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सफ़ेद पेठे की खेती से कम समय में पाएं ज्यादा मुनाफा, पढ़ें सम्पूर्ण जानकारी

आप सभी ने कहीं न कहीं पेठे का स्वाद जरूर लिया होगा और आपके मन में ये जिज्ञासा जरूर उठी होगी कि आखिर यह बनता कैसे है, तो आइए इस लेख से जानते हैं कि कैसे होती है सफ़ेद पेठे की खेती (Ash Gourd) ....

निशा थापा
सफ़ेद पेठे की खेती से कम समय में पाएं ज्यादा मुनाफा, पढ़ें सम्पूर्ण जानकारी
सफ़ेद पेठे की खेती से कम समय में पाएं ज्यादा मुनाफा, पढ़ें सम्पूर्ण जानकारी

रंग-बिरंगे पेठे आगरा की पहचान हैं. इसकी मांग देश के लगभग प्रत्येक कोने में है और बाजार में ये सूखा पेठा, काजूपेठा व नारियल पेठा के नाम से उपलब्ध है. इससे जुड़े उद्योग कच्चे माल के रूप में कद्‌दूवर्गीय समूह के फलों का प्रयोग करते हैं, अतः ये सीधे खेतों में उगाया जाता है और विभिन्न प्रक्रियाओं से होकर आपके लिए मिठाई उत्पाद के रूप में आता है. 

पेठा कद्दू सब्जी के रूप बहुत कम प्रयोग किया जाता है. लेकिन इसके उलट मिठाई के रूप में बहुत अधिक मांग है. किसानों के जागरूक न होने के कारण मांग के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पाता है. क्योंकि इसका अंतिम उत्पाद सुखे मिठाई के रूप में होता है, अतः यह लंबे समय तक संग्रहित किया जा सकता है.

उन्नत प्रजाति :- पूसा हाइब्रिड 1, हरका चंदन, नरेंद्र अमृत, सीएस- 19, सी ओ 1, कल्याणपुर पंपकिंग 1 आदि प्रमुख प्रजातियाँ हैं.

बुवाई का समय- जुन-जुलाई व नदियों के किनारे नवंबर-दिसबंर माह में बोया जाता है.

बीज की मात्रा- एक हेक्टेयर खेत के लिए 7-8 किलोग्राम होनी चाहिए. पेठा कद्दू की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट मृदा अच्छी मानी जाती है. बुवाई से पहले पाटा लगाकर मृदा को भुरभुरी बना लेना चाहिए.

खाद और उर्वरक मात्रा - कद्दू पेठे के बुवाई के समय 1 हेक्टेयर खेत के लिए 80-80-40, N-P-K की आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय बाकी 3-4 पत्ती आने पर देनी चाहिए. सूखे के स्थिति में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. सामान्यत: वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है.

कीट एवं बीमारियों से बचाव

जैसा कि यह कद्दूवर्गीय फसल है अतः फल मक्खी का प्रकोप इसमें अधिक देखने को मिलता है. इससे बचाव के लिए 10% कार्बोनिल का छिड़काव कीटों के प्रकोप के समय करना चाहिए. कहीं-कहीं सफेद ग्रब और लालरी कीट भी दिख जाते हैं तो इनसे बचने के लिए अंतराल पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का छिड़काव करें. बीमारीयों में चूर्णी फफूंद, मृदु रोमिल आसिता, मोजैक आदि पाई जाती है, जो मौसम के अनुकूल  होने पर उत्पन्न होता है. इसमें पत्तियों पर सफेद पाउडर गोल संरचना बनती है और कुछ समय बाद सूख जाती है. उपरोक्त सभी बीमारीयों से बचने के लिए कार्वेडाजिम, मैकोलेब, मेटालेक्जिल आदि का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करें.

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फलों का उत्पादन व लाभ

बुवाई के 3-4- माह में कददू पेठा की फसल तुड़ाई योग्य हो जाती है. तुड़ाई से पहले फलों पर सफेद चूर्वी परत दिखायी देती है तो ये तुड़ाई के लिए उपयुक्त समय है. उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर में लगभग 500 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है. बाजार भाव लगभग 700-1200 रुपये प्रति क्विंटल रहता है. विशेषज्ञों की माने तो एक हेक्टेयर खेत में जुताई, बीज, उर्वरक, सिंचाई आदि जोड़ने पर 35000 रुपये का लगभग खर्च आता है. अतः यदि उत्पादन अच्छा हुआ तो 3 लाख से 4.50 लाख की रुपए आय प्राप्त हो सकती है.

यह लेख उत्तरप्रदेश संत कबीर नगर के आशुतोष सैनी द्वारा साझा किया गया है.

English Summary: Petha/ash gourd farming complete information, bumper profit will be available with production Published on: 30 November 2022, 12:52 PM IST

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