फसल चक्र के अनुसार मटर की खेती अगर साल में एक बार की जाए तो मिट्टी की उर्वरक क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. इसीलिए कृषि जागरण के इस लेख के माध्यम से आज किसान भाईयों और बहनों को मटर की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं.
मटर की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी कुछ इस प्रकार है:
मटर के बारे में सामान्य जानकारी
मटर की फसल सर्दी में होने वाली फसल है और इसकी फलियां को सब्जी के रुप में उपयोग किया जाता है साथ ही इनके पकने के बाद सूखी फलियों से दाल भी बनाई जाती है. मटर की खेती मुख्य रुप से हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है. यह सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है.
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मटर की खेती करने के लिए अक्टूबर-नवंबर का महीना सबसे ज्यादा उपयुक्त होता है और इसके बीज को उगने के लिए 22 डिग्री सेल्सियस के तापमान की जरुरत होती है. बीज के अंकुरित होने के बाद इसके अच्छे विकास व फली में बेहतर दाने पड़ने के लिए 10 से 15 सेल्सियस के बीच का तापमान होना चाहिए.
मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मटर की खेती कई अलग- अलग प्रकार की मिट्टी में की जाती है, लिकन इसकी खेती करने के लिए रेतली दोमट और चिकनी मिट्टी ज्यादा उपयुक्त होती है. इसके अच्छे उत्पादन के लिए खेत में पानी निकासी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए. मिट्टी का पी एच 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
मटर की प्रसिद्ध किस्में
पीजी 3: मटर की ये किस्म छोटे कद वाली और 135 दिनों में तैयार हो जाती है. इसमें सफेद रंग के फूल और दाने क्रीमी सफेद रंग के आते हैं. सब्जी बनाने के लिए यह काफी अच्छी मानी जाती है. इसके अलावा यह रोग प्रतिरोधी भी होती है.
पंजाब 88: मयर की ये किस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा तैयार की गई है. इसकी फलियां गहरी हरी और मुड़ी हुई होती हैं और 100 दिनों में ये पक कर तैयार हो जाती है. इसके अलावा 62 क्विंटल प्रति एकड़ इसकी हरी फलियों की पैदावार होती है.
मटर अगेता 6: ये किस्म भी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा तैयार की गई है और यह अगेती और छोटे कद की होती है. इसके दाने काफी मुलायम होते हैं. इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
मीठी फली: यह किस्म सिर्फ 90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और इसका स्वाद मीठा होता है. इसलिए इसका नाम मीठी फली रखा गया है. इसकी औसतन उपज 47 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
एपी 3: यह किस्म कम समय में पक कर तैयार होनी वाली किस्म है. अगर इसे अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में लगाया जाए तो यह किस्म बुवाई के 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी औसतन उपज 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
खेती के लिए जमीन तैयार करने की विधि
खरीफ सीजन की फसल कटने के बाद खेत को तैयार करने के लिए हल से 1 से 2 बार जुताई करें और हल से जोतने के बाद 2 या 3 बार तवियों या हैरो से जोताई करें. इसके अलावा पानी इकट्ठा न हो उसके लिए खेत को अच्छी तरह से समतल कर लें और बुवाई करने से पहले खेत की एक बार सिंचाई कर दें ताकि बीज आसानी से अंकुरित हो सके.
बुवाई करने का समय और तरीका
मटर की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अक्टूबर से मिड नवंबर के बीच बिजाई पूरी कर लेनी चाहिए. लेकिन इसके आगे अगर बुवाई करते हैं तो उसका असर उत्पादन क्षमता पर देखने को मिलता है. बुवाई करते समय ध्यान रखें कि बीज को मिट्टी में 2 से 3 सै.मी. गहराई में बोएं और बीज से बीज की दूरी 30 सैं.मी. x 50 सैं.मी. रखें.
बीज की मात्रा
मटर की बवाई करने के लिए 35 से 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें. इसके अलावा बुवाई करने से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें. ऐसा करने से उत्पादन क्षमता में 8 से 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है.
खाद की मात्रा
मटर की खेती में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई के समय प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलो यूरिया, 25 किलो फासफोरस का प्रयोग करें.
खरपतवार नियंत्रण
मटर की किस्म के आधार पर गुड़ाई की जरुरत होती है. पहली गुड़ाई पेड़ में 2-3 पत्ते आने के बाद की जाती है और दूसरी गुड़ाई फूल निकलने से पहले की जाती है.
सिंचाई कैसे करें
मटर की बुवाई करने से पहले सिंचाई करना जरुरी होता है. लेकिन अगर आप धान के खेत में मटर लगा रहे हैं तो उसमें पहले से ही नमी रहती इसलिए बिना सिंचाई के भी बुवाई की जा सकती है. इसके अलावा बुवाई करने के बाद सिंचाई की जाती है जिसमें पहली सिंचाई फूल आने से पहले औऱ दूसरी सिंचाई फलियां भरने की अवस्था में की जाती है.
फसल की कटाई का समय
मटर की फलियों की तुड़ाई तब करनी चाहिए जब मटर का रंग गहरा हरा होने लगे. 6 से 10 दिनों के अंतराल के बाद 4 से 5 तुड़ाइयां की जा सकती हैं. इसके अलावा फसल की उपज मिट्टी की उपजाऊ शक्ति औऱ खेत में इसके प्रबंधन पर निर्भर करती है.
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