खुम्बी की खेती खाद्य कवक के रूप में दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है. खुम्बी बागवानी फसलों की तरह महत्वपूर्ण फसल है, जिसे ताजा या संसाधित होने के बाद खाया जा सकता है.
दुनिया भर में खुम्बी की कई प्रजातियां होती है, जिनमे से अगेरिकस बाईस्पोरस (सफेद बटन) मुख्य रूप से (लगभग 70 प्रतिशत) उगाई जाती है. यह बहुत पौष्टिक होता है, इसमें प्रोटीन, खनिज, फाइबर और पर्याप्त नमी होती है. इसमें कुछ औषधीय गुण भी होते हैं.
खुम्बी मशरूम की खेती जैविक और अजैविक कारकों से बहुत अधिक प्रभावित होती है. जैविक कारकों में कवक, जीवाणु, वायरस, और कीड़े खुम्बी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पहुचाते हैं. जैविक तनावों में सूत्रकृमि भी खुम्बी उत्पादन में प्रमुख कारक हैं. अगर यह खुम्बी की खेती में प्रवेश करता है, इसे हटाना बहुत मुश्किल हो जाता है.
मशरूम पर तीन प्रकार के सूत्रकृमि आक्रमण करते हैं, परजीवी, मृतभक्षी और परभक्षी. एफ़ेलेनकोएड्स सूत्रकृमि जैसे एफ़ेलेनकोएड्स प्रजाति और एफ़ेलेनकस प्रजाति खुम्बी की उपज को कम करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
स्पॉन रन के दौरान परजीवी सूत्रकृमि खुम्बी के मायसेलियम को खाते हैं. सूत्रकृमि के उच्च प्रजनन के कारण फसल कम समय में नष्ट हो जाती है, गंभीर संक्रमण में 100% तक नुकसान हो सकता है. मृतभक्षी सूत्रकृमि अप्रत्यक्ष रूप से कुछ एंजाइमों और विषाक्त पदार्थों को स्रावित करके खुम्बी के उत्पादन को नुकसान पहुंचाते हैं. मृतभक्षी और परजीवी सूत्रकृमि के संक्रमण का प्रमुख स्रोत अनपश्चुरीकृत या आंशिक रूप से पास्चुरीकृत कम्पोस्ट है.
खुम्बी को ताजा खाया जाता है, इसलिए रासायनो का प्रयोग उचित नहीं है. इस प्रकार, बेहतर उपज और कम सूत्रकृमि आबादी के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से प्रबंधन सबसे अच्छा तरीका है. फसल की अवधि के दौरान स्वच्छ परिस्थितियों का रखरखाव, यानी कम्पोस्ट तैयार करने से लेकर कटाई तक, फसल में सूत्रकृमि के संक्रमण से बचने का सबसे उपयोगी उपाय है. क्योंकि अधिकांश खुम्बी मशरूम उत्पादक किसान गरीब हैं जो पाश्चुरीकरण कक्ष का खर्च नहीं उठा सकते हैं, उन्हें उपज में नुकसान होता है और उन्हें अपनी फसल का अच्छा लाभ नहीं मिलता है. इस प्रकार, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा एक सामान्य पाश्चराइजेशन चैम्बर सुविधा प्रदान की जानी चाहिए.
मशरूम की सूत्रकृमि प्रजाति (Mushroom nematode species)
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एफ़ेलेनकोएड्स कंपोस्टिकोला
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एफ़ेलेनकोएड्स स्वरूपी
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एफ़ेलेनकोएड्स नियोकंपोस्टिकोला
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डाइटिलेंकस माइसीलियोफेगस
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एफ़ेलेनकस एवेनी आदि.
खुम्बी घर में सूत्रकृमि प्रवेश मुख्य कारण (Main reason for nematode entry in mushroom house)
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सूत्रकृमि संक्रमित कम्पोस्ट, और मिट्टी के माध्यम से स्थानांतरित हो जाते हैं .
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संक्रमित से गैर-संक्रमित क्षेत्रों में उपकरण, कपड़ों और श्रमिकों के हाथों से स्थानांतरित हो जाते हैं .
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एक बार छत पर संक्रमण हो जाने पर, छत पर संघनित पानी की बूंदों में सूत्रकृमि लार्वा या उनके अंडे होने से, फसल गिरती बूंदों के माध्यम से संक्रमित हो जाती है.
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कम्पोस्ट तैयार करने में अस्वच्छ पानी का इस्तेमाल करने से.
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कभी-कभी मक्खियाँ, विशेष रूप से सियारिड, सूत्रकृमि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं.
लक्षण (Symptoms)
1. उपज में गिरावट आती है. अगर संक्रमण जल्दी होता है तो प्याज के आकार का खुम्बी बनते हैं.
2. सूत्रकृमि प्रभावित खुम्बी भूरे रंग के होते हैं.
3. कम्पोस्ट में खुम्बी माइसिलियम का अपघटन .
4. यदि सूत्रकृमि स्पॉनिंग के समय कम्पोस्ट में मौजूद होते हैं, तो स्पॉन का मायसेलियम धीरे-धीरे बढ़ेगा और पतित हो जाएगा और खुम्बी नहीं बनेगा.
5. प्रभावित क्षेत्रों में माइसेलियम पूरी तरह से नष्ट हो जाता है और जैसे ही कम्पोस्ट सड़ जाती है, यह काला हो जाता है और एक औषधीय गंध आने लगती है .
6. सूत्रकृमि-संक्रमित क्षेत्रों की सतहें कम्पोस्ट अपघटन के परिणामस्वरूप धस जाती हैं, और अनियमित रूप धारण कर लेती हैं.
7. जैसे-जैसे संक्रमित क्षेत्रों का विस्तार होता है सूत्रकृमि नए आहार स्थलों की ओर पलायन करते हैं.
सामान्य प्रबंधन रणनीतियाँ (General Management Strategies)
1. प्राथमिक संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए .
2. कम्पोस्ट बनाने के लिए तल सीमेंटेड या टाइलयुक्त और छत से ढका होना चाहिए, कम्पोस्ट तैयार करने के लिए 24 घंटे पहले इसे 2% फॉर्मेलिन के साथ कीटाणुरहित किया जाना चाहिए .
3. नियमित सफाई के साथ साथ कटे हुए खुम्बी को हटाना चाहिए.
4. कम्पोस्ट में 20 मिलीग्राम/किलोग्राम फेनामिफोस ईसी का प्रयोग सुरक्षात्मक उपाय है .
5. नीम गिरी पाउडर के (4 भाग ) को घोल 7.5 लीटर प्रति क्विंटल कम्पोस्ट बिजाई के समय 2-3 दिन पहले कम्पोस्ट में मिलाएं.
6. घोल बनाने के लिए 400 ग्राम नीम की पिसी हुई गिरी को 10 लीटर पानी में रात भर भिगोएं और कपड़े से छान कर प्रयोग करें.
लेखक: लोचन शर्मा1, सरिता2, सुजाता3 और विशाल गाँधी4
1,3पीएचडी शोधकर्ता, सूत्रकृमि विभाग
2,4पीएचडी शोधकर्ता, पादप रोग विभाग
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
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