भातरवर्ष दुनिया में चीन के बाद सबसे ज्यादा सब्जी उत्पादक देश है. भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां लगभग 100 तरह की सब्जियों की खेती की जाती है. यहां सालभर कई तरह की सब्जियां उपलब्ध रहती हैं. जलवायु विविधता के कारण हर एक सब्जी बाजार में हमेशा उपलब्ध रहती है. जिन सब्जियों की खेती मैदानी क्षेत्रों में शीतकालीन में की जाती है, वहीं सब्जियां देश के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों में संभव हैं, क्योंकि वहां का तापमान इस समय शीतकालीन सब्जियों के लिए उपयुक्त होता है. विभिन्न सब्जियों की खेती में कद्दूवर्गीय सब्जियों का महत्वपूर्ण स्थान है. ये सब्जियां गर्मी और बारिश के मौसम में देशभर में सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं. इन सब्जियों में पाए जाने वाले विभिन्न पोषक तत्व और विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. यह माध्यम वर्ग के लोगों को उचित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध करता है. कद्दूवर्गीय सब्जियों को दो समूहों मे बांटा गया है.
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पकाकर खाने वाली सब्जियां – इस समूह में कद्दू, लौकी, रामतोरी, चप्पन कद्दू, करेला, टिंडा, परवल और कुंदरु आदि.
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कच्ची खाने वाली सब्जियां – इनमें खीरा, तरबूज, खरबूज, सरदा मैलन आदि शामिल हैं
उन्नत किस्में
देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा इन सब्जियों की अनेक सुधरी सामान्य व संकर किस्में विकसित की हैं. इसके अतिरिक्त निजी संस्थानों के अनुसंधान के परिणाम स्वरुप बहुत संकर किस्में भी विकसित की गई हैं. इनकी खेती व्यावसायिक रूप से की जाती है.
उर्वरक व खाद
15-20 टन गली सड़ी गोबर खाद अच्छी होती है, साथ ही नाइट्रोजन 20 किलोग्रम, फास्फोरस 50 किलो ग्राम और पोटाश 50 किलो ग्राम/ हेक्टेयर की आवश्कयता होती है.
बुवाई का समय
बसंत गर्मी की फसल फरवरी-मार्च में बोई जाती है, जबकि वर्षा ऋतु में जून-जुलाई में बुवाई की जाती है.
उपज
विभिन्न लता वाली सब्जियों की उपज 10 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
बीज की बुवाई
विभिन्न कद्दूवर्गीय सब्जियों की बुवाई के लिए 45 सेमी, चौड़ी और 50 सेमी. हगरी नालियां बनाएं. इसके अलावा बेल के फैलाव के लिए कतारों की दूरी 1.5 - 3 मीटर रखी जाती है.
अगेती खेती का तरीका
विभिन्न कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती पैदावार लेने के लिए बुवाई कागज के कपों में वर्मी व रेतली मिट्टी का मिश्रण बनाकर दिसंबर-जनवरी में पॉलीहाउस में रखकर फरवरी-मार्च में 3-4 पत्ते की अवस्था में खेतों में लगाया जा सकता है. इससे किसान अगेती फसल लगाकर ज्यादा मुनाफ़ा कमा सकता है.
रोग व नियंत्रण
पाउडरी मिल्ड्यू – कद्दूवर्गीय सब्जियों में फफूंद से लगना वाली पाउडरी मिल्ड्यू प्रमुख रोग है. इसके प्रकोप से बेलों, पत्तियों और तनों पर सफेद पर्त आ जाती है. इसकी रोकथाम के लिए 1 मि.ली.कैराथेन प्रति ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसको 10-12 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़कें.
डाउनी मिल्ड्यू – पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. गर्मियों में बारिश के दौरान ज्यादा होता है. इसकी रोकथाम के लिए डाईथेन एन 45 या रिडोमल 2.5 ग्राम प्रति लि. पानी में घोलकर छिड़क दें.
मौजैक – इसकी रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधों को तुरंत निकाल दें और मिट्टी में दवा दें. वायरस को फैलने से रोकने के लिए सफेद मक्खी व चेपा का नियंत्रण आवश्क है. इनकी रोकथाम के लिए इमीडाक्लोरडा 1 मि. प्रति लि. पानी में घोलकर छिड़क दें.
कीट प्रकोप व नियंत्रण
लाल कद्दू पिड बीटल - इसके वयस्क पत्ते को खाकर छलनी कर देते हैं. इसकी रोकथाम के लिए फसल खत्म होन पर बेलों को खेतों से हटाकर नष्ट कर देना चाहिए. अगेती बुवाई करने से इसका प्रभाव कम होता है. संतरी रंग के भंग को सुबह के समय इकठ्ठा करके नष्ट करें. इसकी रोकथाम के लिए ऐमा मौक्टिन बेजोएट 5 एसजी का 1 ग्राम प्रति ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें. भूमिगत शिशुओं के लिए क्लोरपायरीफास 30 ई.सी 2.5 ली. सिंचाई के साथ प्रयोग करें.
फल मक्खी – कद्दूवर्गीय सब्जियों में ये सबसे ज्यादा आक्रमण करने वाला कीट है. इस कीट की मक्खी फलों में अंडे देती हैं और अण्डों से शिशु निकालकर गुदे को खाकर सुरंग बनाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए कद्दूवर्गीय सब्जियों के फलों को इकठ्ठा करके नष्ट कर दें, खुले में न रहने दें. मक्खियों को आकर्षित करने के लिए मैलाथियान 2 मिली/लीटर के हिसाब से और 100 लीटर पानी में छिड़काव करें.
कद्दूवर्गीय सब्जियों में इस मक्खी के नियंत्रण के लिए नर कीटों को आकर्षित करने के लिए मिथाइड़ यूजीनोल के फैरोमोन ट्रैप लगाकर मारा जा सकता है.
सफेद मक्खी – इस कीट के शिशुओं व वयस्कों द्वारा रस चूसने से पत्ते पीले पड़ जाते हैं. इसके परिणाम से पौधों के भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है. इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरपिड 17.8 एस.सेल 1 मि.लि प्रति 3 लि. पानी में घोलकर छिड़क दें.
ऐफिड (चेपा) – कद्दूवर्गीय सब्जियों में लेडी बर्ड बीटल का संरक्षण करें. नाइट्रोजन खाद का अधिक प्रयोग न करें या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 21 मि.लि. प्रति लि. पानी में घोलकर छिड़क दें.
लेखक – डॉ संत प्रकाश मुख्य प्रसार विशेषज्ञ (सब्जी विज्ञान), सेवा निवृत
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