देश में कई प्रकार की दलहन फसलों की खेती की जाती है. इनमें मूंग, मसूर, अरहर, उड़द, चना और मटर प्रमुख फसलें हैं. फसलीय चक्र में दलहन की बुवाई सामान्यतः रबी या खरीफ के सीजन में की जाती है. ये अनाज की श्रेणी में आती हैं. दालों को संपूर्ण आहार और रोगनाशी माना जाता है. इनमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, जिंक और विटामिन्स की भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.
रबी सीजन में की जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें
Chana Ki Kheti: खरीफ फसल या धान की कटाई के बाद खेत में हैरो लगाकर क्रॉस जोताई कर दें. अब खेत में पाटा लगाकर समतल कर दें. चना की खेती के लिए पानी सोखने वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है. बीजों की बुवाई के लिए मध्य अक्टूबर से नवंबर तक का महीना अच्छा माना जाता है. बीज बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 75 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. बुवाई से पहले बीजों को राईजोबियम कल्चर से उपचारित कर लें.अब इन बीजों को 5-8 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई कर दें.
अच्छी फसल वृद्धि के लिए चना की फसल को दो सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई फूल आने से पहले एवं दूसरी फलियां निकलने पर. बुवाई के 20-25 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करना जरूरी होता है. चना की प्रमुख किस्मों में जीएनजी गणगौर, जीएनजी मरुधर अच्छी मानी जाती हैं. देरी से बुवाई के लिए राधे, उज्जैन, वैभव भी चना की उन्नत किस्में हैं.
Matar Ki Kheti: मटर की खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. हालांकि मटर की खेती बलुई, चिकनी मिट्टी में भी आसानी से की जा सकती है. खरीफ कटाई के बाद किसान दो-तीन बार खेत की जोताई कर दें. अब इस पर पाटा लगा दें. बुवाई करने के लिए एक एकड़ के लिए 35-40 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें. बुवाई से पहले बीजों को एक बार राइजोबियम लैगूमीनोसोरम के घोल से उपचार करें. अब छांव में सुखाए गए बीजों को मिट्टी में कम से कम 2-3 सेंटीमीटर गहरा बोएं.
मटर की बुवाई के लिए पर्याप्त मात्रा में खेत में नमी होना आवश्यक है.
खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली गोड़ाई बुवाई के तीन हफ्ते बाद की जा सकती है. मटर की फसल में पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी फलियां भरने से पहले कर सकते हैं. मटर की फसल को रोग बहुत जल्दी लगते हैं इसलिए किसान उपचार के लिए कार्बरिल की 900 ग्राम मात्रा को प्रति 100 लीटर पानी में डालकर स्प्रे कर सकते हैं. मटर की उन्नत किस्मों में पंत, लिंकन, काशी उदय, पूसा प्रगति और बोनविले प्रमुख हैं.
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Masoor Ki Kheti: मसूर के लिए दोमट या नमी सोखने वाली मिट्टी बढ़िया मानी जाती है. खेत की तैयारी के लिए किसान खेत में 2-3 बार क्रॉस जोताई कर इसमें पानी लगाकर सूखने के लिए छोड़ दें. 24-48 घंटे बाद इसमें पाटा लगा दें. बीज बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 35-40 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें. बीज की बुवाई पंक्तियों में करें, इसमें पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-30 सेंटीमीटर रखें. कृषि विशेषज्ञ बीज बुवाई के लिए संध्या काल को उचित मानते हैं.
मसूर की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए रासायनिक उर्वरक के तौर पर 40 किलोग्राम फास्फोरस, 15-20 किग्रा नाइट्रोजन, 20 किग्रा पोटाश और 20 किग्रा सल्फर का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें. पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए एक या दो सिंचाई पर्याप्त मानी जाती हैं. किसान सिंचाई के लिए स्प्रिंकल विधि का प्रयोग कर सकते हैं. मसूर की फसल को रोगों से बचाना आवश्यक है. रोगों से बचाव के लिए किसान मैंकोजेब 45 डब्ल्यू.पी. का 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 10-12 दिन के बाद प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
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