
भारत में गन्ने की खेती का अपना ही महत्व है. यह न केवल किसानों के लिए कमाई का जरिया है, बल्कि चीनी उद्योग की रीढ़ भी मानी जाती है. लेकिन बदलते मौसम और बढ़ते जल संकट के बीच, गन्ने जैसी जल-गहन फसल के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले पांच वर्षों में एक दर्जन से अधिक गन्ने की प्रजातियां विकसित की है, जो सर्फ 15 से 20% कम पानी में आसानी से तैयार हो जाती हैं. साथ ही 10 से 15% तक अधिक उत्पादन देती हैं.
कम पानी में अधिक उपज
आमतौर पर गन्ने की फसल में ज्यादा पानी की जरूरत होती है. लेकिन संस्थान द्वारा विकसित नई किस्मों में यह खपत 15 से 20% तक घटाई जा सकती है, जिससे किसान पानी बचाने के साथ-साथ उत्पादन भी बढ़ा सकेंगे. साथ इन नई प्रजातियों में चीनी की मात्रा अधिक होती है, जिसमें चीनी मिलों की रिकवरी दर भी बेहतर होती है.
गन्ने की नई विकसित प्रजातियां
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गन्ने की कई प्रजातियों में सीओएलके 14204, सीओ 15023, सीओपीबी 14185, सीओएसई 11453, एमएस 130081, वीएसआइ 12121, सीओ 13013, अवनी 14012, कोपी 11438 जैसी अच्छी गन्ने की किस्मों को विकसित किया है. जिससे किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी और लागत भी कम लगेगी. साथ ही इन प्रजातियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक है, जिससे फसल में कीट और बीमारियों का असर कम होता है.
किसानों के लिए बड़ा फायदा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो गन्ने का करीब 22.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है, जबकि पूरे प्रदेश में यह क्षेत्रफल 28.53 लाख हेक्टेयर से अधिक है और औसतन उत्पादन 839 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यदि किसान इन नई किस्मों को अपनाएं तो गन्ने का उत्पादन 950 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आसानी से पहुंच सकता है.
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