आप सब लोगों ने अभी तक हरे रंग का एलोवेरा देखा होगा. लेकिन आज हम आपको लाल रंग के एलोवेरा के पौधे के बारे में बताएंगे. आपको बता दें कि देश-विदेश में लाल रंग के एलोवेरा की मांग (Demand for Red Aloe Vera) बहुत ही अधिक है. दरअसल, इस पौधे में कई तरह के लाभकारी गुण मौजूद हैं. तो आइए जानते हैं कि लाल एलोवेरा की खेती कैसे की जाती है और इसे करने के क्या लाभ मिलते हैं.
लाल एलोवेरा के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for red aloe vera)
अगर आप भी अपने खेत में लाल एलोवेरा की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको सबसे पहले भूमि की तैयारी करनी होगी. ऐसे में आपको पहले खेत की मिट्टी (Farm soil) की अच्छे से जुताई करें और फिर उसमें सीढ़ी बनाएं. आपके खेत की मिट्टी समान रूप से समतल बनी होनी चाहिए.
खाद की मात्रा (Amount of Manure)
खेत की तैयारी के बाद आपको मिट्टी में अच्छी फसल के लिए खाद (Fertilizers) का भी इस्तेमाल करना चाहिए. इसके लिए आपको फसल की रोपाई के बाद 2.5 टन/हेक्टेयर वर्मीकम्पोस्ट के साथ 20 टन/हेक्टेयर फार्मयार्ड खाद का प्रयोग करना होगा और साथ ही दीमक पर नियंत्रण के लिए आपको 350-400 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करें.
मिट्टी (Soil)
एलोवेरा की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. ध्यान रहे कि मिट्टी में अच्छी जल निकासी होनी चाहिए. लाल एलोवेरा (red aloe vera) के लिए मिट्टी का PH मान 7-8.5 मात्रा में कार्बनिक पदार्थ वाली रेतीली मिट्टी होती है.
जलवायु (Climate)
लाल एलोवेरा की खेती (lal aloe vera ki kheti) के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में अच्छी से की जा सकती है. मिली जानकारी के मुताबिक, यह एलोवेरा शुष्क और गर्म क्षेत्रों से संबंध रखती है. अगर आप एलोवेरा की खेती ठंडे मौसम में करते हैं, तो आपको इसका अच्छा लाभ नहीं मिलेगा.
पानी (Water)
यह एलोवेरा की खेती (Cultivation of Aloevera) कम वर्षा वाले स्थानों में अच्छा प्रदर्शन देती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसकी खेती के लिए आपको अधिक पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है. इसकी रोपण करने के बाद ही आपको सिंचाई करने पर ध्यान देना चाहिए और साथ ही इसकी जब आप पत्तियों की कटाई कर दें, तो आपको तुरंत हल्के पानी से सिंचाई करनी चाहिए. अगर आप वर्षा वाले स्थान पर रहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि आपको इसकी फसल में अधिक पानी जमाव नहीं होने देना चाहिए.
अगर आप चाहे तो इसकी अच्छी फसल के लिए आप खेत में ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधि को अपना सकते हैं.
सूर्य प्रकाश (Sunlight)
लाल एलोवेरा के पौधे के लिए सबसे महत्वपूर्ण सूरज की रोशनी होती है. अगर आप इसे सही तरह से विकसित करना चाहते हैं, तो इसके लिए पौधों को एक दिन में 5-6 घंटे की तेज धूप की आवश्यकता होती है.
पौधों के बीच की दूरी (Distance Between Plants)
अगर आप इसे गमले में लगाते हैं, तो फिर एक गमले में एक ही पौधा लगाएं और वहीं अगर आप इसे खेत में लगाते हैं, तो पौधों से पौधों के बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए. इसके लिए आपको एक पौधे के बीच 60 सेमी x 30 सेमी की दूरी को बनाए रखना है. ताकि सभी पौधे सही तरीके से विकसित हो सकें.
कीट और रोग (Pests and Diseases)
लाल एलोवेरा की खेती के दौरान आपको कीट व रोगों का भी बेहद ध्यान रखना है. क्योंकि इसमें रोगों लगने की संभावना सबसे अधिक होती है, जोकि धीरे-धीरे पूरे पौधे को खराब कर देते हैं. आपकी जानकारी के लिए बात दें कि एलोवेरा में कवक रोग सबसे अधिक लगते हैं, जो पौधे की पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे और बेसल तने के झड़ने आदि कई तरह के रोगों को उत्पन करते हैं. इसके बचाव के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. जैसे कि पौधे में कभी भी रूक हुआ पानी न जमा होने दें. बरसात के मौसम में पौधे में जल निकास बनाएं. पौधे की सुरक्षा के लिए आपको खेत में फफूंदनाशकों का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा आपको इसकी खेती में विक स्रोतों जैसे कीटनाशक साबुन, कच्चे लहसुन का रस, नीम का तेल (10,000 पीपीएम), 2-3 मिलीलीटर प्रति लीटर के हिसाब से डालना चाहिए.
एलोवेरा की कटाई (Harvesting Aloe vera)
अब आप सोच रहे होंगे कि जैसे ही आपको एलोवेरा का पौधा बड़ा दिखाई दे, तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है इसके लिए आपको ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के 8 से 9 महीने पूरे होने चाहिए. ताकि पौधा अच्छे से कटाई के लिए तैयार हो सकें. ध्यान रहे कि जब आप लाल एलोवेरा के पौधों की कटाई कर रहे हैं, तो आपको इसके रस को नष्ट नहीं करना है.
क्या है लाल एलोवेरा के फायदे (What are the benefits of red aloe vera)
जिस तरह से हरे एलोवेरा के कई फायदे होते हैं. ठीक उसी प्रकार से लाल एलोवेरे के भी कई फायदे होते हैं. लाल एलोवेरा में एंटी-माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं.
एंटी-माइक्रोबियल गुण (Anti-microbial properties): यह मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद है. इससे फंगस और बैक्टीरिया की गतिविधियां को धीमा करने में मदद करता है.
त्वचा (skin): अगर आप इसे नियमित रूप से खराब व रूखी त्वचा पर लगाते हैं, तो आपको अवश्य फल मिलेगा. लाल एलोवेरा से झुर्रियां, सोराइसिस और त्वचा की जलन कम करने में काफी मदद मिलती है.
मधुमेह (Diabetes ): यह भी माना गया है कि लाल एलोवेरा मधुमेह में भी काफी असरदार होता है.
Share your comments