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राजस्थान में खरा सोना के नाम से मशहूर है सरसों, जानिए इसकी खेती की पूरी प्रक्रिया

राजस्थान राज्य में रबी की फसलों में सरसों एक महत्वपूर्ण फसल है. सरसों की खेती आम तौर पर समस्त राजस्थान में की जाती हैं. राजस्थान शुष्क प्रदेश होने की वजह से यहा पर सिंचाई के अभाव में सरंक्षित नमी में भी इसकी खेती आसानी से जाती है. इसीलिए सिंचाई की सुविधा के अभाव में भी इस फसल की उपज अच्छी होती है. इस फसल से कम सिंचाई सुविधा एवं कम लागत में दूसरी फसलों के मुकाबले सर्वाधिक आय प्राप्त होती है. सिंचित क्षेत्रो में 3-4 सिंचाई में सरसों की फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है.

KJ Staff
Mustard Crop
Mustard Crop

राजस्थान राज्य में रबी की फसलों में सरसों एक महत्वपूर्ण फसल है. सरसों की खेती आम तौर पर समस्त राजस्थान में की जाती हैं. राजस्थान शुष्क प्रदेश होने की वजह से यहा पर सिंचाई के अभाव में सरंक्षित नमी में भी इसकी खेती आसानी से जाती है. इसीलिए सिंचाई की सुविधा के अभाव में भी इस फसल की उपज अच्छी होती है. इस फसल से कम सिंचाई सुविधा एवं कम लागत में दूसरी फसलों के मुकाबले सर्वाधिक आय प्राप्त होती है. सिंचित क्षेत्रो में 3-4 सिंचाई में सरसों की फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है.

भूमि का चुनाव

दोमट एवं हल्की दोमट मिट्टी सरसों के लिए अधिक उपयुक्त है. सरसों के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी अच्छी रहती है. लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी सरसों के लिए ठीक नहीं रहती हैं. सरसों हल्की ऊसर भूमि में भी बोयी जा सकती है.

खेत की तैयारी

सरसों की खेती राजस्थान में बारानी एवं सिंचित दोनों प्रकार से की जाती है. बारानी खेती के लिए खेत को खरीफ में पड़त छोड़ना अच्छा रहता हैं. पहली जुताई वर्षा ऋतु में मिट्टी पलटने वाले हल से करना उचित होता है. इसके बाद 3-4 जुताई करके पाटा लगा के भूमि समतल कर लेना आवश्यक है.

भूमि उपचार

भूमिगत कीड़ों एंव दीमक की रोकथाम के लिए मिथाईल पेराथियान 2 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हैक्टयेर की दर से बुवाई से पहले अन्तिम जुताई पर भूमि मे मिला दें.

बुवाई का समय

सरसों की बुवाई में समय का खास ध्यान रखा जाता है. सरसों की बुवाई देर से करने पर उपज में भारी कमी होती है. साथ ही चेपा तथा सफेद रोली जैसे कीटों का भी प्रकोप अधिक बढ़ जाता है. इसीलिए सरसों की बुवाई सही समय पर करना काफी जरूरी है. बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए. सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई अक्टूबर के अन्त तक अवश्य कर देनी चाहिए. अगर सिंचित क्षेत्रों में देरी से बुवाई करनी हो तो 25 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक कर सकते हैं. सिंचित क्षेत्रों में पलेवा देकर बुवाई करनी चाहिए.

बीज दर

सरसों की एक हैक्टेयर में बुवाई करने के लिए शुष्क क्षेत्रों में 4-5 किलोग्राम प्रति हैक्टयेर बीज पर्याप्त रहता हैं तथा सिंचित क्षेत्रों के लिए 2.5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टयेर पर्याप्त होता हैं.

दूरी

सरसों की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 सेंटीमीटर रखें तथा पौधों से पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें. असिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई नमी के अनुसार रखें. सिंचित क्षेत्रों में 3-5 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करें.

बीजोपचार

बुवाई से पहले सरसों के बीज को मैन्कोजेब ढाई ग्राम या कार्बेण्डेजिम 2.0 ग्राम या एप्रोन 35 एस. डी. 5-6 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें. सरसों को मोयला के प्रकोप से बचाने के लिए इमेडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू. एस. 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोयें.

उन्नत किस्में एवं उनका विवरण

वरूणा (टी-59) : यह किस्म मध्यम कद के पौधे वाली हैं. इस किस्म के पौधे की शाखाएं फैली होती हैं. 125-130 दिन में पक कर तैयार होने वाली इस किस्म की फलियां चौड़ी व छोटी होती हैं. मोटे तथा काले रंग के दाने वाली इस किस्म में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत तक होती हैं. असिंचित अवस्था में इसकी उपज 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सिंचित अवस्था में 16-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती हैं.

क्रान्ति (पी. आर. 15) : यह किस्म 125-130 दिन में पक जाती हैं तथा असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म हैं. इसके पौधे 155 से 200 सेंटीमीटर ऊंचे ढीले किस्म के पत्तियां रोयेंदार, तना चिकना और फूल हल्के पीले रंग के होते हैं तथा दाना मोटा व कत्थई रंग का होता हैं जिसमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है. यह किस्म वरूणा की अपेक्षा अल्टरनेरिया रोग व पाले के प्रति अधिक सहनशील हैं.

आर. एच. 30 : असिंचित व सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह किस्म गेहूँ, चना व जौ के साथ मिश्रित खेती के लिए भी उपयुक्त हैं. देरी से बुवाई के लिए उपयुक्त यह किस्म 196 सेंटीमीटर ऊंची, 5-7 प्राथमिक शाखाऐं लिए मध्यम आकार की पत्तियों वाली होती हैं. 45-50 दिन में फूल आने लगते हैं और फसल 130 से 135 दिन में पक जाती हैं. इसके दाने मोटे होते हैं. सिंचित व असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं.

पूसा जय किसान (बायो-902) : 115-120 दिन में पकने वाली इस किस्म के पौधे की ऊंचाई लगभग 175 से 185 सेंटीमीटर होती हैं. यह अधिक फलियों वाली किस्म हैं. फलियों का आकर अन्य किस्मों की अपेक्षा मोटा होता हैं. इसके दाने कालापन व भूरे रंग के तथा मोटे होते हैं. इसके 1000 दाने का वजन 7-4 ग्राम होता है. दानों में तेल की मात्रा 39-40 प्रतिशत तक होती है. यह सूखे को तथा सफेद रोली को भी बहुत हद तक सहन कर लेती है. इसमें फलियों के पकने पर दाने झड़ने की समस्या भी कम होती है. इसकी पैदावार प्रति हैक्टेयर 18 से 22 क्विंटल है.

लक्ष्मी : 140-150 दिनों में पककर तैयार होने वाली यह किस्म 180-190 सेंटीमीटर तक ऊंची होती हैं तथा इसमें फलियाँ भी अधिक लगती है. दानों में 40-41 प्रतिशत तेल की मात्रा वाली इस किस्म के 1000 दानों का भार 5-6 ग्राम हैं तथा इसकी औसत उपज 20-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है.

पूसा बोल्ड : यह एक मध्यम कद वाली किस्म है जो असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है. इसके 1000 दानों का वजन 6 ग्राम होता हैं जो अन्य किस्मों से डेढ गुणा है. 130-148 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म की शाखाएं फलियों से लदी हुई व फलियां मोटी होती है. दानों में तेल की 37-38 प्रतिशत मात्रा वाली इस किस्म की औसत उपज 12-16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है.

आर. एल. एम. 619 : अधिक फलियां वाली इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 170 से 180 सेंटीमीटर तक होती हैं. इसकी पकाव अवधि 140 से 145 दिन है. मोटे आकार के दानों वाली इस किस्म के 1000 दानों का भार 5.5 ग्राम होता है जिसमें तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक होती है. अच्छी परिस्थितियों में इसकी औसत पैदावार 20 से 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है.

आर. जी. एन.-48 : पाले के लिए उच्च प्रतिरोधक यह किस्म देरी से बुवाई के लिये उपयुक्त है. आल्टरनेरिया पत्ति एवं फली झुलसा रोग और छाछ्या के लिये प्रतिरोधी इस किस्म के दानों में तेल की मात्रा 40.62 प्रतिशत होती हैं साथ ही इस किस्म में सफेद रोली डाउनी मिलड्यू, स्केलेरोटिनिया व तना गलन का प्रकोप कम होता है. अच्छी परिस्थितियों में इसकी औसत पैदावार 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है.

खाद एवं उर्वरक

सरसों की खेती के लिए सिंचित क्षेत्रों में बुवाई से 3-4 सप्ताह पूर्व प्रति हैक्टेयर 16-20 टन अच्छा सड़ा हुआ गोबर की खाद डालकर खेत तैयार करें. असिंचित क्षेत्रों में सरसों की फसल के लिए सड़ा गोबर का खाद 16-20 टन प्रति हैक्टेयर की दर से वर्षा से पहले ढेरियों में डाल दें. इसे एक दो वर्षा के बाद खेत में फैला दें और जुताई कर दें.

सरसों की सिंचित फसल के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन 30-40 किलोग्राम फॉस्फोरस, अगर डी. ए. पी. से दे रहे हैं तो, 250 किलोग्राम जिप्सम या 40 किलोग्राम सल्फर प्रति हैक्टेयर काम में लें और अगर फॉस्फोरस एस. एस. पी. से दे रहे हैं तो 80 किलोग्राम जिप्सम प्रति हैक्टेयर अंतिम बुवाई के समय भूमि में बिखेर कर दें.

बुवाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा ऊर कर दें. बची हुई नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के साथ दें. असिंचित क्षेत्र में ऊपर बताए गए उर्वरकों की आधी मात्रा ही बुवाई के समय ऊर कर दें.

बुवाई के समय मृदा में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 125 ग्राम ह्यूमिक अम्ल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से मिलाकर साथ देने पर तथा बुवाई के 50 व 60 दिन बाद 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट व 2 प्रतिशत यूरिया के साथ खड़ी फसल में दो बार पर्णीय छिड़काव करने पर उपज में वृद्धि पाई गयी हैं.

फूल बनते समय 500 पीपीएम थायोयूरिया (5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) अथवा 100 पीपीएम थायोग्लाइकोलिक अम्ल (एक ग्राम 10 लीटर पानी) अथवा 0.1 प्रतिशत गंधक के तेजाब के दो छिड़काव करें. प्रथम छिडकाव के 20 दिन बाद दूसरा छिडकाव करें.

बाजरा-सरसों फसल प्रणाली में बाजरे की फसल के बाद उगायी जाने वाली सरसों की फसल में नत्रजन व फास्फोरस के साथ 30 किलोग्राम पोटाश, 100 किलोग्राम जिप्सम, 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 10 किलोग्राम फेरस सल्फेट प्रति हैक्टयेर बुवाई के समय देना लाभदायक होता है.

सिंचाई

सरसों की फसल को दो से तीन सिंचाईयों की आवष्यकता होती है. पहली सिंचाई शाखा व फूल आते समय (28 से 35 दिन) तथा बाद की सिंचाई आवश्यकतानुसार (45-50 या 70-80 दिन बाद) करें.

जल बचत हेतु सरसों की बुवाई के क्रमशः 25, 50, 75, 95 व 110 दिन बाद फव्वारा (स्प्रिंकलर) द्वारा सिंचाई करें. प्रत्येक सिंचाई के लिए चार घंटे फव्वारा चलायें.

खरपतवार प्रबन्धन एवं निराई-गुड़ाई

बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें. अगर पौधों की संख्या अधिक हो इसी समय छटाई करके पौधें निकाल दें तथा पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर करें.

सरसों की फसल में ओरोबंकी खरपतवार की समस्या अधिक होती है. इसके प्रबन्धन के लिए 200 किलोग्राम नीम की खली बुवाई के समय कतारों में डालें तथा बुवाई के बाद फसल उगने से पहले 0.500 किलोग्राम पैन्डीमेथालिन प्रति हैक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें व बुवाई के बाद 60 दिन पर हाथ से खरपतवार उखाड़ना उपयुक्त पाया गया है.

सरसों की फसल में प्याजी की रोकथाम के लिए 1 लीटर सक्रिय तत्व फ्लूक्लोरेलिन प्रति हैक्टयेर बुवाई से पहले, जहाँ पलेवा देकर बुवाई की जानी हो, भूमि में मिलाएं और जहाँ सूखी बुवाई की जानी हो वहां पहले बुवाई करें इसके बाद फ्लूक्लोरेलिन का छिडकाव करके सिंचाई कर दें.

खरपतवार प्रबन्धन हेतु सरसों की बुवाई के बाद तथा फसल उगने से पहले आइसोप्रोट्यूरॉन 0.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

भूमि उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा 4 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर व बीजोपचार के लिये कार्बेण्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

ओरोबंकी (आग्या या भूमिफोड़)

इसके रोकथाम के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें

1. लगातार एक ही खेत में सरसों की फसल ना लें.

2. प्रभावित क्षेत्र में फसल चक्र अपनायें.

3. पराश्रयी पौधों को बीज बनाने से पहले ही उखाड़ कर नष्ट कर दें तथा

4. रोग रोधक किस्मों का प्रयोग करें (जैसे-दुर्गमणि).

सरसों को पाले से बचाने के उपाय

सरसों की फसल को पाले के प्रभाव से बचाने के लिए सम्भावित पाला पड़ने के समय सिंचाई करें या फसल में धुआं करें. अगर सिंचाई तथा धुआं करना सम्भव ना हो तो 0.1 प्रतिशत (1 लीटर पानी में 1 मिलीलीटर) गंधक के तेजाब का छिड़काव करें (यानि एक लीटर तेजाब 1000 लीटर पानी में मिलाकर एक हैक्टेयर में स्प्रेयर द्वारा पौधों पर अच्छी तरह से छिड़काव करना चाहिए). सम्भावित पाला पड़ने की अवधि में इसे दोहराते रहना चाहिए.

फसल की कटाई

सामान्यतया सरसों की फसल की कटाई मार्च तक कर ली जाती है. जब पत्ते सूखने या झड़ने लगे और फलियाँ पीली पड़ने लगे तब फसल की कटाई कर लें. कटाई में देरी करने से फलियाँ चटकने लगती हैं और उपज में भारी नुकसान होता है.

फसल संरक्षण

सरसों फसल में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान तथा उनके रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय करें.

कीट

आरा मक्खी (मस्टर्ड सा लाई) और पेन्टेड बग

ये कीट सरसों की फसल को अंकुरण के 7 से 10 दिन में अधिक हानि पहुंचाते हैं. इनकी रोकथाम के लिए मिथाईल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या कार्बेरिल 5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर प्रातः या सायं भुरकें या प्रति हैक्टेयर 1.2 लीटर मैलाथियॉन (50 ई.सी.) या 100 ग्राम थायोमिथेक्जाम 25 डब्लयू. जी. को पानी में मिलाकर छिड़काव करें. यदि आवश्यक हो तो 15 दिन पश्चात् पुनः छिड़काव करें.

हीरक तितली (डायमण्ड बैंक मौथ)

डायमण्ड बैंक मौथ की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस (25 ई.सी.) 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़के.

मोयला (एफिड्स)

यह सरसों का एक महत्वपूर्ण कीट है. यह सरसों की फसल को बहुत हानि पहुचाता है. इसकी रोकथाम हेतु मैलाथियान 5 प्रतिशत या मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर के हिसाब से भुरकें अथवा थायोमिथेक्जाम (25 डब्लयू. जी.) 100 ग्राम या डाईमिथोएट (30 ई.सी.) 875 मिलीलीटर या कार्बेरिल (50  प्रतिशत घुलनशील चूर्ण) 2.5 किलोग्राम या क्लोरोपयरीफोस (50 ई.सी.) या मैलाथियॉन (50 ई.सी.) 1.2 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस 1000 मिलीलीटर प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर छिड़काव करें. यदि आवश्यक हो तो 15 दिन पश्चात् पुनः छिड़काव करें.

रोग

झुलसा (ब्लाईट) तुलासिता (डाऊनी मिल्ड्यू) एवं सफेद रोली

सरसों में लगने वाले ये महत्वपूर्ण रोग है. इनकी रोकथाम के लिए लक्षण दिखाई देते ही या फसल बोने के 45, 60 तथा 75 दिन बाद मैन्कोजेब या जाईनेब या ब्लाईटोक्स 50 पानी में मिलाकर छिड़काव करें. छिडकाव के समय ध्यान रखें, प्रथम छिडकाव में दवा की मात्रा 1.4 किलोग्राम रखे तथा दुसरे व तीसरे छिडकाव में दवा की मात्रा 2 किलोग्राम प्रति हैक्टयेर रखें. सफेद रोली के प्रभावी नियंत्रण हेतु लक्षण दिखाई देने पर रिडोमिल एम जैड 2 ग्र्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें अथवा ट्राईकोडर्मा डिफ्यूज्ड 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी से घोल बनाकर छिड़काव करें. आवश्यकतानुसार पुनः दोहरायें.

छाछ्या

इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही 20 किलो गंधक का चूर्ण प्रति हैक्टेयर भूरकें या 2.5 किलोग्राम घुलनषील गंधक अथवा 750 मिली लीटर डाइनोकेप (कैराथेन) 30 ई.सी. प्रति हैक्टयेर पानी में मिलाकर छिड़के.

तना गलन

इस रोग के लक्षण के रूप में तने पर लम्बे पनिहल धब्बे बनते हैं, जिन पर कवक जाल रूई की तरह फैला रहता हैं. बाद में रोग के कारण पौधे मुरझा कर सूखने लगते हैं तथा अन्त में तना फट जाता है. रोग ग्रसित तने की सतह पर या मज्जा में भूरी-सफेद या काली-काली गोल आकृति की संरचनाऐं (स्केलेरोशिया) पायी जाती है. इसकी रोकथाम के लिए बुवाई के 65 दिन बाद कार्बेन्डाजिम एक ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिडकाव करें या 100 ग्राम प्रति हैक्टयेर थायोमिथेक्जाम (25 डब्लयू. जी.) पानी में घोल बना कर छिडकाव करें.

 

लेखक :

डॉ. शौकत अली, डॉ. बलबीर सिंह, राजेंद्र नागर और संगीता शर्मा1

कृषि विज्ञान केन्द्र, चांदगोठी, चूरू-331305 (राजस्थान)

1स्नातकोतर, गृह विज्ञान (वस्त्र विज्ञान एवं परिधान), एम. जे. आर. पी. वि. वि.,जयपुर, राजस्थान

English Summary: Rajasthan is famous as the name of the true mustard, know the whole process of cultivation Published on: 04 September 2018, 04:59 AM IST

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