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चना की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

भारत में दाल की खेती बहुत महत्तवपूर्ण मानी जाती है. इसमें चना भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल है. इसे दालों का राजा कहा जाता है. अगर पोषक मान की दृष्टि से देखा जाए, तो चने में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम, लोहा, राइबोफ्लेविन और नियासिन की अच्छी मात्रा पाई जाती है.

कंचन मौर्य
Gram Cultivation
Gram Cultivation

भारत में दाल की खेती बहुत महत्तवपूर्ण मानी जाती है. इसमें चना भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसल है. इसे दालों का राजा कहा जाता है. अगर पोषक मान की दृष्टि से देखा जाए, तो चने में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम, लोहा, राइबोफ्लेविन और नियासिन की अच्छी मात्रा पाई जाती है.

आमतौर पर चने को छोलिया या बंगाल ग्राम भी कहा जाता है. इसकी सब्जी भी बनाई जाती है, तो वहीं पौधे का बाकी बचा हिस्सा पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग होता है. पूरे विश्व में भारत में चना की पैदावार सबसे ज्यादा होती है. इसकी खेती में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राज्यस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब को मुख्य उत्पादक राज्य माना जाता है. चने को आकार, रंग और रूप के अनुसार 2 श्रेणी में बांटा गया है-

  1. देसी या भूरे चने

  2. काबुली या सफेद चने

जलवायु (Climate)

चने की खेती के लिए शुष्क एवं ठण्डे जलवायु की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह रबी मौसम की फसल है. इसकी खेती के लिए मध्यम वर्षा (60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा) की आवश्यकता होती है. यह सर्दी वाले क्षेत्रों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है. फसल में फूल आने के बाद वर्षा होना हानिकारक होता है, क्योंकि इस कारण फूल परागकण एक दूसरे से चिपक जाते हैं और  बीज नहीं बनते है. इसकी खेती के लिए 24-30 सेल्सियस तापमान उपयुक्त है. दाना बनते समय 30 सेल्सियस से कम या 30 सेल्सियस से अधिक तापक्रम हानिकारक रहता है.

मिट्टी (Soil)

इस फसल को कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है. वैसे खेती के लिए रेतली या चिकनी मिट्टी अनुकूल है. इसके विकास के लिए 5.5 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी अच्छी होती है.

उन्नत किस्में  (Improved Varieties)

चने की बुवाई के लिए कई उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं.

  • पूसा-256

  • केडब्लूआर-108

  • डीसीपी 92-3

  • केडीजी-1168

  • जीएनजी-1958

  • जेपी-14

  • पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए गुजरात चना-4

  • मैदानी क्षेत्रों के लिए के-850

  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए आधार (आरएसजी-936)

  • पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए पूसा-1003

  • पश्चिम उत्तर प्रदेश के लिए चमत्कार (वीजी-1053)

  • बुन्देलखण्ड के लिए संस्तुत जीएनजी-1985, उज्जवल और शुभ्रा आदि किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.

खेत की तैयारी (Farm Preparation)

इसकी खेती गर्मी में करते समय मध्यम व भारी मिट्टी के खेतों में एक-दो जुताई करें. इसके साथ ही मानसून के अंत में व बुवाई से पहले अधिक गहरी जुताई न करें. दीमक प्रभावित खेतों में क्लोरपायरीफास मिलाना चाहिए, ताकि कटुआ कीट पर नियंत्रण रहे.  

बुवाई का समय (Time Of Sowing)

असिंचित क्षेत्रों में सितंबर के आखिरी सप्ताह औऱ अक्टूबर के तीसरे में बुवाई करना चाहिए. इसके साथ ही सिंचित क्षेत्रों में दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक बुवाई करना चाहिए. ध्यान रहे कि चने की सही समय पर बुवाई करना जरूरी है, क्योंकि अगेती बुवाई से अनआवश्यक विकास का खतरा बढ़ता है. इसके साथ ही पिछेती बुवाई से पौधों में सूखा रोग का खतरा बढ़ता है.  

बुवाई की विधि  (Sowing Method)

चने की खेती में बीजों के बीच की दूरी 10 लगभग सें.मी. की दूरी होनी चाहिए, तो वहीं पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से 40 सें.मी. होनी चाहिए. ध्यान रहे कि बीज को 10 से 12.5 सें.मी. गहरा बीजना है.

बीज की मात्रा  (Seed Quantity)

  • अगर देसी किस्म के बीज हैं, तो प्रति एकड़ 15 से 18 किलो बीज डालें

  • काबुली किस्मों के 37 किलो बीज प्रति एकड़ डालें.

  • अगर बुवाई नवंबर के दूसरे पखवाड़े में कर रहे हैं, तो प्रति एकड़ 27 किलो बीज डालें.

  • अगर दिसंबर के पहले पखवाड़े में बुवाई कर रहे हैं, तो प्रति एकड़ 36 किलो बीज डालें.

बीज का उपचार (Seed Treatment)

  • मिट्टी में होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए ट्राइकोडर्मा 2.5 किलो प्रति एकड़ + गला हुआ गोबर 50 किलो मिलाएं. इसके बाद जूट की बोरियों से ढक दें, फिर इस घोल को नमी वाली ज़मीन पर बुवाई से पहले बिखेर दें.

  • दीमक वाली ज़मीन पर बुवाई के लिए बीजों को क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 10 मि.ली. से प्रति किलो से उपचार करें.

  • बीजों का मैसोराइज़ोबियम से टीकाकरण करें, ताकि चने की पैदावार बढ़े. इसके लिए बीजों को पानी में भिगोकर रख दें फिर उन पर मैसोराइज़ोबियम डालें. टीकाकरण से बीजों को छांव में सुखाएं.

खरपतवार नियंत्रण  (Weed Control)

  • इसके लिए पहली गुढ़ाई हाथों से या घास निकालने वाली चरखड़ी से बुवाई के 25 से 30 दिन बाद करें.

  • अगर जरूरत पड़े, तो दूसरी गुढ़ाई बुवाई के 60 दिनों के बाद करें.

सिंचाई  (Irrigation)

चने की फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है. इसमें जल उपलब्धता के आधार पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व व बोने के 45 दिन बाद करनी चाहिए. दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था व बोने के 75 दिन बाद करनी चाहिए.

हानिकारक कीट और रोकथाम  (Harmful Pests and Prevention)

दीमक- यह फसल को जड़ के नजदीक से खाती है. इससे प्रभावित पौधा मुरझाने लगता है.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीज को 10 मि.ली. डर्सबान 20 ई.सी. प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए.

कुतरा सुंडी- यह मिट्टी में 2 से 4 इंच गहराई में छिपी रहती है, जो पौधे के शुरूआती भाग, टहनियां और तने को काटती है.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं. इसके अलावा अच्छी रूड़ी की खाद का प्रयोग करें.

फली छेदक- यह चने की फसल का एक खतरनाक कीट है, जो पैदावार को कम कर देता है. यह पत्तों, फलों और हरी फलियों को खाता है. यह अपने प्रभाव से फलियों पर गोलाकार में छेद बना देता है और दानों को खाता है.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए फेन्डाल का प्रयोग करें. यह एक बहुआयामी कीटनाशक है, जो कीड़े पर लंबे समय तक नियंत्रण रखता है. इसमें तेज तीखी गंध आती है, जो वयस्क कीट को अंडा देने से रोकती है. यह अंडा नाशक शक्ति से युक्त है. इसका प्रयोग 400-800 मिली/एकड़ से करना चाहिए. फेन्डाल के बारे में अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक https://bit.ly/3gU5Wt0 पर क्लिक करें.  

बीमारियां और रोकथाम (Diseases and Prevention)

मुरझाना- इस बीमारी में तने, टहनियां और फलियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें. इसके साथ ही बुवाई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक से उपचारित करें.

सलेटी फफूंदी- इस बीमारी में पत्तों और टहनियों पर छोटे पानी जैसे धब्बे दिखाई देते हैं. इससे प्रभावित तना टूट जाता है और पौधा मर जाता है.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीजों का उपचार जरूर कर लें. इसके अलावा कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें.

कुंगी- यह बीमारी ज्यादातर पंजाब और उत्तर प्रदेश में चने की खेती करने वाले किसानों के परेशान करती है. इसमें पत्तों के निचले भाग पर छोटे, गोल और अंडाकार, हल्के या गहरे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं. इससे प्रभावित पत्ते झड़ जाते हैं.

प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें.

फसल की कटाई  (Crop Harvest)

जब पौधा सूख जाए और पत्ते लाल-भूरे दिखाई देकर झड़ना शुरू कर दें, तो वह समय पौधे की कटाई के लिए उपयुक्त होता है. चने के पौधे को द्राती की मदद से काटना चाहिए. इसके बाद फसल को 5 से 6 दिनों के लिए धूप में सुखाएं, फिर पौधों को छड़ियों से पीटें या फिर बैलों के पैरों के नीचे छंटाई के लिए बिछा दें.

पैदावार (Yield)

फसल की पैदावार उन्नत किस्नों की बुवाई और प्रबंधन पर निर्भर करती है. वैसे फसल से प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 25 क्विं. दाना एवं इतना ही भूसा प्राप्त हो जाता है. अगर काबूली चने की पैदावार की बात करें, तो देसी चने से तुलना में थोडा सा कम पैदावार मिलती है.  

भंडारण (Storage)

फसल भंडारण से पहले फसल के दानों को अच्छी तरह सुखाएं. इसके बाद दानों को दालों की मक्खी के नुकसान से बचाएं. इसके अलावा भंडरण के समय 10 से 12 प्रतिशत नमी रखना चाहिए.

English Summary: gram cultivation information will yield more Published on: 26 June 2021, 12:57 PM IST

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