आम में अनेक रोग एवं कीट लगते हैं। यह नर्सरी से लेकर भंडारण तक हर स्तर पर नुकसान पहुंचाते हैं और पौधों के लगभग हर भाग को प्रभावित करते हैं जैसे तना, पत्तियां जड़ और फल आदि। यह रोग फलों में सड़न, पौधों में सूखा रोग, मिलडयू धब्बे, सकैव, गोंद निकलना, सूखना, काली फफूंदी आदि उत्पन्न करते हैं। कुछ रोग आम की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं तथा आम की फसल के कुछ क्षेत्रों में उत्पादन में बाधक हैं। पाउडरी मिलडयू, एन्थ्रेक्नोज, डाई बैंक, सूटी मोल्ड, गमोसिस आम की फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्रमुख नुकसान पहुँचाने वाले कीट में भुनगा, कढ़ी कीट, सल्क कीट, गांठ बनाने वाला कीट, तनाबेधक, छाल खाने वाला कीट, पत्ती खाने वाला कीट, फल मक्खी आदि हैं। कीट एवं बीमारियों के लक्षण एवं रोकथाम की कार्यवाही का क्रमबद्ध रूप में जानकारी यहां दी जा रही है। बागवान भाई इसकी सहायता से रोग एवं कीट की पहचान कर सकते हैं तथा इसका नियंत्रण बताई गयी विधियों से कर सकते हैं।
(अ) बाग मे होने वाले रोगः
पाउडरी मिलडयू (खर्रा दहिया)
यह रोग ओइडीयम मैंजीफेरी नामक कवक द्वारा होता है। इसका प्रकोप अधिकांशतः फरवरी-मार्च या कभी-कभी उसके पहले भी बढ़ते हुए तापक्रम तथा आर्द्रता के फलस्वरूप होता है। इसमें पुष्पवृत्त, पुष्प् एवं छोटे अविकसित फल पीले पड़कर गिर जाते हैं। गर्म और नम मौसम तथा ठंडी रात में यह रोग अधिक फैलता है।
रोकथामः इस रोग से बचाव के लिए एक मौसम में कुल तीन छिड़काव की संस्तुति की जाती है। प्रथम छिड़काव घुलनशील गंधक (वेटैबुल सल्फर) के 02 प्रति (2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) घोल से पुष्प वृन्तों के निकलने पर परन्तु फूल खिलले से पहले करना चाहिए। द्वितीय छिड़काव ट्राइडेमार्फ (कैलिक्सीन) के 0.1 प्रतिशत (एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) के घोल से पहले छिड़काव के 10-15 दिन बाद अथवा रोग दिखाई देने पर करें। तृतीय छिड़काव डाइनोकैप (कैराथेन) के 0.1 प्रतिशत (एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में) अथवा ट्राइडीमेंफान (बेलेटान) के 0.05 प्रतिशत (आधा ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) के घोल से दूसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद अर्थात फल के सरसों के बराबर आकार ग्रहण करने पर करें। यह उपचार रोग लगने से पूर्व करना अधिक लाभकारी होता है।
एन्थ्रैक्नोज (काला वर्ण)
कवक जनित यह राग नम मौसम में पौधे के पर्णीय भाग को प्रभावित करता है। इस रोग में पत्तियों पर अण्डाकार एवं असमान आकार के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्तियों पर रोग का स्थान कभी-कभी फट जाता है। नई पत्तियां इस रोग से अधिक प्रभावित होती है।
रोकथामः किसी ताम्रयुक्त रसायन (काॅपर आक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यू पी) की 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर अथवा कार्बेन्डाजिम (एक ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) फरवरी, अप्रैल, अगस्त तथा सितम्बर के महीने में छिड़काव करना चाहिए।
फोमा ब्लाइटः
पुरानी पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिससे पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं और टहनियां बिना पत्ती के रह जाती हैं। पत्तियों के निचली सतह पर फफूंदी की पिकनीडिया काले दानों के रूप में बनती है। नवम्बर माह में रोग काफी स्पष्ट होता है।
रोकथामः कापर आक्सीक्लोराइड के 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव एक माह के अन्तराल पर दो बार करें।
सूटी मोल्ड (कलजी फफूंद):
पत्तियों एवं टहनियों पर कीटों द्वारा स्रावित मधु (हनीडयू) पर काली फफूंदी उगकर पत्तियों को ढक लेती है। जिससे पत्तियों को सूर्य का प्रकाश न मिलने पर दैहिक क्रिया (भोजन बनाने की क्रिया) शिथिल पड़ जाती है।
रोकथामः किसी कीटनाशी (डाइमिथेएट) के साथ कापर आक्सीक्लोराइड के 3.0 प्रतिशत (3.0 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) घोल छिड़काव करें। 2.0 प्रतिशत स्टार्च (अरारोट) का घोल छिड़कने से जब स्टार्च सूखकर पत्तियों से छूटता है तब काली फफंूदी भी स्टार्च के साथ छूट जाती है।
(ब) भण्डारण एवं विपणन काल के रोग
एन्थैक्नोजः
इस रोग से भण्डारण में लगभग 24 प्रतिशत तक हानि होती है। पकते हुए फलों पर गोल अनियमित आकार के धब्बे जो बीच में कुछ दबे होते हैं, नजर आते है आद में ये पूरे छिलके पर फैल जाते हैं और फल सड़ने लगता है।
रोकथामः फलों को कार्बन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) के घोल में एक बार डुबोकर फिर भण्डारण करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है।
ढेंपी विगलन (स्टेम एण्ड राट):
इस रोग से 18-30 प्रतिशत तक हानि होती है। इस रोग के लगने पपर डंठल के नजदीकी भाग के पास का भाग भूरा पड़ने लगता है बाद में फलों के ऊपरी सिरे गोलाई में सड़ने लगते हैं। अंत में पूरा फल सड़कर काला दिखाई देने लगता है।
रोकथामः फल को तोड़ते समय सावधानी बरतें। फलों को डंठल के साथ तोड़कर एक कार्बेन्डाजिम 0.05 प्रतिशत घोल में डुबोकर फिर भण्डारण करने से रोग कम होता है। भण्डारण कक्ष हवादार, ठंडे और शुष्क होने चाहिए।
काला विगलनः
भण्डारण एवं परिवहन के दौरान इससे 25 प्रतिशत तक हानि होती है। भण्डारण के दौरान अधिक आर्द्रता तथा गर्मी होने से यह रोग अधिक तेजी से फैलता है। इस रोग का प्रकोप सिर्फ उन्हीं फलों पर होता है। जिसमें चोट-खरोंच लगी हो। फल पर पहले अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं जो तेजी से बढ़कर भूरे-काल धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रभावित स्थान पर मृदा भी गल जाता है और ऐसे सड़े फलों से बदबू आने लगती है।
रोकथामः यह ध्यान रखा जाये कि आम में कम से कम खरोंचे आये। आम को भेजने से पहले टापसिन-एम या कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) तथा फ्रूटाक्स (0.1 प्रतिशत) के घोल में डुबोकर भण्डारण किया जाए।
लेखक:
1विश्व विजय रघुवंशी, शोध छात्र, पादप रोग विज्ञान
2अमन प्रताप सिंह, शोध छात्र, कीट विज्ञान
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या।
ईमेल- [email protected]
Share your comments