अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमारे भोजन को पौष्टिक एवं संतुलित बनाने में सब्जियों का प्रमुख स्थान है. घरों में सब्जियां उगाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं हो पा रही है. ऐसी स्थिति में कुछ सब्जियों को गमलों, डिब्बों एवं लकड़ी के बक्सों में भी उगाया जा सकता है. इससे घर की शोभा तो बढ़ती है व साथ-साथ सब्जियों पर होने वाला खर्च भी घटता है.
गमलों का चयन (Selection of Pots)
सब्जियां उगाने के लिए मिट्टी के, सीमेंट और प्लास्टिक के गमले काम में लिए जा सकते हैं. प्लास्टिक के गमले हल्के होने के कारण, इनके रखरखाव में भी आसानी होती है, तथा इनको कम पानी की आवश्यकता होती हैं. गमलों में ऐसी सब्जियां उगाई जानी चाहिए, जो तीव्रगति से बढ़ने वाली हो, कम प्रकाश में भी सुगमता से उग सके, देखने में सुन्दर लगे, कम जगह घेरती हो व उत्पादन भी अधिक हो.
गमलों को कैसे भरें (How to fill pots)
गमलों में मिट्टी व खाद का मिश्रण भरने से पहले, इस बात का ध्यान रखें कि जल निकास की समुचित व्यवस्था हो. गमले में एक भाग मिट्टी, एक भाग गोबर की खाद, एक भाग नीम की खली और एक भाग बालू रेत का मिश्रण तैयार करके ऊपरी सतह से 2 सेंटीमीटर नीचे तक भरा जाना चाहिए ताकि पानी देने में सुविधा रहे और पानी भी बाहर न निकले. गमले के पेंदे में एक छेद अधिक पानी निकलने के लिए रखें.
गमलों में पौधों को उगाना (Growing plants in pots)
यदि गमलों में बीज बोते हैं, तो अंकुरण के लिए आवश्यक है कि गमलों को प्रकाश में रखा जाये. जब अंकुरण हो जाये तब उनकी हल्की सिंचाई करनी चाहिए. सिंचाई इतनी ही करनी चाहिए कि नमी बनी रहे, पानी जमा न होने पाए वरना आर्द्रगलन, जड़गलन जैसे रोग होने की आशंका रहती है. गमले में पानी हमेशा फव्वारे की सहायता से दें और आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई भी करते रहें. बेल वाली सब्जियां जैसे तोरई, करेला, खीरा, सेम आदि में जैसे ही बेल बढ़ना शुरू हो गमलों को एक स्थान पर स्थिर कर देना चाहिए और बेलों को सहारा देना चाहिए.
पौधों की देखभाल (Plant care)
पौधों को पानी देने के लिए मौसम, पौधों की अवस्था और गमले के आकार को ध्यान में रखना होगा. गर्मी के मौसम में पौधों को सुबह-शाम पानी देना चाहिए. वर्षा के दिनों में गमलों से फालतू पानी निकालना बहुत जरूरी है या गमलों को थोड़ा टेढ़ा रखना चाहिए. सब्जियों की अच्छी बढ़वार व पैदावार के लिए रासायनिक खाद, जैसे यूरिया 5 से 10 ग्राम प्रति गमले के हिसाब से 7 से 10 दिन के अन्दर पर रोपाई के 2 सप्ताह बाद और बीज बोने के 3 सप्ताह बाद देना चाहिए.
खाद देने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये. टमाटर, खीरा, करेला, ग्वार व लोबिया जैसी सब्जियों की उचित बढ़वार के लिए सहारा देने की आवश्यकता होती है. इसके लिए गमलों में पौधों के साथ लकड़ी लगाकर सुतली के साथ बांधकर सहारा दिया जा सकता है. गमलों में लगे पौधों में सावधानी के साथ समय-समय पर हल्की निराई गुड़ाई करना लाभदायक रहता है जिससे सब्जियों की बढ़वार अच्छी हो सके.
सब्जियों के पौधों में पदगलन या डेंपिंग ऑफ और विल्ट नामक रोग अधिक हानि पहुंचाते हैं. इनके बचाव के लिए फफूदीनाशक कार्बेण्डजीम 2 ग्राम या ट्राइकोडर्मा कल्चर 6 ग्राम प्रति किलो बीज को उपचार करके बोये, जिससे शुरुआती अवस्था में रोगों से बचाव हो सके. रस चूसने वाले कीटों जैसे चैपा व हरा तेला की रोकथाम के लिए एसिटामीप्रीड 20 SP 0.5 या जैविक कीटनाशी के रूप में बुवेरिया बेसियाना की 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.
कीटनाशी दवा छिड़कने के 7 से 10 दिन बाद तक फलों व सब्जियों को उपयोग में नहीं लाना चाहिए. सब्जियों के तैयार होने के बाद उनकी उचित अवस्था में कटाई करें और ताजी स्थिति में उपयोग करने से हमेशा इनके गुण सुगन्ध व पौष्टिकता का अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है. टमाटर को छोड़कर अन्य सब्जियों को नरम, मुलायम अवस्था में तैयार होते ही तोड़ लें. टमाटर के फलों को पकना शुरू होने पर ही तोडें. पत्तेदार सब्जियों जैसे- मैथी, पालक, चैलाई आदि नरम मुलायम अवस्था में लगाकर तैयार होने पर कटाई करते रहना चाहिए. जड़ों वाली सब्जियों को तैयार होते ही निकाल लें वरना जड़ें कठोर होकर खराब होने लगती है.
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