फ्रेंचबीन का दलहनी फसलों के कुल में प्रमुख स्थान है. मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती सर्दियों तथा पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी के मौसम में की जाती है. दक्षिण भारत में इसकी खेती वर्षभर की जाती है. फ्रेंचबीन की हरी फलियों का उपयोग सब्जी के रूप में तथा सूखे दाने (राजमा) का प्रयोग दाल के रूप में किया जाता है. अन्य सब्जी फसलों की तुलना में यह कम अवधि में अधिक उपज देने वाली फसल है. फ्रेंचबीन (फलियां व दाने) प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, केरोटीन व फोलिक अम्ल का अच्छा स्त्रोत होता है.
भारत में फ्रेंचबीन की खेती मुख्यतः हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्यों में की जाती है. आज हम आपको इसकी उन्नत किस्मों के साथ में पैदावार और खेती के तरीकों की जानकारी देंगे-
किस्में:
क्र.सं. |
किस्में |
अवधि |
उपज क्विंटल /हेक्टेयर |
अन्य विवरण |
A. |
झाड़ीदार किस्में (पोल टाइप): |
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1 |
कन्टेंडर |
50-55 |
190 |
यह किस्म मोजेक एवं चूर्णिल आसिता के प्रति सहिष्णु है |
2 |
पूसा पार्वती |
50-60 |
80-85 |
यह किस्म मोजेक एवं चूर्णिल आसिता के प्रति अवरोधी किस्म है. |
3 |
अर्का सुविधा |
70 |
190 |
यह किस्म ब्लू क्रॉप व कन्टेंडर संकरण उपरांत वंशावली चयन विधि से विकसित की गई है. |
4 |
अर्का कोमल |
70-80 |
90 |
इस किस्म की फलियां दूरस्थ स्थानों को भेजने व लम्बे समय तक रखने के लिए उपयुक्त होती हैं. |
5 |
स्वर्णप्रिया |
50-55 |
120-140 |
इस किस्म के पौधे झाड़ीनुमा, फलियां गोल, गूदेदार तथा हरे रंग की होती है. |
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पंत अनुपमा |
|
90 |
इस किस्म के पौधे छोटे झाड़ीनुमा, सीढ़ी बढ़वार वाले तथा फलियां चिकनी, मुलायम, गोल हरे रंग की रेशारहित होती हैं. यह कोणीय पर्ण धब्बा के प्रति रोगरोधी तथा सामान्य बीन मोजेक वायरस के प्रति सहनशील किस्म है. |
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काशी परम |
60-65 |
150 |
इस किस्म की फलियां 10-12 से.मी. लम्बी, गोल व गूदेदार तथा हरे रंग की होती है. |
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काशी राजहंस |
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210 |
यह बौनी किस्म है जिसका उपयोग केवल सब्जी के लिए किया जाता है. इस किस्म के पौधों में 30-32 तापक्रम पर भी फलत होती है. |
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काशी सम्पन्न |
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234 |
यह बौनी किस्म है जिसका उपयोग केवल सब्जी के लिए किया जाता है. यह येलो मोजेक वायरस के प्रति अवरोधी किस्म है. |
B. |
बेलदार किस्में (पोल टाइप): |
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1 |
पूसा हेमलता |
60 |
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इस किस्म के पौधे चढ़ने वाले मध्यम उंचाई (2.5 मीटर) तथा फलियां मध्यम लम्बी (14 से.मी.), गोल गूदेदार, रेशारहित तथा हल्के हरे रंग की होती है. |
2 |
स्वर्णलता |
50-60 |
100-125 |
यह शुद्ध पंक्ति चयन द्वारा विकसित किस्म है जिसके पौधे चढ़ने वाले, फलियां गोल, गूदेदार, रेशरहित अच्छी गुणवत्ता वाली होती है. |
जलवायु: फ्रेंचबीन मुख्यतः गर्म जलवायु की फसल है. इसकी अच्छी बढ़वार तथा उपज के लिए 18-24 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है. फ्रेंचबीन की फसल अधिक गर्मी और सर्दी (पाला) के प्रति संवेदशील होती है. तापमान 16 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तथा 24 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक, फसल की वृद्धि एवं उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है.
भूमि का चुनाव व तैयारी: फ्रेंचबीन की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त बलुई-दोमट मिट्टी से लेकर बलुई मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6-7 के मध्य हो, उचित रहती है. इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि उपयुक्त नहीं होती है. यदि खेत में नमी कम हो तो बुवाई से पूर्व पलेवा कर लेना चाहिए. बुवाई से पूर्व खेत की अच्छी तरह जुताई व पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए. बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.
बीज दर
झाड़ीदार किस्म: 80-90 किग्रा बीज/हेक्टेयर
बेलदार किस्म: 25-30 किग्रा बीज/हेक्टेयर
बीज बुवाई: उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में फ्रेंचबीन की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवंबर तथा तराई क्षेत्रों में फरवरी-मार्च होता है. पहाड़ी क्षेत्रों में फ्रेंचबीन की खेती ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में की जाती है. बीज की बुवाई समतल खेत में या उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में की जाती है. उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में बुवाई करने से पौधों की वृद्धि भली भांति होती है तथा उपज भी अच्छी होती है. झाड़ीनुमा (बुश टाइप) किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45-60 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. तथा लता वाली (पोल टाइप) किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 75-100 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 25-30 से.मी. रखते हैं.
खाद एवं उर्वरक: अन्य दलहनी सब्जियों की अपेक्षा फ्रेंचबीन की जड़ों में वायुमंडल से नत्रजन एकत्रित करने वाली ग्रंथियों का निर्माण बहुत काम होता है अतः इसे खाद एवं उर्वरकों की आवश्यकता अधिक होती है. खेत की तैयारी के समय 20-25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. इसके अलावा 80-120 किग्रा नत्रजन 50 किग्रा फॉस्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर बुवाई के लगभग 20-25 दिन व 35-40 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए.
सिंचाई: फ्रेंचबीन मृदा नमी के प्रति संवेदनशील होती है अतः खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. अपर्याप्त नमी होने पर पौधे मुरझा जाते हैं जिसके कारण उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है. इसके बाद 1 सप्ताह से 10 दिन के अंतराल पर फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें. फूल निकलते समय सिंचाई करने से फलियों की बढ़वार शीघ्र होती है तथा फलियां कोमल व उत्तम गुणवत्तायुक्त प्राप्त होती है.
खपतवार नियंत्रण: फसल की प्रारंभिक अवस्था में खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए एक से दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है. पहली निराई-गुड़ाई 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-50 दिनों बाद करें. निराई-गुड़ाई अधिक गहराई तक नहीं करनी चाहिए.
पौधों को सहारा देना: लता वाली किस्मों को सहारा देना आवश्यक है. सहारा न देने की अवस्था में ये पौधे भूमि पर ही फैल जाते हैं जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सहारा देने के लिए पौधों की कतारों के समानांतर 2-3 मीटर लम्बे बांस/लकड़ी/लोहे के खम्बों को 5-7 मीटर की दूरी पर गाड़ देते हैं. इन पर रस्सी या लोहे की तार खींचकर ट्रेलिस बनाकर लताओं को चढ़ा देते हैं. पौधों की बढ़वार के अनुसार रस्सी या तार की कतारों की संख्या 30-45 से.मी. के अंतराल पर बढ़ाते जाते हैं.
तुड़ाई एवं उपज: तुड़ाई फूल आने के 2-3 सप्ताह बाद आरंभ हो जाती है. हरी फलियां जब मुलायम व पूर्ण भरी हुई अवस्था में हों तथा जब उनका रंग गहरे हरे से हल्के हरे रंग जाये तब तुड़ाई करें. देर से तुड़ाई करने पर फलियों में सख्त रेशे बन जाते हैं. जिससे इनका बाजार मूल्य घट जाता है. झाड़ीदार किस्मों में 3-4 तुड़ाई एवं बेलदार किस्मों में लम्बे समय तक उपज ली जा सकती है.
झाड़ीदार किस्म: 60-80 क्विंटल हरी फलियां प्रति हेक्टेयर
बेलदार किस्म: 80-100 क्विंटल हरी फलियां प्रति हेक्टेयर
प्रमुख रोग एवं कीट प्रबंधन
बीन गोल्डन मोजेक विषाणु: इस विषाणु जनित रोग से ऊपरी पत्तियों पर पीले एवं हरे धब्बे बनते हैं. सर्वांगी संक्रमण होने पर पहले पत्तियों पर अनियमित धब्बे बनते है तत्पश्चात शिरा हरिमहीनता एवं अंततः पूरी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. संक्रमित पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है एवं पत्तियां भी कम बनती है. यह विषाणु सफेद मक्खी द्वारा पोषित होता है.
प्रबंधन: इस रोग की रोकथाम के लिए सफेद मक्खी के प्रकोप को कीटनाशी छिड़काव द्वारा नियंत्रित करना चाहिए. रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
रतुआ (रस्ट): इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर पीले रंग के गोल या लम्बे स्फोट दिखाई देते हैं. यह रोग पत्तियों की दोनों सतहों पर पाया जाता है. रोग का प्रकोप अधिक होने पर पौधों में हल्के भूरे चूर्णिल का आभास देता है. बाद में गहरे भूरे या काले स्फोट पत्तियों, तनों तथा पर्णवृन्तों पर दिखाई देते हैं.
प्रबंधन: संक्रमित पौधे के मलवे को खेत से निकालकर नष्ट कर दें. 2-3 साल का फसल चक्र अपनाएं जिसमें ब्रोडविन्स, वीसिया तथा लेथाइरस फसलों को सम्मिलित न करें. फसल में मैंकोजेब, ट्राइएडिमेफान, टाइडेमार्क का उचित मात्रा में छिड़काव करें.
पत्ती का धब्बा रोग: इस रोग के लक्षण छोटे धब्बों के रूप में बनते हैं एवं धब्बों को घेरे हुए हल्की वृत्ताकार की आकृति होती है. पत्तियां भूरे रंग की होकर सूख जाती है.
प्रबंधन: इस रोग के नियंत्रण के लिए डाईफेनोकोनाजोल 1 मिलीलीटर/लीटर पानी या थायोफेनेट मिथाइल 1 ग्राम/लीटर पानी के दो छिड़काव दस दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.
तना छेदक कीट (स्टेम बोरर): यह फ्रेंचबीन की फसल को नुक्सान पहुंचाने वाला महत्वपूर्ण कीट है. इस कीट का शिशु क्षतिकारक होता है जो तने में छेद कर सुरंग बनाकर नुक्सान पहुंचाता है जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूख जाता है. इस कीट का प्रकोप प्रारंभिक अवस्था में अधिक होता है.
प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए बुवाई के समय इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस @ 5-9 मिली/किग्रा बीज या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस 3-5 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें. क्षतिग्रस्त तनों एवं शाखाओं को खेत से हटा दें.
बीन का भृंग (बीन बीटल): इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही फ्रेंचबीन के लगभग सभी भागों को नुकसान पहुंचाते हैं.
प्रबंधन: इस कीट की रोकथाम के लिए नीम बीज अर्क (4 प्रतिशत) या एमएमेक्टिम बेंजोएट 5 एस. जी. 1 ग्राम/2 लीटर का प्रयोग करें.
फ्रेंचबीन थ्रिप्स: यह कीट पत्तों से रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं. रोगी पत्ते पीले पड़ जाते हैं एवं फलियों का रंग चांदी जैसा सफेद हो जाता है.
प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 35 ई. सी. 2 मिलीलीटर/लीटर का छिड़काव करें.
चेंपा (एफिड): इस कीट के काले रंग के शिशु एवं वयस्क पौधे की पत्तियों एवं अन्य कोमल भागों से रस चूसकर पौधों को हानि पहुंचते हैं.
प्रबंधन: लेडी बर्ड भृंग का संरक्षण करें. इस कीट की रोकथाम के लिए नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या इमिडाक्लोप्रिड 17 एस एल 1 मिलीलीटर/4 लीटर का छिड़काव करें.
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