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आलूबुखारा खेती की वैज्ञानिक तकनीक, जानें जलवायु, किस्में, सिंचाई, पैदावार सहित अन्य ज़रूरी जानकारी

आलूबुखारा (Plum) एक स्वास्थवर्धक रसदार फल है. इसकी खेती उत्तराखण्ड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है. इसमें मुख्य लवण, विटामिन, प्रोटीन, कार्वोहाडट्रेट आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. यह फल ताजा-ताजा खाया जाता है. इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे जैम, जैली, चटनी और अच्छी गुणवत्ता वाली बरांडी बनाई जाती है. इसके बीज में 40 से 50 प्रतिशत तेल का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में दवा के रूप में प्रयुक्त होता है.

कंचन मौर्य
Plum

आलूबुखारा (Plum) एक स्वास्थवर्धक रसदार फल है. इसकी खेती उत्तराखण्ड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है. इसमें मुख्य लवण, विटामिन, प्रोटीन, कार्वोहाडट्रेट आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. यह फल ताजा-ताजा खाया जाता है. इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे जैम, जैली, चटनी और अच्छी गुणवत्ता वाली बरांडी बनाई जाती है. इसके बीज में 40 से 50 प्रतिशत तेल का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में दवा के रूप में प्रयुक्त होता है. अगर किसान आलूबुखारा की खेती (Plum Cultivation) से अधिकतम और गुणवत्तायुक्त उत्पादन चाहते है, तो इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए. इसके साथ ही किस्मों पर विशेष ध्यान देना चाहिए. बता दें कि इसकी खेती उप-पर्वतीय और उत्तरी पश्चिमी मैदानी भागों में भी की जाती है. इसके लिए सहिष्णु किस्में हैं और ये किस्में इस जलवायु में आसानी से पैदा होती है. आइए आज आपको बताते हैं कि आलूबुखारा की खेती वैज्ञानिक तकनीक (How to cultivate plum with scientific technique) से कैसे करें.

उपयुक्त जलवायु

इसकी खेती पर्वतीय आंचल और मैदानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है. इसके लिए शीतल और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी उत्तम खेती समुद्रतल से 900 और 2500 मीटर वाले क्षेत्रों में होती है. ऐसी जगह जहां बसन्त ऋतु में पाला पड़ता हो.

भूमि का चुनाव

इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है, लेकिन जल-निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. इसके साथ ही 1.5 से 2 मीटर गहरी भूमि खेती के लिए उपयुक्त होती है.

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Agriculture

उन्नत किस्में

  • समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए सलिसिनावर्ग की प्रमुख किस्में विक्टोरिया, सेन्टारोजा, फर्स्ट प्लम, रामगढ़ मेनार्ड, न्यू प्लम आदि है.

  • समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए डोमेस्टिकावर्ग की मुख्य किस्में ग्रीन गेज, ट्रान्समपेरेन्ट गेज, स्टैनले, प्रसिडेन्ट आदि है.

  • समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए फंटीयर, रैड ब्यूट, अलूचा परपल, हो, जामुनी, तीतरों, लेट यलो और प्लम लद्दाख आदि किस्में हैं.

प्रमुख किस्में

फंटीयर : इस किस्म के फल भारी और आकार में बड़े होते हैं. इनका छिलका गहरा लाल बैंगनी, गूदा गहरे लाल रंग का, मीठा, स्वादिष्ट, सख्त, एक समान मीठा, सुगन्धित, गुठली से अलग होने वाला, फल भण्डारण की अधिक क्षमता वाला होता है.

रैड ब्यूट : इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं. यह ग्लोब की तरह और लाल, चमकीली, गूदा पीला, पिघलने वाला, मीठा और सुगंधित, गुठली से चिपके रहने की प्रवृति वाला, सैंटारोजा से 2 सप्ताह पहले मई के अंतिम सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है.

टैरूल : इस किस्म के फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं, जो कि गोल, पीले, लालिमा लिए हुए, गूदा पीला, पिघलने वाला, समान रूप से मीठा, अच्छी सुगन्ध वाला, गुठली से चिपका हुआ और सैंटारोजा से 1 सप्ताह बाद में जुलाई के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है. इसके पौधे अधिक पैदावार देने वाले होते हैं.

परागण

आलूबुखारा की कुछ किस्में जैसे एगेन, जेफरसन और प्रेसिडेट अपने पराग से फल नहीं बनाती है, इसलिए इन्हें परागण की आवश्यकता होती है.  इस बात का ध्यान दें कि बगीचे में एक से ज्यादा किस्म के पेड़ परागकर्ता के होने चाहिए. आलूबुखारा की सतसुमा किस्म से अच्छी फलत प्राप्त करने के लिए सेन्टारोजा किस्म को बगीचे में लगाना चाहिए. इसके अलावा अच्छे परागण के लिए बाग में मधुमक्खियों के बक्से भी रखने चाहिए.

पौध रोपण

आलूबुखारा की खेती के लिए नवम्बर और फरवरी माह के बीच निर्धारित स्थान पर 1 x 1 x 1 मीटर आकार के 6 x 6 मीटर की दूरी पर गड्डे खोद करना चाहिए, इसके बाद हर गड्डे में 40 किलोग्राम गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर देनी चाहिए.

सिंचाई

आलूबुखारा की खेती में फल विकास के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. मैदानी भागों में ग्रीष्म ऋतु में कम से कम 2 से 3 दिन में सिंचाई करना चाहिए. पर्वतीय क्षेत्रों में टपक सिंचाई के माध्यम से जलपूर्ती की जा सकती है.

सधाई और कटाई-छटाई

इसके पौधों को अच्छा आकार देने के लिए सधाई के लिए उसकी कटाई-छटाई करना आवश्यक है. बता दें कि सेलिसिना वर्ग की कई किस्में ऊपर की जगह अलग-बगल में फैलती हैं, इसलिए ऐसी किस्मों की सधाई खुला मय विधि से करनी चाहिए.

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plum

खाद और उर्वरक

  • आलूबुखारा की खेती में जब वृक्ष 1 से 2 साल का हो जाए, तो अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद 10 से 15 किलोग्राम, एसएसपी 200 से 300 ग्राम, यूरिया 150 से 200 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 150 से 300 ग्राम प्रति वृक्ष में डाल दें.

  • जब वृक्ष 3 से 4 साल का हो जाए, तो अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद 20 से 25 किलोग्राम, एसएसपी 500 से 700 ग्राम, यूरिया 500 से 700 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 400 से 600 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें.

  • जब वृक्ष 5 साल या इससे ज्यादा का हो जाए, तो अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद 25 से 35 किलोग्राम, यूरिया 1000 ग्राम, एसएसपी 1000 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 800 ग्राम प्रति वृक्ष में डाल दें.

कीट रोकथाम

पत्ते मोड़ने वाली माहू- इस कीट के शिशु और वयस्क पत्तियों का रंग चूस लेते है, जिससे पंत्तियां विकृत होकर मुड़ और सूख जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए आक्सिडेमेंटान-मिथायल 200 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए.

शल्क (स्केल)- इस कीट की मादा पौधे के तने और शाखाओं पर छोटी गोलाकार घुण्डियों के रूप में दिखाई पड़ती है. यह  छोटे शिशु पत्तियों पर स्थिर रह कर रस चूसते हैं. इसकी रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड 600 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए.

रोग रोकथाम

जड़-सड़न रोग (रूट रॉट)- यह रोग पौधों की जड़ों में सफेद रंग की फफूंदी द्वारा होते है. इससे पौधे धीरे-धीरे कमजोर होते जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों की जड़ों से मिट्टी हटाकर धूप लगने के लिए खोल दें. इसके साथ ही रोगग्रस्त पौधों की जड़ों से जख्म को साफ करके उसमें फफूंदीनाशक पेस्ट लगाएं. इसके अलावा जड़ों में पानी को न रुकने दें. इसके लिए नालियां बनाएं, बगीचे में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें और खरपतवार को पौधे की जड़ों में न उगने दें.

जीवाणु धब्बे- इस रोग के लगने पर पत्तियों में छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए पत्तों के गिरने या कलियों के सूखने के समय ज़ीरम या थीरम 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें.

सिलवर लीफ कैंकर- इस रोग में ग्रसित पेड़ों की पत्तियॉ चांदी की तरह धातुई चमक जैसी हो जाती हैं. शाखाओं पर यह फफोलों के रूप में परिलक्षित होती है. पेड़ की छाल का बाह्‌य भाग कागज की तरह उतर जाता है. इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट का 2 से 3 छिड़काव 15 दिनों पर करना चाहिए.

फल तुडाई

इसके फलों को पकने के बाद ही तोड़ना चाहिए. इससे फलों का स्वाद अच्छा होता है, क्योंकि इन्हें तोड़ने के बाद स्वाद की वृद्धि नहीं होती है. अगर फल दूर भेजना है, तो पेड़ पर फल पूरा पकने के कुछ दिन पहले ही तोड़ा जाता है. इस तरह आलूबुखारा को अधिक दिन तक अच्छी दशा में रखा जा सकता है.

पैदावार

अगर आलूबुखारा की खेती अच्छी तरह की जाए, तो प्रति पेड़ से लगभग 50 से 80 किलोग्राम पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.

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English Summary: Knowledge of cultivation of plums with scientific techniques Published on: 22 August 2020, 03:18 PM IST

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