देश के कई राज्यों में मानसून का कहर जोरों पर है. किसान भाइयों के चेहरे भी खिले हुए हैं. लेकिन कहते हैं ना कि अति हर चीज की बुरी होती है. अत्यधिक बरसात की स्थिति में कुछ चिंताएं भी उभर सकती हैं.
जैसे यदि खेतों में पानी ज्यादा भर जाए तो फसलों की जड़े कमजोर हो जाती है और खेत में नमी की मात्रा बढ़ने से हवा का संचार भी बाधित होता है. इससे फसलों पर कई तरह के रोगों का संकट भी मंडराने लगता है.
आज हम आपको बताएंगे कि लगातार हो रही बरसात के बीच अपने खेतों को जलभराव की समस्या से कैसे निजात दिलाएं. देश के कई इलाकों में लगातार हो रही बरसात के कारण खेतों में पानी बढ़ता जा रहा है. इससे फसलों को नुकसान हो रहा है. खासकर जिन खेतों में पछेती फसलें लगाई गई हैं, उनमें पौधे अभी काफी छोटे हैं और पानी से यह पौधे गिर सकते हैं. बड़ी फसलों में भी पानी भरने के कारण जड़े गल सकती है और कीट का प्रकोप बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है.
सही प्रबंधन है जरूरी
यदि इस तरह हो रही बरसात में किसान अपने खेतों में प्रबंधन की व्यवस्था सही नहीं करेंगे तो उनकी खरीफ की फसलों को काफी नुकसान हो सकता है. सब्जियों और दलहनों की खेती में तो और भी ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
कृषि विशेषज्ञ देते हैं जल निकासी की व्यवस्था करने की सलाह
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसान ड्रेनेज सिस्टम पर ध्यान दें तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है. यदि खेतों से जल की निकासी की समुचित व्यवस्था हो जाए तो खेतों में पानी ज्यादा नहीं भरेगा और फसलें गलने और कीटों की समस्या से बची रहेंगी.
समतल भूमि में रहती है नुकसान की ज्यादा संभावना
ऊंची मेड या बेड बनाकर खेती करने में पानी भरने की समस्या पैदा नहीं होती लेकिन जिन फसलों की खेती समतल भूमि पर की जाती है उनमें पानी भरने से बहुत नुकसान हो सकता है. यह समस्या ज्यादातर नदी, तालाब या नालों के किनारे स्थित गांव में आती है. क्योंकि जब बरसात तेज होती है तो नदी नालों में उफान आ जाता है और ढलान में खड़ी फसलें पानी भरने के कारण बर्बादी की राह पर चली जाती है. यदि इलाके ऊंचे होते हैं तो इस तरह की कोई समस्या पैदा नहीं होती लेकिन निचले इलाकों में तो खरीफ की फसलें बहुत कमजोर हो जाती है. फलस्वरुप उत्पादन में कमी आ जाती है.
बढ़ता है कीटों और रोगों का खतरा
जैसा कि हमने बताया कि खेतों में पानी भरने से फसलों की जड़े कमजोर हो जाती है और और नमी के कारण हवा का संचरण भी नहीं हो पाता. इस वजह से सोयाबीन, कपास और मक्का जैसी फसलें फंगस और पीला मोजेक रोग से ग्रस्त हो जाती हैं. बारिश के कारण गोभी, लौकी और मिर्च की फसल भी खराब हो जाती है जिससे कि समय पर उत्पादन प्राप्त नहीं होता और इसका नतीजा बढ़ती महंगाई के रूप में सामने आता है.
इस तरह करें समाधान
यूं तो बरसात फसलों के लिए अमृत की तरह होती है लेकिन आवश्यकता से ज्यादा बरसात फसलों को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए ड्रेनेज सिस्टम पर काम करने की जरुरत है.
थोड़ी बहुत बरसात से तो फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता पर यदि 7 से 10 दिन तक लगातार बरसात की झड़ी लगी रहे तो फिर फसलों के खराब होने की संभावना बढ़ती है. इसीलिए मेड़बंदी को हटाकर बाहर की तरफ नालियां बनाना जरूरी है. साथ ही कीट और रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव करें.
इस प्रकार हम जैविक कीटनाशकों के छिड़काव, नालियां बनाकर और पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करके अत्यधिक बरसात की स्थिति में फसलों को होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.
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