पैसा किसको अच्छा नहीं लगता ! आज की भागदौड़ की जिंदगी में कोई क्यों मेहनत करता है ? सरल सा जवाब है की पैसा कमाने के लिए. मेहनत का उचित मूलय मिले यही कामना होती है. ऐसा ही किसान जिसे अन्नदाता भी कहा जाता है, वह इतना सहनशील होता है की करोड़ों की भूख को शांत करने के लिए, पहले मिटटी को देखता है, फिर बीज और पानी की जरूरत पूरी करते हुए काश्तकारी करता है. इस खेती किसानी में उसे मिलता क्या है?
उचित मूलय भी नहीं.
झगड़ा किस बात का है. किसान आंदोलन क्यों करता है कि उसे एम एस पी ठीक मिले.
अभी सरकार ने फसलों का एम एस पी बढ़ाया तो क्या किसान इससे खुश है?
चलिए जान लेते हैं कि देश कि मंडियों में फसलों कि क्या कीमत है और एम एस पी से क्या फायदा और क्या नुक्सान हुआ?
रबी की फसलों के लिए गेहूं समेत 21 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाते हुए सरकार ने कहा था कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में ये ऐतिहासिक कदम है। इससे पहले जुलाई में खरीफ फसलों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया गया था।
लेकिन अगर आंकड़ों की मानें तो किसानों को प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। देशभर की मंडियों का भाव बताने वाली सरकार की वेबसाइट एगमार्कनेट डॉट जीओवी डॉट इन के अनुसार मौजूदा समय की एक दो जिंसों को छोड़ दिया जाए तो मंडी में किसी भी फसल की एसएसपी पर खरीदी नहीं हो रही।
जब इस वेबसाइट को खंगाला तो आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आए। मध्य प्रदेश, छिंदवाड़ा के मक्का किसान सुशील बोवचे 10 अक्टूबर को लगभग दो कुंतल उपज लेकर गल्ला मंडी पहुंचे तो उन्हें एक कुंतल के एवज में 1400 रुपए ही मिला, जबकि सरकारी कीमत 1700 रुपए है। सुशील कहते हैं "मुझे तो पता चला था कि मक्का का दाम 1700 रुपए कुंतल है, लेकिन यहां तो इतना पैसा मिला ही नहीं। दो कुंतल के पीछे 600 रुपए का नुकसान हो गया, अभी तो भावांतर का भी कुछ अता-पता नहीं है। फायदे की तो बात ही मत करिए।"
वेबसाइट एगमार्कनेट डॉट जीओवी डॉट इन पर 10 अक्टूबर का भाव देखा तो पता चला कि एमएसपी और वास्तविक भाव में भारी अंतर है। सिर्फ 10 अक्टूबर को ही किसानों को अपनी फसल के एवज में 20,25,3513 (दो करोड़, पच्चीस लाख पैतीस सौ तेरह रुपए) का नुकसान उठाना पड़ा। शुरुआत धान से करते हैं। धान की आवक मंडियों में शुरू हो चुकी है। सरकार ने धान की एमएसपी में 200 रुपए का बढ़ोतरी की थी। मौजूदा कीमत 1750 रुपए प्रति कुंतल है। 10 अक्टूबर को देशभर की मंडियों में धान की कुल खरीदी 111922 कुंतल हुई। अलग-अलग मंडियों के मॉडल प्राइज के औसत के अनुसार किसानों को एक कुंतल के बदले 1737 रुपए दिया गया। मतलब किसानों को प्रति कुंतल 13 रुपए का नुकसान हुआ। अब अगर 13 रुपए को 111922 कुंतल के साथ गुणा करेंगे कुल नुकसान होगा 1454986 रुपए (साढ़े चौदह लाख रुपए से ज्यादा)। ध्यान रहे ये नुकसान महज एक दिन और एक फसल का है, यहां महीने और साल की कोई बात ही नहीं हो रही। दूसरी तरफ कई स्थानीय मंडियों में आढ़ती धान को 1400 -1500 रुपए में खरीद रहे। यहां नुकसान का आंकड़ा काफी बढ़ जाएगा। किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गयी है। अगर फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है, इसीलिए ये व्यवस्था लागू की गयी है। इसके जरिये सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है।
मंडियों में मक्के की आवक इस समय जोरों पर है। देश की मंडियों में 10 अक्टूबर को 1371 रुपए प्रति कुंतल के औसत से मक्के की खरीदी गयी। मक्का किसानों को भी एक कुंतल के पीछे 329 रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। यानी कि इस तारीख को देशभर के मक्का किसानों को 2,87,3,486 रुपए का घाटा सहना पड़ा। भावांतर योजना काफी दिनों से बंद है। आगामी सीजन में वो फिर शुरु होगी।
एमएसपी बढ़ा देने मात्र से किसानों का लाभ नहीं होने वाले। मंडियों में बिचौलिए सक्रिय हैं, उन्हें रोकने के लिए सरकार के पास पर्याप्त लोग ही नहीं है। भाव कम करके व्यापारी अनाज खरीद लेते हैं। बड़ी-बड़ी कपंनियां ट्रेडिंग कर ही क्यों रहीं हैं, जाहिर सी बात है कि उन्हें मोटा फायदा दिख रहा है।" 10 अक्टूबर को मंडियों में बाजरा की खरीदी 1402 रुपए प्रति कुंतल की दर पर हुई। वेबसाइट के अनुसार इस दिन 1402 रुपए प्रति कुंतल की दर से 1049 कुंतल बाजरा की खरीदी हुई जबकि सरकार ने बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1950 रुपए तय कर रखा है। इस हिसाब से किसानों को 5,74,853 रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। सरकार की तय की हुई दरों पर व्यापारी उपज खरीदते ही नहीं। किसानों को उनकी नुकसान का भरपाई भावांतर और बोनस के माध्यम से कर दिया जाता है। व्यापारी दाम बढ़ने ही नहीं देते। अब उड़द की कीमत 5600 रुपए है, मंडी व्यापारियों के हिसाब से चलती है। इसी तरह 1979 की दर से 743 कुंतल ज्वार की खरीदी मंडी में होती है कि जबकि इसका एमएसपपी 2430 रुपए है, इस हिसाब से देशभर के किसानों को 3,35,093 रुपए का नुकसान हुआ।
रागी का हाल भी कुछ ऐसा ही है। सरकार भले ही मोटे अनाज का उत्पादन बढ़ाने की बात कर रही हो लेकिन अगर किसानों को ऐसे नुकसान होता रहा तो मुश्किल है कि मोटे अनाज का उत्पादन बढ़े। दस अक्टूबर को देश की मंडियों में 2151 की औसत से 383 कुंतल रागी की खरीदी हुई जबकि इसका एमएसपी 2897 रुपए प्रति कुंतल है, किसानों को 746 रुपए की दर से 2,85,418 रुपए का नुकसान हुआ।
देशभर में एमएसपी सत्याग्रह चलाने वाले किसानों के संगठन स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव कहते हैं "एमएसपी मजाक है। देश में ऐसी कोई मंडी ही नहीं है जिस पर किसान सरकार की तय हुई एमएसपी पर अपनी पूरी फसल बेच सके। एमएसपी बढ़ाने को लेकर बहस हो सकती है पर मौजूदा हालात में कॉटन को छोड़कर किसानों को हर फसल के दाम एमएसपी से बहुत कम मिल रहे हैं। मौजूदा समय में एमएसपी के दाम मिल जाएं यही बहुत है।" दलहन में अरहर (तुअर) और उड़द की बिक्री सरकार की तय एमएसपी से ज्यादा कीमत पर हो रही है। 5675 एमएसपी वाले तुअर की बिक्री 5995 जबकि उड़द की बिक्री 5775 रुपए प्रति कुंतल पर हुई जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 5600 रुपए है। फिलहाल सरकार ने कुल 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है। लेकिन अपनी फसल इन दरों से कम में बेचने को मजबूर हैं। सरकार ने मूंग की एमएसपी 6975 रुपए तय की है जबकि देश की मंडियों में 10 अक्टूबर को 5997 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब 137 कुंतल खरीदी हुई। एक कुंतल के पीछे 978 रुपए के हिसाब से 1,33,986 रुपए का नुकसान किसानों को हुआ।
सरकार तिलहनी फसलों की पैदावार में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कृषि आयुक्त एसके मल्होत्रा ने राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में तिलहनी फसलों का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 60 लाख टन बढ़ाने की बात कही थी। देश में बड़े पैमाने पर खाद्य तेल की कमी है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर इसका आयात किया जाता है। यह सिलसिला लंबे समय से जारी है। सरकार ने भले ही लक्ष्य बढ़ा दिया हो लेकिन उसके किसानों की हालत ठीक नहीं है।
बारिश के बाद वैसे ही फसल का नुकसान हुआ है, ऐसे में मंडी से भी घाटा ही हो रहा है।" सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3399 रुपए तय किया है। लेकिन 10 अक्टूबर को मंडियों में इसकी खरीदी 2924 रुपए की दर से हुई। 4890 रुपए एमएसपी वाली मूंग की खरीदी 4155 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से हुई। 5360 कुंतल के आवक में किसानों को 3,93,9600 रुपए का घाटा हुआ जबकि सूरजमुखी का एमएसपी 5389 रुपए है बावजूद इसके 357 कुंतल उपज की 3659 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से हुई, मतलब यहां भी किसानों को 617616 रुपए का नुकसान हुआ।
किसान को सबसे ज्यादा सदमा तो तब लगता है जब अनुकूल मौसम और भरपूर फसल होने के बाद भी बाजार में उसकी उपज को वाजिब दाम नहीं मिलते। यह ज्यादा बड़ी त्रासदी है। खेती की सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हर बार जब भी किसान फसल की बुआई करता है, उसे इस बात का अहसास तक नहीं होता कि दरअसल वह घाटे की फसल बो रहा है। तुअर और उड़द के अलावा कॉटन इस सीजन की एक और ऐसी फसल जिसकी खरीदी एमएसपी दर से ज्यादा हुई। सरकार ने कॉटन के लिए 5150 रुपए एमएसपी तय किया है जबकि मंडियों में ये 5254 रुपए प्रति कुंतल बिकी। दिए गए आंकड़े सरकार की अधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त आंकड़ों के हैं।
चंद्र मोहन, कृषि जागरण
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