नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम के साथ साथ सल्फर भी पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व माना जाता है. यह फसलों में विभिन्न कार्य करता है-
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गंधक या सल्फर फसलों में प्रोटीन के प्रतिशत को बढ़ाने में सहायक होती है साथ ही साथ सल्फर पर्णहरित लवक के निर्माण में योगदान देता है जिसके कारण पत्तिया हरी रहती है तथा पौधों के लिए भोजन का निर्माण हो पाता है.
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सल्फर नाइट्रोजन की क्षमता और उपलब्धता को बढ़ाता है।
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दलहनी फसलों में सल्फर के प्रयोग करने से पौधों की जड़ो में अधिक गाठे बनाने में सहायक है जिससे पौधों की जड़ो में उपस्थित राइज़ोबियम नामक जीवाणु वायुमंडल से अधिक से अधिक नाइट्रोजन लेकर फसलों को उपलब्ध करने में सहायक होते है.
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तम्बाकू, सब्जियों एवं चारे वाली फसलों की गुणवत्ता को बढ़ता है.
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सल्फर का महत्वपूर्ण उपयोग तिलहनों में प्रोटीन और तेल की मात्रा में वृद्धि करना है.
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सल्फर आलू में स्टार्च की मात्रा को बढ़ाता है.
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सल्फर को मिट्टी का सुधारक कहा जाता है क्योंकि यह मिट्टी के पीएच को कम करता है.
सल्फर की कमी वाली मृदाएं
वैसे तो किसी भी मृदा और कहीं पर भी सल्फर की कमी हो सकती है, पर कुछ मृदाओं में सल्फर की अधिक कमी की संभावनाएं हो सकती है-
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मिटटी में बालू की मात्रा अधिक हो
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कार्बनिक पदार्थो की कमी हो
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सघन कृषि की जाती हो
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सल्फररहित उर्वरको के प्रयोग की जानेवाली मृदाएं
कैसे जाने फसलों में सल्फर तत्व की कमी
नई पत्तियाँ हल्के हरे से पीले रंग की हो जाती है. समान्यतः पूरा पौधा हरे पीले रंग का दिखाई देता है जिससे नाइटोजन की कमी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं किन्तु सल्फर की कमी से नई पत्तियाँ अधिक पीले रंग की हो जाती है. सल्फर की कमी से तिलहनी फसलों तेल की मात्रा कम हो जाती है तथा दलहनी फसलों में सल्फर की कमी से पौधो की जड़ो में गांठे कम बनती है जिससे ये वायुमंडल से नाइट्रोजन उचित मात्रा में स्थरीकरण नहीं कर पाते, परिणाम स्वरूप नाइट्रोजन की कमी भी दलहनी फसलों में देखी जा सकती है.
कैसे रोके सल्फर तत्व की कमी
ऐसे उर्वरको को काम में ले जिनमें सल्फर की मात्रा मौजूद हो. अमोनियम सल्फेट, मैग्निशियम सल्फेट, सल्फेट नाइट्रेट, सिंगल सुपर फॉस्फेट, कैल्शियम सल्फेट (ज़िप्सम) आदि उर्वरकों को मिट्टी में मिलाने से सल्फर पौधो को मिल जाता है.
सल्फर का प्रयोग कब और कैसे करे
अंतिम जुताई के समय ही सल्फर युक्त उर्वरको को मिट्टी में मिला देना चाहिए किन्तु कमी के लक्षण दिखाई देने पर भी सिंचाई के साथ अमोनीयम सल्फेट, मैग्निशियम सल्फेट या पौटेशियम सल्फेट का उपयोग किया जा सकता है.वैसे तो मिट्टी परीक्षण कराने के बाद ही उर्वरक फसलों को देना चाहिए किन्तु कुछ फसलों में अनुशंसा की गई मात्रा एक साथ न देकर दो तीन भाग बाँट कर उचित समय पर देना चाहिए. जैसे मूंगफली में सल्फर को प्रयोग में लाते समय 75 प्रतिशत सल्फर का प्रयोग बुआई के समय करने तथा शेष 25 प्रतिशत का प्रयोग फूल आते समय देने का सुझाव है.
सल्फर का प्रयोग कितनी मात्रा में करें
अनाज वाली फसलें जैसे गेहूं, धान, मक्का में 25-40 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से, दलहनी फसलों जैसे- चना, मूंग, मसूर, उड़द में 10-40 किलो प्रति हेक्टेयर, तिलहनी फसलों जैसे मूँगफली, सरसों, सूरजमुखी में 20-40 किलो प्रति हेक्टेयर तथा आलू व चारे वाली फसलों में 25-50 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सल्फर की आवश्यकता होती है.
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