धान भारत सहित कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसलों में से एक है. पुरी दुनिया में मक्के के बाद धान की खेती को सबसे अधिक क्षेत्रफल में किया जाता है. आपको बता दें कि भारत देश में खरीफ के सीजन में धान की खेती की जाती है. किसानों के लिए धान की खेती (Paddy farming) मुनाफे की खेती मानी जाती है. क्योंकि बाजार में भी इसकी सबसे अधिक मांग होती है.
आपको बता दें धानी की खेती (Paddy farming) कई विधियों के द्वारा की जा सकती है. पानी के बढ़ते खपत को रोकने के लिए कई नये विधियों को भी शामिल किया गया है. आज हम अपने इस लेख में धान की कुछ बेहतरीन विधियों के बारे में बता करेंगे. जिसे अपनाकर आप धान की उन्नत खेती के साथ अधिक उपज प्राप्त कर सकते है. तो आइए जानते है...
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संडा विधि (sand method) : धान रोपाई के इस विधि से किसानों को सबसे अधिक फायदा होता है. संडा विधि से धान की पैदावार में बढ़ोतरी होती है और साथ ही इस तरीके से किसान धान में लगने वाले रोग और पौधे के गलने वाली समस्या से बचा सकते है. क्योंकि इस विधि से रोगों का प्रभाव फसल पर बहुत कम पड़ता है. अगर आप एक बीघा खेत में सड़ा विधि से धान की खेती करते है, तो आपको लगभग 2 से 3 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ेगी और वहीं अगर आप अन्य दूसरी विधि से धान की खेती करते है, तो आपको लगभग 15 से 20 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ेगी.
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श्री विधि( Vidhi): इस विधि को कई जगहा सघन प्रणाली, एस. आर. आई और मेडागास्कर विधि भी कहा जाता है. जैसे कि आप जानते है, धान की फसल में पानी की मात्रा बहुत अधिक लगती है. जिससे किसानों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन अगर आप श्री विधि से धान की खेती करते है, तो पानी की कम मात्रा में भी आप धान की बहुत अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है.
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सीधी विधि(direct method) : धान की फसल में किसान सीधी विधि का इस्तेमाल करके कम लागत में अच्छी फसल और मुनाफा दोनों प्राप्त कर सकते है. इस विधि से खेत की जुताई और रोपाई लागत में भी कमी आती है. अगर आप अपने खेत में मोटे दानों वाले धान की खेती करना चाहते हैं, तो आपको सीधी विधि का उपयोग करना चाहिए. क्योंकि इस विधि से आप 1 एकड़ जमीन के लिए 12 से 14 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ेगी.
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पारंपरिक विधि(Traditional Method) : इस विधि से धान की खेती करने से देश के किसान भाइयों को लागत और मेहनत दोनों ही ज्यादा लगता है और साथ ही पारंपरिक विधि में पानी की मात्रा भी थोड़ी अधिक लगती है. लेकिन इस विधि से किसानों को धान की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है. इस विधि में फसलों की सुरक्षा पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है.
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