भारत में कृषि का रूप बदलता जा रहा है, पारंपरिक खेती के अलावा नई फसलों में भी हाथ आजमाया जा रहा है. ऐसे में आपको मैंगोस्टीन फल की जानकारी दे रहे हैं. मैंगोस्टीन फल में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं. वैज्ञानिक अनुसंधान ने स्तन कैंसर, लीवर कैंसर और ल्यूकेमिया के खिलाफ इसकी प्रभावशीलता साबित कर दी है.
ऐसे में बढ़ती मांग, स्वास्थ्य लाभ और अच्छी कीमत मिलने पर केरल में कई किसानों ने मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है. मैंगोस्टीन फल की खेती किसानों के लिए मुनाफेमंद साबित हो रही है आइये जानते हैं मैंनोस्टीन और खेती से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में
जलवायु
मैंगोस्टीन दक्षिण-पूर्व एशिया का मूल निवासी है, इसे बढ़ने के लिए गर्म, बहुत आर्द्र और भूमध्यरेखीय जलवायु की जरूरत होती है. मैंगोस्टीन फल उष्णकटिबंधीय है और इसके लिए मध्यम जलवायु की जरुरत होती है. इसे उच्च आर्द्रता और औसत तापमान की जरुरत होती है जो 5-35 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है. औसत बारिश में अच्छा उत्पादन होता है, लेकिन लंबे समय तक सूखा पेड़ की उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है.
सूरज की रोशनी
मैंगोस्टीन का छाया में भी अच्छा उत्पादन हो सकता है. पूरी तरह से विकसित पेड़ों के विपरीत, युवा पौधे सीधे सूर्य के प्रकाश में जीवित रहने में सक्षम नहीं हो सकते हैं. इसलिए अपने पौधों को छाया में या ऐसे स्थान पर रखें जहां उन्हें अप्रत्यक्ष या फ़िल्टर्ड धूप मिले. औसतन, पौधों को हर दिन 13 घंटे तक धूप में रहने की जरूरत होती है.
मिट्टी
मैंगोस्टीन के लिए रेतीली दोमट, उपजाऊ मिट्टी जिसमें अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होते हैं, मैंगोस्टीन उगाने के लिए अच्छी मानी जाती है. थोड़े अम्लीय PH मान के साथ अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में पौधे और भी बेहतर पैदावार हो सकती है.
बुवाई
बीजों से मैंगोस्टीन के पौधों का प्रसार थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि असली बीज आसानी से नहीं मिलते इसलिए नर्सरी से एक पौधा खरीदकर लगाना चाहिए. नए पेड़ों को 12 इंच की ऊंचाई तक पहुंचने में कम से कम दो साल लग सकते हैं. यह आमतौर पर वह समय होता है जब इन पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जाता है. रोपाई के बाद इन पेड़ों को फल देने में 7-9 साल तक का समय लग सकता है. हालांकि भारत में आमतौर पर फलने के दो मौसम होते हैं. पहला जुलाई से अक्टूबर तक होता है जो मानसून का मौसम होता है और दूसरा अप्रैल-जून के महीनों के दौरान होता है.
सिंचाई
पौधों को ठीक से पानी देना जरुरी होता है, क्योंकि पानी की उपलब्धता पौधे की वृद्धि को प्रभावित करती है. वे खड़े पानी में जीवित नहीं रह सकते. इसलिए अपने पौधों को तभी पानी दें जब मिट्टी की ऊपरी परत सूख जाए. लेकिन अगर मैंगोस्टीन को बीज से उगा रहे हैं, तो मिट्टी को नम रखें, क्योंकि नए पौधों को लगातार नमी की जरुरत होती है. पौधे को पानी देते समय ताजे पानी का ही उपयोग करें. खारा पानी पौधे के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.
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