पपीता स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर और देश का पांचवां लोकप्रिय फल है. इसमें विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. हमारे देश में यह बारह महीने ही लगाई जाती है. पपीता की खेती करना किसानों के लिए फायदे का सौदा हो सकती है. दरअसल, पपीते का पौधा जल्दी ग्रोथ करता वहीं इससे उपज अधिक होती है. ऐसे में पपीता की खेती कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली है. इसकी खेती करके किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं. इसका कच्चा और पक्का दोनों प्रकार के फल उपयोगी है. तो आइए जानते हैं पपीता की उन्नत खेती कैसे करें और इसकी प्रमुख उन्नत किस्में कौन-सी है-
पपीता की खेती के लिए जलवायु (Climate for Papaya Cultivation)
पपीता की खेती के लिए उष्ण जलवायु उत्तम मानी जाती है. इसकी फसल पर ठंड के मौसम में पाले का ज्यादा असर होता है. ऐसे में गर्म जलवायु में इसकी फसल लेना चाहिए. वहीं अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है. अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए. 10 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में इसकी फसल ली जा सकती है.
पपीता की खेती के लिए क्यारी कैसे लगाए (How to plant for Papaya Cultivation):
इसके लिए 15 सेंटीमीटर ऊँची और एक मीटर चौड़ी क्यारी तैयार करके उसमें गोबर की खाद डालें. जिसमें उन्नत किस्म का बीज उपचारित करने के बाद डालें. बीज को आधा सेंटीमीटर गहराई में मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए. अब इसमें नियमित पानी देते रहे. जब पौधे में 4 से 5 पत्तियां आ जाये और पौधा लगभग 25 सेंटीमीटर ऊँचा हो जाए तब इसकी खेत में रोपाई करना चाहिए.
पपीता की खेती कब करना चाहिए (When should we Cultivate Papaya)
यूं तो पपीता बारह महीनों होता है लेकिन इसकी गुणवत्तापूर्ण और ज्यादा पैदावार के लिए इसे जुलाई -अगस्त महीने में लगाना चाहिए. गड्ढों को तैयार करके कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. इसके बाद हर गड्ढे में दो पौधे लगाना चाहिए. जब पौधे में फूल आने लगे उस समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि मादा पौधों को खेत में रहने दें लेकिन 10 प्रतिशत नर पौधों को छोड़कर बाकी नर पौधों को निकाल देना चाहिए.
पपीता की खेती के लिए उर्वरक (Fertilizer for Papaya Cultivation)
पौधे के अच्छे विकास के लिए हर साल प्रति पौधे में 10 से 15 किलो गोबर या वर्मीकम्पोस्ट खाद, 100 ग्राम यूरिया, 400 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 150 ग्राम पोटाश डालना चाहिए. गोबर खाद डालते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इसे जून और जुलाई के महीने में डालें.
पपीता की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट और रोग (Major Diseases in Papaya Crop)
नेमाटोड- नेमाटोड यानी सूत्रकृमि के कारण इसके पौधे की जड़ों में गांठे पड़ने लगती है. जिस वजह से पौधा कमजोर होकर पीला पड़ जाता है. नतीजतन, पौधे में फल बेहद छोटे और कम लगते हैं.
नियंत्रण-नेमाटोड के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए नर्सरी तैयार करते समय कार्बोफ्यूरान 3 जी 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दें.
स्टेम राॅट-यह एक प्रकार का विगलन रोग जिसके प्रभाव से पौधे के तने में भूमि की सतह से सड़न लगने लगती है. इस वजह से इसके पौधे की पत्तियां और फल पीला होकर गिरने लगता है.
नियंत्रण-इस रोग से बचाव के लिए खेत में जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए. वहीं रोग लगने के बाद रोगी पौधों को हटा देना चाहिए. नर्सरी तैयार करते समय बीजों को थाइरम 3 ग्राम मात्रा में लेकर प्रति किलो बीज को उपचारित करना चाहिए.
लीफ कर्ल एवं मोजेक-यह एक विषाणु जनित रोग है. इसके प्रकोप से पत्तियां विकृत, छोटी, कुचित और सिकुड़ जाती है. इस वजह पेड़ों पर फूल और फल नहीं आते हैं.
नियंत्रण-इसके नियंत्रण के लिए रोगी पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए. साथ ही फास्फोमिडाॅन 85 एसएल का छिड़काव करना चाहिए.
पपीता की प्रमुख किस्में (Varieties of Papaya)
इसकी प्रमुख हाइब्रिड किस्में इस प्रकार है जैसे पूसा नन्हा, सीओ 1, पूसा डेलिसियस, कुर्ग हनी, पूसा मजेस्टी, अर्का प्रभात, अर्का सूर्या, सोलो, वाशिंगटन, रेड लिटी और पंत पपाया.
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :
राजस्थान एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट
पता : दुर्गापुरा, जिला जयपुर, राजस्थान.
फोन नं. : 0141-2550229
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