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काली हल्दी की खेती और उपयोग

काली हल्दी का पौधा केली के समान होता है. काली हल्दी या नरकचूर एक औषधीय महत्व का पौधा है. जो कि बंगाल में वृहद रूप से उगाया जाता है. इसका उपयोग रोग नाशक व सौंदर्य प्रसाधन दोनों रूप में किया जाता है. वानस्पतिक नाम Curcumaa, केसीया या अंग्रेजी में ब्लेक जे डोरी भी कहते है. यह जिन्नी वरेसी कुल का सदस्य है. इसका पौधा तना रहित 30-60 सेमी ऊंचा होता है पत्तियां चौड़ी गोलाकार ऊपरी सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरा युक्त होती है. पुष्प गुलाबी किनारे की ओर रंग के सहपत्र लिए होते है. राइजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते है. राइजोम का रंग कलिमा युक्त होता है.

KJ Staff
haldi
Black Turmeric

काली हल्दी का पौधा केली के समान होता है. काली हल्दी या नरकचूर एक औषधीय महत्व का पौधा है. जो कि बंगाल में वृहद रूप से उगाया जाता है. इसका उपयोग रोग नाशक व सौंदर्य प्रसाधन दोनों रूप में किया जाता है. वानस्पतिक नाम Curcumaa, केसीया या अंग्रेजी में ब्लेक जे डोरी भी कहते है. यह जिन्नी वरेसी कुल का सदस्य है. इसका पौधा तना रहित 30-60 सेमी ऊंचा होता है. पत्तियां चौड़ी गोलाकार ऊपरी सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरा युक्त होती है. पुष्प गुलाबी किनारे की ओर रंग के सहपत्र लिए होते है. राइजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते है. राइजोम का रंग कलिमा युक्त होता है.

जलवायु

काली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उष्ण होती है. तापमान 15 से 40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए.

भूमि की तैयारी

काली हल्दी दोमट, बुलई, मटियार, प्रकार की भूमि में अच्छे से उगाई जा सकती है. वर्षा के पूर्व जून के प्रथम सप्ताह में 2-4 बार जुताई करके मिट्टी भुरभुरी बना लें तथा जल निकासी की अच्छी व्यवस्था कर लें. खेत में 20 टन प्रति हेक्येटर की दर से गोबर की खाद मिला दें.

बोने का समय व विधि

बोने के लिए पुराने राइजोम को जिन्हें ग्रीष्म काल में नमीयुक्त स्थान पर रेत में दवा कर संग्रह किया गया है उनको उपयोग में लाते है. इन्हें नये अंकुरण आने पर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है. जिन्हें तैयार की गई भूमि में 30 सेमी, कतार से कतार 20 सेमी पौधे से पौधे के अंतराल पर 5-10 सेमी गहराई पर रोपा जाता है. 15-20q राइजोम 1 हे रोपने में लगते है. 2-3 बार निदाई करने से फसल वृद्धि अच्छी होती है. बरसात के बाद माह में 2 बार सिंचाई करना उपयुक्त होता है.

रोग व कीट

काली हल्दी में रोग व कीट का प्रकोप नहीं देखा गया है.

खुदाई व संसाधन व उत्पादन

काली हल्दी की फसल अवधी 8 से 8 1/2 माह में तैय़ार होती है. प्रकदों को सावधानीपूर्वक बिना क्षति पहुंचाए खोद कर निकालें व साफ करके छायादार सूखे स्थान पर सुखाएं. अच्छी किस्म के राइजोम को 2-4 सेमी के टुकड़ों में काटकर सुखा कर रखें जो सूख कर कठोर हो जाते है. ताजे कंदों का उत्पादन 50 प्रति हेक्टेयर तक होता है.

काली हल्दी के उपयोग

काली हल्दी को पीली हल्दी से ज्यादा फायेदमंद और गुणकारी माना जाता है. इसमें अदभुत शाक्ति होती है. काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ मात्रा में पाई जाती है और देखी जाती है. काली हल्दी दिखने में अंदर से हल्के काले रंग की होती है. इसका पौधा केली के समान होता है. तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का प्रयोग वशीकरण, धन प्राप्ति और अन्य तांत्रिक कार्य के लिए किया जाता है. काली हल्दी को सिद्ध करने के लिए होली का दिन बहुत ही लाभकारी माना जाता है. काली हल्दी में वशीकरण की अदभुत क्षमता होती है.

रोगों के उपचार में काली हल्दी का प्रयोग

आदिवासी समुदायों के द्वारा इसका उपयोग निमोनिया, खांसी और ठंड के उपचार के लिए किया जाता है. बच्चों और वयस्कों में बुखार और अस्थमा के लिए इसका उपयोग किया जाता है. इसके राइजोम का पाउडर फेस पैक के रूप में किया जाता है. इसके ताजे राइजोम को माथे पर पेस्ट के रूप में लगाते है. जो माइग्रेन से राहते के लिए या मस्तिष्क और घावों पर शरीर के लिए किया जाता है. सांप और बिच्छू के काटने पर इसके राइजोम का पेस्ट लगाया जाता है. ल्यूकोडार्मा, मिर्गी, कैंसर, और एच आई वी एड्स की रोकथाम में भी यह उपयोग होती है.

 

काली हल्दी को एंटी बायोटिक गुणों के साथ जड़ी बूटी के रूप में मान्यता प्राप्त है, काली हल्दी का तिलक लगाया जाता है एवं ताबीज पहना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह सभी प्रकार के काले जादू को निकाल देंगी. इसका उपयोग घाव, चोट, और मोच त्वचा की समस्याएं पाचन और पेट की सुरक्षा के लिए किया जाता है. मांना जाता है कि यह कैंसर को रोकने और इलाज करने में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाती है. इसमें सुगंधित वाष्पशील तेल भी होता है जो सूजन को कम करने में मदद करती है. यह कोलेस्ट्रोल को कम करने में मदद करती है.

काली हल्दी में इनुप्रोकेन पाया जाता है, जिससे जोड़ों का दर्द ठीक रहता है. काली हल्दी में इन्फेलेंमेंटरी गुण होते है जिससे त्वचा की खुजली ठीक हो जाती है. त्वचा में चकत्ते होने पर काली हल्दी वाले दूध में रूई भिगोकर 15 मिनट तक त्वचा में लगाने पर चकत्ते कम होंगे साथ ही त्वचा पर चमक और निखार आएगा. काली हल्दी को चमत्कारी माना जाता है, इसमें तांत्रिक और मांत्रिक ताकत छिपी रहती है. इसके उपयोग से बीमार व्यक्ति को स्वस्थ किया जा सकता है. काली हल्दी का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से सौंदर्य की वृद्धि होती है.

लेखक का नाम – राजेश कुमार मिश्रा
मो. नंबर – 8305534592

English Summary: How to start black turmeric farming Published on: 08 July 2019, 07:05 PM IST

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