हमारा देश एक कृषि प्रधान है, जिस वजह से अब खेती में लोगों की रुचि भी बढ़ती जा रही है. खेती सिर्फ गेहूं-चावल तक सीमित नहीं, बल्कि नई-नई फसलें उगाई जा रही हैं, खेती से संबंधित नए-नए काम किए जा रहे हैं यहां तक कि सरकार की भी मदद मिल रही है. खेतीबाड़ी से जुड़े कामों में एक काम रेशम के कीट पालन का भी है. कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन रेशम उत्पादन या रेशम कीट पालन कहलाता है. जिससे काफी अच्छा मुनाफा होता है, आप भी रेशम उत्पादन से एक शुरूआत कर सकते हैं, आइये इसके बारे में जानते हैं...
कैसे करें रेशम की खेती
बता दें प्राकृतिक रेशम कीटों से ही उत्पादित होता है. जिसके लिए सिल्क वर्म यानि रेशम के कीट पालने होते हैं. इसके लिए मल्बरी यानि शहतूत के पौधे लगाने होते हैं. कीड़ों को शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है. इन पौधों के पत्तों को खाकर सिल्क वर्म अपनी लार से रेशम बनाते हैं. एक एकड़ भूमि में एक बार रेशम की खेती करने से 500 किलोग्राम रेशम के कीड़ों का उत्पादन होता है. रोचक बात ये है कि रेशम के कीटों की उम्र 2 से 3 दिन की होती है, और मादा कीट करीब 200 से 300 अंडे देती है. 10 दिन में अंडे से लार्वा निकलता है जो अपने मुंह से तरल प्रोटीन का स्त्राव करता है. वायु से संपर्क में आने पर यह कठोर होकर धागे का रूप ले लेते हैं. कीड़े के चारों ओर एक घेरा बन जाता है इसे ककून कहते हैं. गर्म पानी में डालने पर यह कीड़ा मर जाता है. इस ककून का उपयोग रेशम बनाने में किया जाता है.
रेशम की खेती के प्रकार
भारत में रेशम की खेती 3 प्रकार से की जाती है. पहली मलबेरी खेती दूसरी टसर खेती और तीसरी ऐरी खेती. रेशम एक कीट के प्रोटीन से बना रेशा है. बढ़िया रेशम शहतूत और अर्जुन के पत्तों पर कीट पालन से होता है. शहतूत के पत्ते खाकर जो कीट रेशम बनाते हैं उसे मलबरी रेशम कहा जाता है. भारत में मलबरी रेशम का उत्पादन कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में किया जाता है. बिना शहतूत वाले रेशम का उत्पादन झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तरप्रदेश और पूर्वी राज्यों में होता है.
रेशम कीट पालन से जुड़े 60 लाख किसान
भारत में रेशम कीट पालन से लाखों परिवार जुड़े हैं. और इन परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो चुकी है. रेशम कीट पालन खेती-बाड़ी की श्रेणी में ही माना जाता है. चीन के बाद भारत रेशम उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. भारत में हर किस्म का रेशम पैदा होता है. भारत के विभिन्न राज्यों में करीब 60 लाख लोग रेशम कीट पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं.
सरकारी संस्थान भी देते सिल्क वर्म को बढ़ावा
बता दें भारत में केंद्रीय रेशम रिसर्च बहरामपुर में साल 1943 में बनाया गया था. इसके बाद रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए साल 1949 में रेशम बोर्ड की स्थापना की गई. मेघालय में केंद्रीय इरी अनुसंधान संस्थान और रांची में केंद्रीय टसर प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई. यहां से पूरे रेशम कीट पालन संबंधी प्रशिक्षिण आदि के बारे में जानकारी ली जा सकती है.
ऐसे ले सकते हैं सरकार की मदद-
भारत सरकार कीट पालन की ट्रेनिंग कराने के लिए आर्थिक मदद देती है. इसके अलावा सरकार रेशम कीट पालन से जुड़ा साजो –सामान रेशम कीट के अंडे, कीटों से तैयार कोया को बाजार मुहैया करवाने आदि में मदद कर सकती है. मध्यप्रदेश सरकार रेशम कीट पालन के लिए आसान किस्तों में कर्ज भी देती है. साथ ही केंद्र सरकार रेशम कीट पालन के लिए कई योजनाओं के तहत सब्सिडी भी देती है. रेशम कीट पालन के बारे में ज्यादा जानकारी भारत सरकारी की वेबसाइट के लिंक से हासिल कर सकते हैं. https://www.india.gov.in/hi/topics/agriculture/sericulture
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रेशम में करियर
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रेशम में करियर बनाने के लिए कई कॉलेज और विश्वविद्यालयों में इससे संबंधित डिग्री-डिप्लोमा आदि कोर्स कराए जाते हैं. सेरीकल्चर पढ़ाई के लिए आप इस संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं.
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सेंट्रल सेरीकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, मैसूर
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सेंट्रल सेरीकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, बेरहामपुर
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सैम हिग्नीबॉटम इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज
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ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर
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शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, जम्मू
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इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
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केंद्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान एंड प्रशिक्षण संस्थान, पमपोर, जम्मू एंड कश्मीर
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खेती में हो रही आमदनी को देखते हुए कितने ही नौजवान कृषि कार्य की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इस तरह आप भी रेशम कीट पालन से लाखों कमा सकते हैं. डिग्री या डिप्लोमा हासिल कर रेशम कीट पालन से अपना करियर तक बना सकते हैं.
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