किसान भाइयों के लिए यह समय अनुकूल नहीं है. कृषि दिन पर दिन घाटे के सौदे में तब्दील होते जा रहा है. कुछ ऐसे बड़े किसान हैं, जो खेती के जरिए अच्छी कमाई कर रहे हैं, लेकिन छोटे किसानों की हालत खराब है.
उन्हें मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं मिल पा रहा है. हाल के दिनों में कई किसानों ने पीली सरसों की खेती की है, जिससे अच्छी कमाई हो रही है. आप भी पीली सरसों की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. आइए जानते हैं कैसे करनी है पीली सरसों की खेती.
पीली सरसों की खेती खरीफ और रबी के मध्य में की जाती है. इसकी खेती पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात में अधिक होती है. इन राज्यों के किसान पीली सरसों की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं. अगर सही से इसकी खेती की जाए, तो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है.
सरसों के खेत की तैयारी (Mustard field preparation)
पीली सरसों की खेती करने के लिए किसान भाइयों को पहले अच्छे तरीके से खेत को तैयार कर लेना होगा. इसके लिए किसान भाइयों को पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए. इसके बाद 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए.
पीली सरसों की उन्नत किस्में (Improved varieties of yellow mustard)
यूं तो पीली सरसों की कई किस्में मौजूद हैं. लेकिन इनमें से तीन पीतांबरी, नरेंद्र सरसों-2 और के-88 उन्नत किस्में मानी जाती हैं. पीतांबरी सरसों के पकनी की अवधि 110 से 115 दिन है, जबकि नरेंद्र सरसों-2 125 से 130 दिन और के-88 125 से 130 दिन है. वहीं, अगर बात करें इनमें तेल प्रतिशत का, तो पीतांबरी में 42 से 43 फीसदी, नरेंद्र सरसों-2 में 44 से 45 फीसदी और के-88 में 42 से 43 फीसदी तेल होता है.
कब करें सरसों की बुआई? (When to sow mustard?)
किसान भाइयों को पीली सरसों की बुआई 15 सितंबर से 30 सितंबर तक कर लेनी चाहिए. बुआई देशी हल से करना लाभदायक होता है. बुआई 30 सेमी की दूरी पर 3 से 4 सेमी की गहराई पर कतारो में करना चाहिए. साथ ही पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिए.
सिंचाई (Irrigation)
सरसों की फसल में पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फलियां में दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए. वहीं, अगर ठंड में बारिश हो जाती है, तो दूसरी सिंचाई नहीं भी करेंगे तो चल जाएगा.
सरसों उत्पादन कितनी? (How much mustard production?)
अगर सब कुछ सही रहा, तो पीतांबरी किस्मों से 18 से 20 कुंतल, नरेंद्र सरसों-2 से 16 से 20 कुंतल और के-88 से 16 से 18 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा.
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