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इस विधि से ख़ेती करने के लिए मिल रही है 50 फ़ीसद की सब्सिडी

अगर आपको लगता है कि आपके खेतों की उर्वरा क्षमता कम हो गई है तो आप हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए खेती कर सकते हैं. इस विधि से ख़ेती करने के लिए आपको न हीं भूमि की ज़रूरत पड़ती है, और न ही सूरज की रोशनी की. इसके जरिए मौसम की मार भी नहीं झेलनी पड़ती है. इस विधि से खेती करने के लिए स्टैंड बनाये जाते हैं और उन्हीं स्टैंडों पर सीट लगाई जाती है

अगर आपको लगता है कि आपके खेतों की उर्वरा क्षमता कम हो गई है तो आप हाइड्रोपोनिक सिस्टम के जरिए खेती कर सकते हैं. इस विधि से ख़ेती करने के लिए आपको न हीं भूमि की ज़रूरत पड़ती है, और न ही सूरज की रोशनी की. इसके जरिए मौसम की मार भी नहीं झेलनी पड़ती है. इस विधि से खेती करने के लिए स्टैंड बनाये जाते हैं और उन्हीं स्टैंडों पर सीट लगाई जाती है इसी सीट और स्टैंड के सहारे ही ख़ेती की जाती है. साथ ही धूप, बारिश और ठंड से बचने के लिए पॉलिहाउस का निर्माण करवाया जाता है. इस विधि से टमाटर, हरी मिर्च, गुलाब, शिमला मिर्च और लेट्यूस (बर्गर में इस्तेमाल होने वाला साग) की ख़ेती जा सकती है. इसकी जानकारी कृषि कुंम्भ मेले में पंकज ने दी.

पंकज के मुताबिक हाइड्रोपोनिक सिस्टम से खेती करने के लिए पहले साल प्रति हेक्टेयर के दर से तीस लाख रूपये खर्च हो जाते हैं. इस विधि से खेती करने के लिए 50 फीसद की सब्सिडी सरकार दे रही है. पहले साल तो पॉलीहाउस लगाने के लिए 8 लाख का खर्च आता है जिसका खर्च दुसरे साल बच जाता है. इसकी पूरी सेटअप करने वाले विशाल बताते हैं कि जिनके पास एक हजार स्कवॉयर फीट ज़मीन हो वे किसान इस विधि से खेती कर सकते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, इसमें खेत के पास ही पानी के दो बड़े टैंक बनाने होते हैं. जिन टैंको से खेतों की सिंचाई होती है. इस विधि कि खेती में आम विधि कि तुलना में चार गुना ज्यादा पैदावार होती है. अगर हम उदाहरण दें तो एक हेक्टेयर कि ख़ेती में लगभग साढ़े तीन लाख गुलाब तैयार हो जाते हैं. बाज़ार में इतने गुलाब कि कीमत 12-15 लाख रूपये होगी. यह फसल एक साल में दो बार तैयार होती है तो गुलाब कि ख़ेती करके साल में 24 -30 लाख़ कमा सकते हैं.

इसका सेटअप करने वाले बताते हैं कि अगर एक बार पाली हाउस तैयार हो गया तो यह बीस साल तक चलता है. लेकिन इसकी सीट पांच साल में एक बार बदलवानी पड़ती है. इसी सीट में ही बीज उगाया जाता है. जिससे कि बाद में प्रॉडक्ट तैयार होता है. सीट बदलने का खर्चा चार से पांच लाख रुपये तक आता है. कंपनियों का दावा है कि इसमें पानी का इस्तेमाल भी आम खेती की तुलना में आधा होता है.

English Summary: 50 percent subsidy is being provided for this method Published on: 31 October 2018, 03:40 PM IST

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