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हल्दी की उन्नत खेती से अधिक लाभ कमाएं...

हल्दी एवं अदरक मसाले वाली दो ऐसी फसल है जिनको जिला चित्रकूट में उगाने की अचछी सम्भावनाये है। इनको उगाने के लिए विशेष देखरेख की भी आवश्यकता नही पडती है। क्योंकि ये हर प्रकार की जमीन में आसानी से उग जाती है। इनको छायादार स्थानों में तथा बडे वृक्षों के नीचे जहां अन्य फसले नही उग पाती, वहां भी सफलतापूवक उगाया जा सकता है। घरेलू आवश्यकता पूर्ति के लिए, इन दोनो फसलों को गृहवाटिका में भी उगाया जा सकता है।

हल्दी एवं अदरक मसाले वाली दो ऐसी फसल है जिनको जिला चित्रकूट में उगाने की अचछी सम्भावनाये है। इनको उगाने के लिए विशेष देखरेख की भी आवश्यकता नही पडती है। क्योंकि ये हर प्रकार की जमीन में आसानी से उग जाती है। इनको छायादार स्थानों में तथा बडे वृक्षों के नीचे जहां अन्य फसले नही उग पाती, वहां भी सफलतापूवक उगाया जा सकता है। घरेलू आवश्यकता पूर्ति के लिए, इन दोनो फसलों को गृहवाटिका में भी उगाया जा सकता है।

अच्छी किस्मों की अनुपलब्धता तकनीकी जानकारी एवं सिचाई के साधन के अभाव के कारण क्षेत्र में इनकी खेती का प्रसार नही हो पाया परन्तु विगत वर्षो में जिले में जलग्रहण प्रबन्धक की सफलता की बदौलत सिंचित क्षेत्र में काफी बढोत्तरी हुई है, अतः ऐसे क्षेत्रों में हल्दी एवं अदरक की खेती को बढावा देकर किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार लाया जा सकता है।

अन्य फसलों की अपेक्षा मसालों की खेती प्रति इकाई क्षेत्रफल अधिक आमदनी देती है। हल्दी का हमारे दैनिक जीवन में बहुत अधिक उपयोग होता है हल्दी का मसाले में उपयोग के अतिरिक्त इसको प्राकृतिक रंग के रूप में अन्य व्यंजनों एवं मिठाई आदि को रंग देने में प्रयोग किया जाता है। घर में हल्दी को सौभाग्य सूचक सामग्री के रूप में माना जाता है।

आजकल सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग में भी इसकी मांग बढने लगी है। आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका काफी महत्व है। पोषण की दृष्टि से भी हल्दी का सेवन काफी लाभकारी है। अतः बहुपयोगी होने के कारण इसकी मांग को देखते हुये, कृषक हल्दी की खेती करके अधिक आय प्राप्त कर सकते है।

हल्दी का औषधीय गुण- हल्दी का उपयोग कफ विकार, त्वचा रोग, रक्त विकार, यकृत विकार, प्रमेह व विषम ज्वर मे लाभ पहंुचाता है हल्दी को दूध में उबालकर गुड के साथ पीने से कफ विकार दूर होता है। खांसी में इसका चूर्ण शहद या घी के साथ चाटने से आराम मिलता है। चोंट, मोंच ऐंठन या घाव पर चूना, प्याज व पिसी हल्दी का गाढा घोल हल्का गर्म करके लेप लगाने से दर्द कम हो जाता है। पिसी हल्दी का उबटन लगाने से त्वचा रोग दूर होते है, साथ ही शरीर कान्तिमान हो जाता है।

उन्नतशील किस्में-

सोरमा- यह किस्म 210 दिन में तैयार होती है कन्दर के अन्दर का रंग नारंगी लाल होता है। ताजे कन्दों की औसत उपज 80-90 कुन्तल प्रति एकड है। सूखे कन्दों की औसत उपज 20 कुन्तल प्रति एकड होती है। इस किस्म में रोग कम लगते है। कन्दों में 9.3 प्रतिशत करक्युमिन एवं 4.4 प्रतिशत संगन्ध तेल होता है।

सोनिया- यह पर्ण धब्बा रोग रोधी किस्म है ताजे कन्दों की औसत उपज 110-115 कुन्तल प्रति एकड है तथा सूखे कन्दों की औसत उपज 18-20 कुन्तल एकड होती है।

फसल 230 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कन्दों में 8.4 प्रतिशत करक्युमिन होता है।

सुगन्धम- इसके कन्द लाली लिये हुये पीले होते है। कन्द लम्बे होते है। यह 210 दिन में पकर तैयार हो जाती है। ताजे कन्दों की औसत उपज 80-90 कुन्तल प्रति एकड है।

सगुना- कन्द मोटे एवं गूदेयुक्त होते है। इस किस्म की अधिकतम उत्पादन क्षमता 600 कु./हेक्टेयर है। ताजे कन्दों की औसत उपज 110-120 कु./एकड है जिसमें से 25-30 कु. सूखे कन्द प्राप्त होते है। इसमें 6 प्रतिशत सगन्ध तेल प्राप्त होता है।

रोमा- यह किस्म 255 दिन में तैयार होती है। इस किस्म की अधिकतम उपज लगभग 160-170 कुन्तल कन्द प्रति एकड प्राप्त की जा सकती है, पर औसतन लगभग 80-100 कुन्तल प्रति एकड ताजे कन्द व 26 कुन्तल प्रति एकड सूखे कन्द प्राप्त होते है।

पन्त पीताम्भ- इस किस्म के कन्द चमकदार एवं आकर्षक होते है। बुवाई के 255 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है ताजे कन्दों की औसत उपज 100 कुन्तल प्रति एकड प्राप्त होती है।

हल्दी की किस्मों का चयन पीले रंग(कुरकुमिन) की मात्रा के आधार पर करना चाहिए। हल्दी की उन किस्मो को अच्छा माना जाता है जिनमें कुरकुमिन की मात्रा अधिक होती है जो काफी प्रचलित है।

जगह का चुनाव एवं खेती की तैयारी-

हल्दी की खेती सभी प्रकार की जमीन में की जा सकती है। दोमट तथा हल्की दोमट मिट्टी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। खेत में पानी नही ठहरना चाहिए एवं जल निकास की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए। इसको छायादार पेड, फलदार वृक्षों के नीचे आसानी से उगाया जा सकता है। निर्दिष्ट स्थान पर खेत का चुनाव करके खेत की 3-4 बार जुताई करके समतल कर लिया जाता है। खेत की अन्तिम जुताई के साथ एक एकड में 120-150 कु. गोबर की सडी खाद खेत में मिला देनी चाहिए।

लगाने का समय- इस क्षेत्र में अप्रैल मई में भीषण गर्मी देखते हुये इसे जून के द्वितीय सप्ताह से अन्तिम सप्ताह तक बुवाई करना उत्तम है।

बीज की मात्रा एवं बुवाई विधि-

बीज के स्वस्थ, सुडौल एवं रोग रहित गांठों का चुनाव करना चाहिए। एक एकड खेत में लगाने के लिए 7-8 कुन्तल गांठो की आवश्यकता होती है। लगाने से पूर्व गांठों को टुकडों में इस प्रकार काटना चाहिए कि प्रत्येक टुकडे का वजन 15-20 ग्राम हो प्रत्येक टुकडे में 2-3 स्वस्थ आंखे हो।

बुआई से पूर्व इन टुकडों को आधा घण्टे मैकोजेब एवं कार्बेन्डेजिम (2.5 ग्राम मैकोजेब$ग्राम कार्बेन्डेजिम प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर) के घोल में डुबोते है। उसके बाद छाया में सुखाया जाता है।

हल्दी की बुवाई के लिए 45 सेमी की दूरी पर मेडे बना ली जाती है और इन मेडों पर 20 सेमी. की दूरी पर बुवाई की जाती है बुवाई के उपरान्त मेडों को पलास, शीशम या आम की पित्तयों से 5-6 सेमी. मोटी पर्त से ढक देना चाहिए तथा दूसरी बार अंकुरण के बाद (बोने के 45-50 दिन) आसानी से गलने वाली दलहनी पौधों की पत्तियों से ढकना चाहिए जिससे पौधों के विकास के लिए नमी कायम रहे।

खाद एवं उर्वरक- खेती की अन्तिम जुताई से पूर्व 120-150 कु. गोबर की सडी खाद प्रति एकड खेत में मिलाना चाहिए साथ ही 100 किलो डी.ए.पी. एवं 40 किलो म्यूरेट आॅफ पोटाश प्रति एकड न्तिम जुताई के साथ खेत में अच्छी तरह मिला दें।

सिंचाई- जून में बोई गई फसल मे वर्षा से पूर्व एक सिचाई तथा बरसात समाप्त होने पर 15 दिन के अन्तराल पर सिचाई करनी चाहिए।

खडी फसल में खाद देना एवं मिट्टी चढाना- हल्दी की अधिक पैदावार लेने के लिए निराई-गुडाई एवं मिट्टी चढाना अति आवश्यक है फसल की प्रारम्भिक अवस्था में निराई करके खरपतवार न होने दे जब हल्दी के पौधे 30-40 दिन की अवधि के हो जाए। उस समय 40 किलो ग्राम यूरिया प्रति एकड देकर मेड चढाना चाहिए। एक बार पुनः जब पौधे 3 महीने के हो जाय उस समय 40 किलो यूरिया एवं 40 किलो म्यूरेट आफ पोटाश खाद देकर मेड चढानी चाहिए।

हल्दी की अन्तःवर्तीय खेती- कृषि बागवानी पद्धति में हल्दी को आम, अमरूद, आॅवला, कटहल, महुआ आदि पेडों की छाया में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इसके अलावा मक्का, मिर्च, टमाटर, बैगन के साथ भी अन्तःवर्तीय फसल के रूप में उगाया जा सकता है।

फसल चक्र- हल्दी की फसल कन्द वाली फसल होने के कारण भूमि से अधिक मात्रा मे पोषक तत्व लेती है। अतः भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए सिंचित क्षेत्रों में गर्मियो में लोबिया, उर्द या मूँग की फसल ले एवं इसके पश्चात हल्दी की फसल ले।

खुदाई- जब पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती है। तब फसल खुदाई योग्य हो जाती है। किस्मों के अनुसार 8 से 9 महीने में हल्दी तैयार हो जाती है खुदाई करते समय यह ध्यान रहे कि औजारों से गांठे कटे नही। खुदाई के बाद गांठों को अच्छी तरह साफ करना चाहिए।

हल्दी में लगने वाले रोग एवं कीट

लीफ ब्लाच: इस रोग मे पत्तियों पर पीले रंग के छोटे, अण्डाकार चैकोर तथा बिखरे हुये धब्बे दिखाई देते है जिससे हल्दी की पैदावार पर असर पडता है। रोग का प्रकोप आरम्भ होते ही       मैकोजेब की 2.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर छिडकाव करें।

पत्ती धब्बा रोग: रोग ग्रस्त पौधों की नई पत्तियों पर विभिन्न प्रकार के भूरे धब्बे ऊपरी सतह पर दिखाई देते है। प्रभावित पौधों में गांठों का विकास ठीक तरह से नही हो पाता। रोग की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स (3 ग्राम) या मैकोजेब (2.5 ग्राम) प्रति लीटर की दर से जल में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करें।

गांठों का सडन रोग: इस बीमारी का प्रकोप खेत में तथा भण्डारण दोनो समय होता है। प्रभावित गांठें अन्दर से सड जाती है। गांठों को भण्डारण तथा बुवाई से पूर्व 1 घण्टे तक 2.5 ग्राम इण्डोफिल एम-45 एवं बाविस्टीन 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से जल में घोलकर उपचारित करें। खडी फसल में रोग के लक्षण दिखने पर मैकोजेब की 2.5 ग्राम दवा को प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर छिडकाव करें।

तना छेदक कीट: हल्दी की फसल का प्रमुख कीट है। कीडे कोमल तनों में घुसकर उन्हे अन्दर से खाती है, जिससे पौधे पीले पडकर सूखने लगते है। फसल को कीट से बचाने के लिए ट्राइजोफास 2 मिली. प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर जुलाई से अक्टूबर तक एक महीने के अन्तराल पर छिडकाव करें।

पत्ती लपेटक कीट: इस कीट की सूंडी पत्ते को मोडकर उसके अन्दर क्षति पहंुचाती है कीट की रोकथाम के लिए कार्बारिल दवा की 1 मिली. मात्रा को प्रति ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें।

ताजी गांठों से हल्दी तैयार करना

घरेलू स्तर पर कच्ची हल्दी से हल्दी पाउडर बनाने की विधि- हल्दी की गांठों को खुदाई के पश्चात् कन्दों से जडों को साफ कर लिया जाता है। फिर कन्दों को पानी से अच्छी तरह धोकर मिट्टी साफ कर ली जाती है। इसके बाद कन्दों को लोहे की कडाही या मिट्टी के घडों में उबालते है। उबालते समय पानी में थोडा गाय का गोबर या खाने वाला चूना (20 ग्राम प्रति 10 ली. पानी की दर से) डालें ऐसा करने से हल्दी का रंग अधिक आकर्षक हो जाता है।

कन्दों को तब तक उबाले जब तक कि कन्द मुलायम न पड जाये। उबली हुई गांठों को ठण्डा होने के लिए 2-3 घण्टों के लिए साफ फर्श पर बिखेर दे तथा इसके पश्चात गांठों से बाहरी छिलका साफकर गांठों को कुचल दें एवं 7-8 दिन के लिए धूप में सुख लें।

उसके पश्चात् पिसा लें एवं पालीथीन की थैली या बर्तनों में भण्डारित कर लें।

हल्दी बनाने की उन्नत व व्यापारिक विधि- खुदाई के बाद प्रकन्दों को धोकर साफ कर लेते है और प्रकंदों को 2-3 दिनों तक सुखाते है। इसके बाद 45-60 मिनट तक पानी में उबालते है। प्रकन्दो के उबल जाने पर हल्दी की एक विशेष गन्ध आने लगती है तथा पानी की सतह पर झाग भी दिखाई देने लगता है। उबतालते समय खाने वाला सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 10 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिला देते है। इससे हल्दी का रंग और भी अच्छा हो जाता है।

प्रकन्दों का कम उबालने से हल्दी अच्छी नही होती है तथा ज्यादा उबालने से रंग बिगड जाता है। उबले हुये प्रकन्दो को धूप में तब तक सुखाये जब तक तोडने पर उसमें से खट की आवाज न आने लगे। हल्दी का प्राकृतिक रंग बना रहने के  लिए इसे मोटी परतों (5-6 सेमी.) में सुखाना तथा प्रकन्दो को आकर्षक बनाने के लिए इनकी रंगाई आवश्यक होती है। 100 किग्रा. हल्दी की रंगाई के लिए 40 ग्राम फिटकरी, 2 किग्रा. हल्दी का बारीक पाउडर, 140 मिली. अरण्डी का तेल, 30 ग्राम खाने का सोडा तथा 30 मिली. नमक का तेजाब का मिश्रण बनाकर रंगाई करते है। इस तरह रंगी गई हल्दी को सुखाकर भण्डारित करते है।

हल्दी का बीज के लिए भण्डारण- बीज के लिए हल्दी का भण्डारण गड्ढा बनाकर करते है इसके लिए प्रति कुन्टल हल्दी के भण्डारण के लिए 1 घन मी. (1मी. गहरा 1 मी. चैडा) गड्ढा ऐसी ऊँची जगह पर खोदते है जहां पानी नही ठहरता हो खोदी गई हल्दी को मैकोजेब (2.5 ग्राम) $ कार्बेन्डेजिम (1ग्राम) प्रति ली. पानी की दर से बनाये गये घोल में आधा घण्टा उपचारित करने के बाद छाया में 1 घण्टे के लिए फैलाकर सुखाते है गड्ढे के नीचे तथा दीवार की सतह पर सूखी हल्दी की पत्तियां डाल देते है।

गड्ढे को ऊपर से लकडी के तख्ते से ढक देते है तख्ते में छोटा सा छेद कर देते है तथा छेद को छोडकर शेष भाग को मिट्टी से ढककर गोबर से लेप कर देते है। इस तरह बीज को 4 से 5 माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

पैदावार- कच्ची हल्दी की पैदावार औसतन 80-90 कुन्टल प्रति एकड प्राप्त होती है जो सुखाने पर 20-25 कुन्टल रह जाती है।

आर्थिक पक्ष- कच्ची हल्दी की औसत उपज 80-90 कु./एकड के उत्पादन में कुल लागत लगभग 60,000 रूपये की आती है। 84 कुन्टल हल्दी से आय 16800 रूपये (2000 रूपये प्रति कु.) आती है। अतः शुद्ध लाभ 108000 रूपये प्रति एकड प्राप्त होती है।

डा0 विनय कुमार

विषय वस्तु विशेषज्ञ - उद्यान

कृषि विज्ञान केन्द्र, गनीवां-चित्रकूट

आदित्य कुमार सिंह

वरिष्ठ शोध सहयोगी

कृषि विज्ञान केन्द्र, गनीवां-चित्रकूट

English Summary: Make more profit from improved cultivation of turmeric ... Published on: 12 March 2018, 06:16 IST

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