पौधों के अवशेष पदार्थ. बची हुई सब्जियां तथा पशुओं का बचा हुआ चारा कूड़ा करकट आदि पदार्थों को बैक्टीरिया और फंजाई की मदद से बना हुआ पदार्थ कम्पोस्ट कहलाता है. इस खाद को तैयार करने की प्रक्रिया कम्पोस्टिंग कहलाती है. अच्छी तरह से तैयार कम्पोस्ट गहरे रंग की होती है. भारत में मुख्य रूप से दो तरह का कम्पोस्ट बनाया जाता है. एक जानवरों के बचे चारे, खरपतवार तथा फसलों के पौधे एवं भूसा आदि का प्रयोग करके तथा दूसरा सड़कों और नालियों के कचरे और कूड़ा करकट एवं मिट्टी का उपयोग करके बनाया जाता है.
कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए आवश्यकताएं
कम्पोस्ट बनाने के लिए कार्बनिक अवशेष, उपयुक्त मात्रा में नमी और उचित वायुसंचार की जरुरत होती है. कार्बनिक अवशेषों में फार्म का कूड़ा करकट, भूसा, खरपतवार, घास, पत्तियाँ, फसलों के अवशेष आदि शामिल होते हैं. जब इन पदार्थों में नाइट्रोजन की अपेक्षा कार्बन की मात्रा अधिक होती है, तो इनका विच्छेदन पशुओं के गोबर, मूत्र, स्लज, अमोनिया सल्फर एवं सोडियम नाईट्रेट के माध्यम से किया जाता है. कम्पोटिंग के जीवाणु सक्रिय होते हैं. अतः कम्पोस्ट के ढेर में 50 प्रतिशत तक नमी बनाये रखना आवश्यक होता है.
कम्पोस्ट खाद बनाने की सामान्य विधि
इस विधि में वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए जमीन का आकार 100 वर्गमीटर के आस-पास होता है. अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा इंटों से पक्की क्यारियां बनाई जाती हैं. इसमें हर एक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी. होती है. 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाई जा सकती हैं. इन क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर से प्लास्टिक से ढक देना चाहिए.
इसकी क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करने के बाद इन पदार्थों को क्यारियों में भरें. इनको सड़ने में 15 से 20 दिन लग जाता हैं. सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों में केंचुए को छोड़ दें. अब अगले 10 से 15 दिन में ये अच्छी तरह से सड़ गल कर तैयार हो जाएगा. एक टन कचरे से लगभग 600 से 700 किलोग्राम केंचुआ खाद बनकर तैयार हो जाएगी.
चक्रीय चार हौद विधि
इस विधि में चुने गये स्थान पर 12 मीटर के वर्ग का एक गड्ढा बना लें. इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दें. इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाएंगी. अब बीच की विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने-जाने के लिए छिद्र छोड़ दें.
इस विधि में प्रत्येक क्यारी को खाद्य पदार्थों से एक के बाद एक भरते रहें और पहले गड्ढा को भरने के बाद इसमें पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक दें ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया शुरु हो जाये. इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर दें. दूसरे माह जब दूसरा गड्ढा भर जाए तो इसे भी ढक दें और इस तरह से सभी गड्ढे को भर लें.
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इस समय तक पहले गड्ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है. एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढे में गर्मी कम हो जाए तो उसमें लगभग 5 किलोग्राम केंचुए छोड़ दें. इसके बाद गड्ढे को सूखी घास से ढक दें. कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए इसमें आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें. इस प्रकार 3 महीने बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाए तो इसे भी पानी से भिगो कर ढक दें. धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे में भी गर्मी आ जाती है तो उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों के माध्यम से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाता है. इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं. इस तरह केंचुआ खाद बनकर तैयार हो जाती है. इस विधि से एक वर्ष में प्रत्यके गड्ढे में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है और जिससे 7 कुन्तल खाद बनकर तैयार हो जाती है.
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