Paddy Farming: देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में चावल का योगदान 40 प्रतिशत से अधिक है. भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-2023 के लिए भारत में कुल चावल उत्पादन 1308.37 लाख टन था. वही लगभग कुल 3.7 मिलियन मीट्रिक टन का निर्यात हुआ था. चावल की बासमती किस्म न केवल प्रमुख निर्यात उत्पाद है, बल्कि देश में व्यापक रूप से खपत भी की जाने वाली किस्म है. सामान्य रूप से चावल और विशेष रूप से बासमती चावल के निर्यात में कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं, जैसे कि विभिन्न पौध संरक्षण उत्पादों के अधिकतम अवशेष स्तर (एमआरएल) के अलग-अलग और कड़े मानदंडों का पालन.
बासमती धान की उन्नत किस्में
अतः इन बातों को ध्यान में रख कर आईएआरआई पूसा द्वारा विकसित पूसा बासमती 1121 जो एक फोटो-असंवेदनशील किस्म है को विकसित किया गया था. इनके अलावा दो अन्य किस्में भी हैं, जिसमें पूसा बासमती-1979 और पूसा बासमती-1985 आती है. यह देश की पहली गैर-जीएम हर्बिसाइड टॉलरेंट बासमती चावल की किस्में हैं.
इन किस्मों की सीधी बिजाई (DSR-Direct Seeding of Rice) करने से पानी की खपत 35% से 40% तक कम होती है और माना जाता है कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में भी व्यापक कमी आएगी. इसके अलावा, इन किस्मों से किसानों की आमदनी प्रति एकड़ 4000 रुपये तक बढ़ सकती है क्योंकि इन किस्मों में खरपतवारनाशी को अनुसंशित मात्रा में प्रयोग करने से खरपतवार नहीं पनपते हैं और फसल में यह रोधी होने के कारण फसलों को नुकसान भी नहीं होता है. इन किस्मों की उपज 15 दिन पहले मिल जाती है. इसके अलावा पूसा बासमती 1718 और 1509 को भी लगाया जा सकता है.
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एक अन्य किस्म पूसा बासमती 1692 है जो एक अर्ध-बौनी बासमती किस्म है जो लगभग 110-115 दिनों में तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 5.26 टन/हेक्टेयर आंकी गई है. परीक्षणों में मोदीपुरम, उत्तर प्रदेश में इसकी उपज क्षमता 7.35 टन/हेक्टेयर तक आंकी गई है, को भी लगा सकते हैं. इसके मिलिंग के वक्त यह कम टूटता है इससे न केवल उत्पाद मात्र बढ़ेगी बल्कि मिल मालिकों को कम टूटने के कारण अधिक फायदा होगा. इस किस्म को लगाने से 40 से 50 प्रतिशत पानी की भी बचत होने के साथ यह 115 दिनों में तैयार हो जाएगी. जल्दी तैयार होने के कारण किसान शेष समय में कृषि विविधिकरण तकनिकी को अपना कर उसी खेत में अन्य उपज, जैसे- मटर और आलू आदि पैदाकर ज्यादा लाभ कमा सकते हैं.
धान की खेती और बीज का शोधन
आईएआरआई पूसा के निर्देशक डॉ अशोक कुमार सिंह के अनुसार, इन किस्मों को सीड ड्रिल/लकी ड्रिल के माध्यम से सीधी बीजाई करने पर लगभग आठ किलो बीज पर्याप्त होगा. बीज का उपचार करना जरूरी होता है. इसके लिए प्रति 10 लीटर पानी में एक किलोग्राम नमक मिलाकर घोल बना लें और धान के बीज को इसमें अच्छी तरह से डुबो कर एक डंडे की सहायता से थोड़ी देर घूमना चाहिए. ऐसा करने से भारी बीज डूब जायंगे और हल्के और खराब बीज तैरते रहेंगे. इसे आप निकाल दें. इसके उपरांत इसे चार-पांच बार साफ पानी से धोएं. ऐसे करने से नमक का प्रभाव खत्म हो जाएगा. इसके उपरांत इन बीजों को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 20 ग्राम बाविस्टिन को 10 लीटर पानी में घोल कर नमक के घोल से छटा हुआ धान के बीज को डाल कर 24 घंटे के लिए छोड़ दें. इसके उपरांत इसे पानी से बाहर निकाल कर किसी सुखी, ठंडी एवं छाया वाली जगह में चादर बिछा कर फैलाकर रख दें. नमी सूख जाने के बाद यह बिजाई के लिए तैयार हो जाता है. इसे तुरंत खेत की तैयारी कर लगा देना चाहिए.
जैविक विधि से बीज शोधन
जैविक विधि से भी धान का उपचार किया जाता है. इस विधि में धान के बीजों को 10 मिलीलीटर एज़ोस्पिरिलियम या फॉस्फोबैक्टीरिया के घोल में 10 ग्राम गुड को 1 लीटर पानी में मिलाकर बीज की सतह पर समान रूप से लगा कर उपचारित करें . उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर उसी दिन प्रयोग करें. धान के बीज को स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस के 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से भी प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित किया जा सकता है इसे रात भर 1 लीटर पानी में भिगो कर रखना चाहिए. इसके बाद अतिरिक्त पानी को छान लेना चाहिए और बीजों को 24 घंटे तक अंकुरित होने के लिए छोड़ देना चाहिए और फिर बोना चाहिए.
बासमती चावल न केवल भारतीय खानपान का अहम हिस्सा है, वरन यह पूरे विश्व के खानसामों के पहली पसंद भी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2023-फरवरी 2024 के दौरान भारत से उच्च गुणवत्ता वाले बासमती चावल का निर्यात 22 प्रतिशत बढ़कर 5.2 बिलियन डॉलर हो गया था. अगर किसान भाई वैज्ञानिक विधि अपनाकर इसकी खेती करंगे तो न केवल किसानों की आय बढ़ेगी वरन देश के विदेशी मुद्रा में भी कई गुना वृद्धि होगी.
लेखक- डॉ. पी के पंत
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