो को दिए जाते है अतः उर्वरकों की सांद्रता नियंत्रित रहती है. उर्वरकों नियंत्रित सांद्रता के चलते पौधों के जल जाने का खतरा नहीं रहता है.
3. ड्रीप सिंचाई पद्वति के द्वारा घुलनशील उर्वरकों का प्रयोग करने से जल व पोषक तत्व एक निश्चित अंतराल में पौधों को प्राप्त होते रहते हैं, इससे जल व पोषण की निरंतरता बनी रहती है. फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है.
4. इस विधि द्वारा दिए गए समस्त उर्वरकों का सीधे जड़ क्षेत्र में जल के साथ विलयन के रूप में होने से पौधे द्वारा उपयोग कर लिया जाता है. अतः विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह पता चला है कि घुलनशील उर्वरकों का ड्रीप पद्धति द्वारा उपयोग करने के एक तिहाई उर्वरकों की बचत होती है.
5. ड्रीप पद्धति द्वारा घुलनशील उर्वरकों के उपयोग से न केवल उर्वरकों की बल्कि श्रम की भी बचत होती है.
6. टपक सिंचाई पद्धति द्वारा पौधों को सूक्ष्म मात्रा में ही घुलनशील उर्वरक दिये जाते है, जो कि घुलनशील अवस्था में होने की वजह से पौधों द्वारा शीघ्र ग्रहण भी कर लिए जाते है. अतः भारी वर्षा या जल के द्वारा इनकी हानि नहीं होती.
7. इन उर्वरकों के साथ ही घुलनशील कीटनाशी, खरपतावरनाशी का उपयोग करने से श्रम की बचत होती है.
8. रेतीली व पथरीली भूमि में भी टपक सिंचाई पद्धति द्वारा घुलनशील उर्वरकों का उपयोग आसानी से किया जा सकता है.
9. इस विधि द्वारा पौधों को पोषक पदार्थों का एक समान वितरण होता है.
10. इसके द्वारा मृदा की भौतिक व रासायनिक गुणों का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. साथ ही जल व मृदा का किसी प्रकार की यांत्रिक क्षति नहीं पहुंचाती है.
सीमायें :-
1. टपक सिंचाई के साथ घुलनशील उर्वरक उपयोग करने से सिंचाई साधनों का अतिरिक्त खर्च बढ़ जाता है.
2. घुलनशील उर्वरक अत्यधिक मंहगे होते हैं.
3. सिंचाई के साथ उर्वरकों के उपयोग हेतु अधिक जानकारी की आवश्यकता होती है.
4. द्रव उर्वरकों की उपलब्धता हर स्थानों में होनी चाहिए.
आवश्यक उपकरण -
(1) वेन्चुरी इंजेक्टर -
यह उपकरण सस्ता होता है, जो कि निर्वात के द्वारा कार्य करता है. इसमें एक सक्शन पाइप लगी होती है. इस सक्शन में उर्वरक टंकी में डली रहती है. वेंचुरी में जब दबाव में अंतर आने से निर्वात उत्पन्न होता है, तब यह संक्शन पाइप टैंक में घुले उर्वरकों को खींचकर ड्रिप द्वारा जा रहे सिंचाई जल के साथ पौधों को वितरण करता है. वेंचुरी के द्वारा 30 से 120 लीटर पानी / घंटे की दर से संक्शन किया जाता है.
(2) फर्टिलाइजर इंजेक्टर पंप - यह एक पंप होता है, जो उर्वरक के घोल को सिंचाई जल की ओर पंप करता है. जब जल का बहाव रूक जाता है, तब यह पंप उर्वरक घोल के बहाव को भी बंद कर देता है. पंप के सक्शन की दर 40 ली. से 160 ली. प्रति घंटा तक होती है.
सावधानियां –
1. अगर ड्रिप लाईन में कोई छेद हो तो उसे तुरंत बंद करें अन्यथा उर्वरक की हानि होती है.
2. फसल को आवश्यकता से अधिक सिंचित न करें.
3. फर्टिलाइज़र इंजेक्टर पंप के सक्शन की दर पहले जांच ले तत्पश्चात सिंचाई व उर्वरक देने का समय निर्धारित करें.\
4. उर्वरकों की सांद्रता को पौधों की वृद्धि अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धारित करें.
लेखक:
ललित कुमार वर्मा, संतोष साहू, हेमंत कुमार,सुमीत
पंडित किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव (छ.ग.)
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