Pusa Sarson 32: पूसा सरसों 32 (LES-54) सरसों की एक उन्नत किस्म है, जिसे राजस्थान (उत्तरी और पश्चिमी भाग), पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए विकसित किया गया है. यह किस्म जम्मू और कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में सिंचित अवस्था में समय पर बुवाई के लिए भी उपयुक्त मानी जाती है. सरसों की इस किस्म का उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष कृषि प्रबंधन की आवश्यकता होती है, जिससे इसकी उच्च उपज क्षमता को प्राप्त किया जा सके. ऐसे में आइए सरसों की उन्नत किस्म पूसा सरसों 32 (LES-54) की विशेषताएं और कृषि प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानते हैं-
पूसा सरसों 32 (LES-54) की विशेषताएं
पूसा सरसों 32 (LES-54) की कई विशेषताएं इसे अन्य सरसों की किस्मों से अलग और उन्नत बनाती हैं. पूसा सरसों 32 (LES-54) की औसत उपज 27.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि अच्छी कृषि पद्धतियों के पालन से 33.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है. इस किस्म की परिपक्वता अवधि 145 दिन है, जिससे यह समय पर कटाई के लिए उपयुक्त होती है. इसमें तेल की मात्रा 38.0% तक होती है, जो इसे एक उच्च गुणवत्ता वाली तेल देने वाली किस्म बनाती है. पूसा सरसों 32 एकल शून्य किस्म है, जिसमें <2% इरूसिक एसिड होता है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए बेहतर और सुरक्षित विकल्प बनता है.
पूसा सरसों 32 (LES-54) कम जल उपलब्धता की स्थिति में भी बेहतर उत्पादन देने की क्षमता रखती है, जो इसे कम बारिश वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाता है. पौधे की संरचना कॉम्पैक्ट और इरेक्ट होती है, जिसमें 5 प्राथमिक और 12.5 माध्यमिक शाखाएं होती हैं. इसका मुख्य तना 73 सेमी लंबा होता है और इसका बीज कोट भूरा रंग का होता है. इसके अलावा, इस किस्म में उच्च फली घनत्व होता है, जिससे बेहतर उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है.
पूसा सरसों 32 (LES-54) की खेती
सरसों की उन्नत किस्म पूसा सरसों 32 की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं:
बीज दर और बुवाई की दूरी: एक हेक्टेयर में 3-4 किलोग्राम बीज का उपयोग किया जा सकता है. इससे पौधों की उचित संख्या सुनिश्चित की जा सकती है, जो उपज को प्रभावित करती है. वही पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सेमी की दूरी रखी जानी चाहिए ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिल सके. जबकि पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखना चाहिए ताकि प्रत्येक पौधा बेहतर तरीके से विकसित हो सके.
बुवाई की गहराई: बीज की गहराई 2.5 से 3.0 सेमी होनी चाहिए. अधिक गहराई पर बुवाई से अंकुरण प्रभावित हो सकता है, जबकि कम गहराई पर बुवाई से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो पाते हैं.
बुवाई का समय: सरसों की बुवाई का सही समय 15-20 अक्टूबर है. समय पर बुवाई से पौधों का विकास बेहतर होता है और उपज में वृद्धि होती है. वही 1-20 नवंबर के बीच भी बुवाई की जा सकती है, लेकिन देर से बुवाई करने पर मौसम के बदलाव से बचाव के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है.
उर्वरक प्रबंधन: उपज बढ़ाने के लिए सही मात्रा में उर्वरकों का उपयोग महत्वपूर्ण होता है. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और गंधक का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना चाहिए. मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरकों की सही मात्रा का चयन किया जाना चाहिए, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त हो सकें.
सिंचाई: सिंचाई की संख्या फसल की जरूरत और जल उपलब्धता के अनुसार तय की जानी चाहिए. आमतौर पर, 1 से 3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं. पहली सिंचाई बुवाई के 35-40 दिन बाद की जानी चाहिए, और दूसरी सिंचाई फूल आने के समय की जा सकती है. सिंचाई की सही समय पर व्यवस्था से पौधों को आवश्यक नमी प्राप्त होती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है.
रोग और कीट नियंत्रण: सरसों की फसल को बचाने के लिए कीट और रोग प्रबंधन पर ध्यान देना जरूरी है. इस किस्म में भूरी गेरुई, सफेद रतुआ, और चूर्णी फफूंदी जैसे सामान्य रोगों से बचाव के लिए जैविक या रासायनिक उपचार किए जा सकते हैं. पौधों की नियमित निगरानी से समय पर नियंत्रण किया जा सकता है.
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि पूसा सरसों 32 (LES-54) एक उन्नत किस्म है, जो किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकती है. इसकी उच्च उपज क्षमता, कम जल की स्थिति में सहिष्णुता, और अधिक तेल की मात्रा इसे एक आकर्षक विकल्प बनाती है. सही समय पर बुवाई, उर्वरक और सिंचाई का उचित प्रबंधन, तथा रोग-कीट नियंत्रण से किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
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