आलूबुखारा (Plum) एक स्वास्थवर्धक रसदार फल है, जिसको अलूचा नाम से भी जाना जाता है. यह फल स्वाद में मीठा और अम्लीय प्रकृति वाला होता है. आलूबुखारा विटामिन ए, बी, (थियामिन), राइबोफ्लेविन से भरपूर होता है. इसके साथ ही कुछ खनिजों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन समेत कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. यह फल ताजा-ताजा खाया जाता है या जाम और स्क्वैश में संसाधित किया जा सकता है. आइए आज आपको आलूबुखारा की खेती संबंधी कुछ विशेष जानकारी देते हैं.
भूमि और जलवायु
आलूबुखारा एक समशीतोष्ण फसल होती है, जो मुख्यत: पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती है. इसके अतिरिक्त उत्तर भारतीय मैदानों और विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा के अमृतसर, फाजिल्का, अम्बाला और कुरुक्षेत्र जिलों के क्षेत्रों में इसकी खेती काफी मात्रा में की जाती है. कम किशोर अवधि व कम ठण्ड की आवश्यकता के कारण इसे आम, लीची और नाशपाती के बागों में फसल भराव के तौर पर लगाता जाता है. चीकू का पौधा उच्च पीएच की मिट्टी में बहुत अच्छा विकास करता है. पेड़ों के अच्छे प्रदर्शन के लिए अच्छी तरह से सूखा रेतीले दोमट से मध्यम दोमट मिट्टी सबसे अधिक अनुकूल है. लीची के बागों में पानी की अत्यधिक आवश्यकता होने के कारण आडू पर प्रचारित आलूबुखारा को लीची के बागों में भराव के रूप में नहीं लगाया जाना चाहिए.
रोपण का समय, विधि और पौधों के बीच अंतर
आलूबुखारा का पौधरोपण दिसंबर-जनवरी, जुलाई-सितंबर के दौरान किया जाता है. पौधरोपण के पहले मिट्टी की जांच करने के बाद अच्छी जुताई करके समतल किया जाता है. इसके बाद नंगी जड़ों के प्रसार की तुलना में कुछ इंच गहरा और चौड़ा गड्डा खोदकर पेड़ को छेद के बीच में सेट करें और जड़ों को बिना झुकाए फैलाएं, जबकि पॉलीबैग में उगाए गए पेड़ों की रूट बॉल को छेद के बीच में रखकर पेड़ के आस-पास मिट्टी लगाकर हल्का दबा दिया जाता है, ताकि जड़ों के पास हवा न आए. आलूबुखारा के पौधे आमतौर पर 6X6 मीटर और 6X3 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं, जबकि सघन पौधरोपण तकनीक से इन्हें 3X3 मीटर की दूरी पर भी लगाया जा सकता है.
प्रजातियां
सतजुल पर्पल- आलूबुखारा के इस किस्म के फल चमकीले, चेरी रंग, मोटे, मांस और बड़े आकार के होते हैं. इस फलों की परिवहन में सुगमता के कारण इस किस्म की काफी व्यापारिक महत्व होता है. मई के दूसरे सप्ताह के दौरान फल पककर तैयार हो जाते हैं. आलूबुखारा की इस किस्म की उपज लगभग 30 किलोग्राम प्रति पौधा होती है. अपने स्वयं के असंगत होने के कारण उपज को बेहतर बनाने के लिए इस किस्म को काला अमृतसरी के साथ उगाने की सलाह दी जाती है.
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काला अमृतसरी- यह भी आलूबुखारा की अधिक फल देने वाली किस्म है. अगर इसे तीतरों किस्म के साथ लगाया जाए, तो उपज में और अधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है. फल माध्यम, गोल, दोनों तरफ दबे हुए और बैंगनी रंग के होते हैं. फल मई के दूसरे हफ्ते में पककर तैयार हो जाते हैं. इसके साथ ही उपज लगभग 40 किलोग्राम प्रति पौधा होती है. आलूबुखारा की इस किस्म का उपयोग मुख्यत: जैम बनाने के लिए किया जाता है.
तितरों- तितरों आलूबुखारा की फैलने वाली किस्म है. इसके फल छोटे से माध्यम आकार, गहरे बैंगनी रंग और पतले छिलके वाले होते हैं. यह आलूबुखारा की अगेती किस्म है, जो मई के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है, इस किस्म से उपज लगभग 34 किलोग्राम प्रति पौधा है.
नई पौधे तैयार करने की विधि
खूबानी रूटस्टॉक्स के सात आडू पर आलूबुखारा को कुशलता से प्रचारित किया जा सकता है. हल्के जमीन क्षेत्र के लिए पीच रूटस्टॉक का उपयोग उचित है, जबकि भारी बगीचे की मिट्टी के लिए काबुल गेज कलम और खुबानी रूटस्टॉक्स अच्छे परिणाम प्रदान करते हैं. काला अमृतसरी के लगाए गए कलम बिना उबटन के सीधे मददगार होते हैं. ऐसा करने के लिए स्टेम-कटिंग दिसंबर के पहले सप्ताह में तैयार हो जाती है और लगभग 30 दिनों के कॉल के बाद इसे जनवरी में 15 सेमी x 30 सेमी से क्षेत्र में उगाया जाता है.
कटाई व छंटाई
आलूबुखारा फल एक वर्षीय छोटे स्तर पर होते हैं. हर साल प्रशिक्षण में फलों की पैदावार बढ़ाने के लिए और छंटाई जनवरी में की जानी चाहिए. सीधी बढ़ने वाली शाखाओं को हटा देना चाहिए, ताकि हवा और प्रकाश आसानी से पौधों को उपलब्ध हो पाए. इससे फलों का रंग और गुणवत्ता बढ़ती है. इसके अलावा तने से निकलने वाले पानी के शूट और मुख्य तने को समय-समय पर हटा देना चाहिए.
खाद और उर्वरक
पौधे की आयु |
गोबर की खाद kg |
यूरिया gm |
सुपर फास्फेट gm |
म्यूरेट ऑफ पोटाश gm |
1 साल |
6 |
60 |
100 |
60 |
2 साल |
12 |
120 |
200 |
120 |
3 साल |
18 |
180 |
300 |
180 |
4 साल |
24 |
240 |
400 |
240 |
5 साल |
30 |
300 |
500 |
300 |
6 साल या अधिक |
36 |
360 |
600 |
360 |
सिंचाई
आलूबुखारा अनियमित जड़ के साथ-साथ तेजी से परिपक्व होते हैं. इस तरह पूरे विकासशील अवधि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है. सिंचाई की समयाविधि कई पहलुओं पर निर्भर कर सकती है, जैसे मिट्टी की विविधता, मौसम के साथ-साथ प्रमुख फलों के पेड़. पूरी तरह से खिलने के चरण में शायद ही कभी सिंचाई की जाती है और फूल को रोकने के लिए पकने का चरण प्रदान किया जाता है. सितंबर, अक्टूबर के साथ-साथ नवंबर में समय सीमा 20 दिन तक बढ़ सकती है.
रोग और उनका नियंत्रण
प्लम कर्कुलियोस (वेविल)- फलों पर छोटे-छोटे अर्धचंद्राकार निशान पड़ जाते हैं, जो फल को आसानी से गिरा देते हैं.
नियंत्रण- गिरे हुए फलों को बार-बार उठाएं. एक बार पंखुड़ियों का गिरना शुरू हो जाता है, तो हर दिन पेड़ के नीचे एक चादर बिछाता है और पेड़ के तने को गद्देदार छड़ी से मारता है. शीट पर पड़ने वाले कर्कल को इकठ्ठा और नष्ट करें. यह प्रक्रिया 3 सप्ताह के लिए जारी रखें.
लीफ-कर्ल प्लम एफिड्स- पत्तियां और युवा अंकुर मुड़े हुए और उभरे हुए होते हैं. इसके साथ ही छोटे चिपचिपे कीड़े मौजूद रहते हैं.
नियंत्रण- नीम ऑयल का सावधानीपूर्वक समय से छिड़काव करते रहें.
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