भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र अहम योगदान देता है. देश की लगभग आधी आबादी कृषि पर निर्भर है, जिसके लिए बड़े पैमाने में खेती की जाती है. फसल के अच्छे उत्पादन के लिए खेतों में रसायनिक उर्वरकों व खाद का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे उत्पादन में वृद्धि तो होती ही है साथ में किसानों को भी आर्थिक रूप से लाभ पहुंचता है.
मगर कैमिकल खाद व उर्वरक के अधिकतम उपयोग से जमीन को बहुत नुकसान पहुंचता है. यदि किसान आर्गेनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं तो मिट्टी को खराब होने से बचा सकते हैं. कैमिकल खाद से उगाई गई सब्जियां, फल व फसल भी मनुष्य को नुकसान पहुंचाती है. इसी कड़ी में आज हम इस लेख के माध्यम से खेती में बेहतर उत्पादन के लिए ऑर्गेनिक खाद की जानकारी देने जा रहे हैं.
बोन मील (Bone Meal)
बोन मील फसलों की अच्छी पैदावार के लिए उपयोग में लाया जाता है. इसे उच्च फास्फोरस उर्वरक कहा जाता है. बोन मील को मृत जानवारों की हड्डियों से बनाया जाता है. यह खास उर्वरक फसलों में कैल्शियम व फास्फोरस की कमी का पूरा करने का काम करता है. हालांकि इस प्रक्रिया में थोड़ा वक्त जरुर लगता है.
कंपोस्ट (Compost)
कार्बनिक व जैविक पदार्थों के मिश्रण से तैयार किया जाता है. इस कंपोस्ट के उपयोग से मिट्टी को पोषण मिलता है और साथ ही पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है. इसके अलावा पौधों को झुलसने से भी बचाता है. देश के अधिकतर किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
जीवामृत खाद (Jeevamrit)
जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए जीवामृत अमृत के समान है और फसल के लिए संजीवनी. जीवामृत को गोबर, गुड़, गौमूत्र व नीम के पत्तों से बनाया जाता है. यह पूरी तरह से जैविक खाद होती है. इसका उपयोग करने पर फसलों को पोषण मिलता है, साथ ही मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बढ़ती है.
देसी खाद (Manure)
भारत में पारंपरित तरीके से खेती करने वाले किसान देसी खाद का उपयोग करते हैं. खाद बनाने के लिए गाय, भैंस, बकरी, मुर्गियों के अपशिष्ट-गोबर का उपयोग किया जाता है. कृषि सलहाकार कहते हैं कि अच्छी फसल के लिए 180 दिन पुरानी खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए. क्योंकि जितनी पुरानी खाद होती है उतना ही पोषण फसलों को मिलता है.
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नीम लेपित यूरिया (Neem Coated Urea)
फसल के लिए नाइट्रोजन एक अहम भूमिका निभाता है. जिसके लिए किसान अक्सर रसायनिक खाद का रूख करते हैं. लेकिन नीम लेपित यूरिया अब इसकी कमी को पूरा करेगा. नीम की कोटिंग होने की वजह से इसमें नीम का पोषण शामिल हो जाता है, जो फसल के विकास में अहम योगदान देता है.
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