गेहूं की फसल में सामान्यतः दो प्रकार के खरपतवार पाएं जातें जो संकीर्ण तथा चौड़ी पत्ती वर्ग से सम्बन्ध रखतें हैं. यदि इन खरपतवारों का नियंत्रण फसल के प्रारंभिक अवस्था में न किया जाए तो फसल के उत्पादकता में 10 से 40 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जो खरपतवारों के तीव्रता एवं प्रकार पर निर्भर करता है. खरपतवारों का वर्गीकरण एवं गेहूं के फसल में पाएं जाने वाले मुख्य खरपतवार निम्न हैः -
एकबीजपत्री वर्ग के खरपतवार (संकीर्ण पत्तों वालें खरपतवार)
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फाइलेरिस माइनर और गुल्ली-डंडा- धान गेहूं फसल चक्र में खरपतवार बड़ी़ समस्या है.
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जंगली जई - यह खरपतवार हल्के से मध्यम बनावट वाले मृदा में (गैर धान के खेत में) प्रमुखता से पाया जाता है.
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पालिपोगान मानस्पेलियएनसिस (लुम्बर घास)
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साइनाडॉन डैकटाइलन (दुब)
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लोफोक्लोआ प्यूमिला
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लोलियम टेम्यूलेटम (राई घास)
द्विबीजपत्री वर्ग के खरपतवार (चौड़ें पत्तों वालें खरपतवार)
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चेनेापोडियम एलबम (बथुआ)
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मेंलिलोटस एलबा/ मेंलिलोटस इंडिका (जंगली सेंजी)
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मेडिकैगो डेंटिक्यूलेटा (मैना)
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ट्राइगोनेला पालीसीरेटा (मैनी)
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फ्यूमेंरिया परविफ्लोरा (गजरी)
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सिरसियम आरवेंस (कटैंली)
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एनागैल्लिस आरवेंसिस (कृष्ण नील)
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विसिया सटाइवा (अकरी)
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लेथाइरस स्पीसीज (चटरी मटरी)
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कनवाल्युलस आरवेंसिस (हिरण खुरी)
नरकट
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साइप्रस रोटन्डस (मोथा)
रासायनिक खरपतवारनाशकों द्वारा खरपतवार नियंत्रण
बुवाई से पूर्व खरपतवार नियंत्रण
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यदि बुवाई के पहले खरपतवार हो तो इन खरपतवारों को नष्ट करने के लिए ग्लाइफोसेट (राउण्ड अप या ग्लाइसेल) 0 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का प्रयोग 300-400 लीटर पानी में मिलाकर या 1.0-1.5 प्रतिशत घोल के अनुसार 10.0-15 मिली. राउण्ड अप या ग्लाइसेल (ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत) प्रति लीटर पानी या 6-10 ग्राम मेंरा -71 (ग्लाइफोसेट 71 प्रतिशत) का अमोनियम साल्ट प्रति लीटर पानी के साथ बुवाई के 2-3 दिन पहले छिड़काव कर देना चाहिए.
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खेत में जहां पर खरपतवार हो उन्हीं स्थानों पर उपरोक्त लिखित खरपतवारनाशी का प्रयोग करना चाहिए जिससे समय व लागत बचेगी.
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छिड़काव कें लिए फ्लैट - फैन बूम नोजिल का प्रयोग करें. यदि फ्लैट - फैन बूम नोजिल उपलब्ध नहीं हो तो कट नोजिल का प्रयोग करना चाहिए. खरपतवारनाशी के छिड़काव कें लिए कभी भी शंकु आकार के नोजिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
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उपरोक्त खरपतवारनाशीयों का प्रयोग गेहूं की बुवाई के बाद कभी भी नहीं करना चाहिए
बुवाई के उपरांत खरपतवार नियंत्रण
निम्न खरपतवारनाशी का छिड़काव बुवाई के 30-35 दिन बाद 120-150 लीटर पानी में प्रति एकड़ फ्लैट - फैन नाजिल के द्वारा करना चाहिए
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मिश्रित खरपतवार के लिएः टोटल (सल्फोसल्फ्यूरान + मेंट्सल्फ्यूरान) 16 ग्राम उत्पाद प्रति एकड़ या वेस्टा क्लोडिनोफाप + मेंट्सल्फ्यूरान) 160 ग्राम उत्पाद प्रति एकड़ या बाडवे (सल्फोसल्फ्यूरान + कार्फेन्ट्राजान) 25 + 20 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर
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संकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिएः लीडर/सफल/फतेह (सल्फोसल्फ्यूरान) 13.5 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ या टापिक (क्लोडिनोफाप) 60 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़.
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चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिएः 2, 4-डी. सोडियम साल्ट 400 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ या एल्ग्रिप (मेंट्सल्फ्यूरान) 4 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर या एफिनिटि (कार्फेन्ट्राजान) 08 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़.
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यदि खेत में मिश्रित खरपतवार के साथ मकोय भी हों तो बाडवे (सल्फोसल्फ्यूरान + कार्फेन्ट्राजान) का प्रयोग करना चाहिए.
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जमाव के बाद खरपतवारनाशी का प्रयोग 2-3 पत्ती की अवस्था पर करना चाहिए.
खरपतवार नाशक के प्रयोग में सावधानियां
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फसलों में उपस्थित खरपतवारों के प्रकार एवं अवस्था के अनुसार खरपतवारनाशकों का चुनाव करना चाहिए.
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हमेंशा अनुशंसित खरपतवार नाशकों का प्रयोग करें एवं इनकी खरीदारी विश्वस्त स्रोत से करना चाहिए.
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खरपतवार नाशकों का प्रयोग अनुशंसित मात्रा से कम या ज्यादा नहीं करना चाहिए.
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खरपतवार नाशकों के छिड़काव के पूर्व पम्प को आवश्यकतानुसार समायोजित कर लेना चाहिए.
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खाली पेट खरपतवार नाशकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए.
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खरपतवार नाशकों का छिड़काव की दिशा हवा के दिशा के विपरित नहीं होना चाहिए.
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शरीर का कोई अंग या भाग खरपतवार नाशकों के सम्पर्क में कम से कम आना चाहिए, इसके लिए आवश्यक है कि छिड़काव करते समय दस्ताना, फुल पैंट, फुल कमीज एवं जूता पहनें.
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प्रत्येक बार स्प्रे टैंक में खरपतवार नाशक के घोल को तैयार करते समय ठीक से हिला एवं मिला लेना चाहिए.
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खरपतवार नाशकों के छिड़काव के समय धुम्रपान एवं खान-पान से बचना चाहिए.
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छिड़काव कार्य सम्पन्न हो जाने पर कपड़ा बदल कर स्नान अवश्य कर लेना चाहिए.
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खरपतवार नाशकों के प्रकार के अनुसार (प्री एवं पोस्ट इमरजेंस) पानी की मात्रा 100 से 200 लीटर प्रति एकड़ की दर से बदलता रहता है.
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खरपतवार नाशकों के उत्तम परिणाम के लिए फ्लैट फैंन/फ्लड जेट नाजिल का प्रयोग करना चाहिए.
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जहाँ तक संभव हो, खरपतवार नाशकों का छिड़काव उगे हुए खरपतवारों पर एक समान करना चाहिए, छिड़काव करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि खरपतवार नाशकों को दोहराना नहीं है तथा कोई भी क्षेत्र छिड़काव से वंचित न रहें.
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प्री इमरजेंस खरपतवार नाशकों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पानी लगता है तथा पोस्ट इमरजेंस के लिए कम पानी का प्रयोग होता है.
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एक ही फसल के कुछ प्रभेद खरपतवार नाशक के प्रति संवेदनशील होते हैं, इसलिए आवश्यक है कि खरपतवार नाशक के चुनाव के समय इनका प्रभेद के प्रति प्रतिक्रिया एवं संवेदनशीलता को ध्यान में रखा जाय.
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खरपतवार नाशकों को अदल-बदल कर प्रयोग करना चाहिए (खरपतवार चक्र अपनायें). लगातार एक ही खरपतवार नाशक के प्रयोग से खरपतवारों में खरपतवार नाशक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है, तथा पुराने खरपतवारों की जगह नये खरपतवार प्रगट हो जाते हैं एवं पुराने खरपतवारों की जगह ले लेते हैं.
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छिड़काव के बाद खरपतवार नाशकों के बचे घोल को मुख्य खेत में न फेंके, अगर फेंकना हो तो बिना जोत वाले खेत में फेंके.
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स्प्रे करने वाले पम्प को छिड़काव के बाद डिटर्जेंट से अवश्य धुल देना चाहिए.
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बचे हुए खरपतवार नाशकों को चिप्पी लगाकर कीटनाशकों से दूर रखें.
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2, 4-डी. का छिड़काव, गेहूं के अधिकतम कल्ले की अवस्था में करना चाहिए.
समेकित खरपतवार प्रबंधन
पिछले तीन-चार दशकों से, बडे़ पैमाने पर ऐसे खरपतवारों का उद्भव हुआ है जो वर्तमान में प्रयोग में आने वाले खरपतवार नाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लिए हैं. एक प्रकार के रासायनिक खरपतवार नाशकों के बारम्बार छिड़काव करने तथा नियमित रुप से खेती के एक ही पद्धति का पुनरावृत्त करने से, खरपतवारों के जाति एवं समुदाय में परिर्वतन आया है. इसलिए खरपतवार नियंत्रण के विभिन्न विधियों का एकीकरण करना होगा, जिससे सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी समस्याओं को ठीक करते हुए खरपतवार नियंत्रण की कार्यक्षमता में भी वृद्धि की जा सके.
रणनीतियाँ
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फसल चक्र
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बुवाई की तारीख
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पौधे का घनत्व
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बुवाई का तरीका
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उर्वरकों के प्रयोग की विधि
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शीघ्र बढने वाले प्रजातियों का चुनाव
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जुताई की पद्धति
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डॉब प्रणाली
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मल्च विधि
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सिंचाई प्रबंधन
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मृदा सौर्यीकरण
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मैकेनिकल रोकथाम
फसल चक्र
फसल चक्र खरपतवार प्रबंधन का एक गैर मौद्रिक तकनीक है. फाइलेरिस माइनर (गुल्ली-डंडा) खरपतवार की संख्या धान-गेहूं फसल चक्र में कम या समाप्त किया जा सकता है. यदि गेहूं की जगह बरसीम, आलू, गन्ना, शीतकालीन मक्का या सब्जियों की खेती की जाए.
बुवाई की तारीख
जल्दी या विलंब से गेहूं की बुवाई करने से, फाइलेरिस माइनर (गुल्ली-डंडा) खरपतवार की संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है.
पौधे का घनत्व
पौधों के घनत्व को बढाने से खरपतवारों को बढने के लिए कम से कम जगह मिलता है. अगर गेहूं के बीज की दर को 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर से बढाकर 150 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर कर दिया जाए तो खरपतवारों की संख्या में काफी कमी आ जाती है.
बुवाई का तरीका
इस तकनीक का मूल उद्देश्य है कि वही बीज की दर से प्रति इकाई क्षेत्रफल में फसल के पौधों का बराबर फैलाव हो. उदाहरणः- गेहूं में पंक्ति से पंक्ति की दूरी कम करना या गेहूं की क्रास बुवाई करना.
उर्वरकों के प्रयोग की विधि
गेहूं के फसल में उर्वरकों का उपयोग यदि प्लेसमेंट विधि से करते हैं तो फाइलेरिस माइनर (गुल्ली-डंडा) खरपतवारों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम पायी जाती है यदि इसकी तुलना छिटका विधि से करते है तो.
शीघ्र बढने वाले प्रजातियों का चुनाव
गेहूं की ऐसी प्रजातियों की प्राथमिकता देनी चाहिए जो प्रारंभिक वृद्वि तेजी से करें और पत्तों का क्षेत्रफल ज्यादा हो जिससे फसल एवं खरपतवारों के बीच प्रतिस्पर्धा बहुत कम हो जाती है.
जुताई की पद्धति
जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की बुवाई करते हैं तो फाइलेरिस माइनर (गुल्ली-डंडा) खरपतवारों की संख्या काफी कम हो जाती है.
डॉब प्रणाली
इस विधि में गेहूं की बुवाई के पूर्व सिंचाई करके खरपतवारों के अंकुरण के लिए पर्याप्त समय देते हैं जो 8-10 दिनों का होता है इसके उपरांत खेत तैयार करते समय अंकुरित खरपतवारों को पलट देते हैं.
मल्च विधि
खरपतवारों के अंकुरण को मल्चिंग विधि से कम कर सकते हैं.
सिंचाई प्रबंधन
सपाट विधि से सिंचाई करनें पर खरपतवार ज्यादा आते है. बूंद-बूंद या फव्वारा विधि से सिंचाई करने पर इसका रोकथाम किया जा सकता है और पानी की भी बचत होती है.
मृदा सौर्यीकरण
मृदा सौर्यीकरण खरपतवार नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसमें गीला मृदा को ग्रीष्म ऋतु में पतला एवं पारदर्शी पॉलीथिन शीट के आवरण से ढक देते हैं.
मैकेनिकल रोकथाम
इस तरह के रोकथाम में मुख्यतः हाथ से चलने वाले मशीनों और उपकरणों का प्रयोग किया जाता है उदाहरण के लिए खुरपा या खुरपी इत्यादि.
नोटः कृषि रसायनों के प्रयोग के पूर्व वैज्ञानिक या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें.
लेखक: डॉ0 राजीव कुमार श्रीवास्तव
सहायक प्राध्यापक (सस्य), बीज एवं प्रक्षेत्र निदेशालय, तिरहुत कृषि महाविद्यालय, ढोली
एवं प्रभारी पदाधिकारी, क्षेत्रिय अनुसंधान केन्द, बिरौल, दरभंगा-847203
(डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार)
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