तरबूज जायद मौसम की मुख्य फसल मानी जाती है, जिसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में होती है. इसकी खेती में कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता पड़ती है. तरबूज के कच्चे फलों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता हैं, तो वहीं पकने पर इसको मीठे और स्वादिष्ट फल के रूप में खाया जाता है. गर्मी के दिनों में सभी लोग तरबूज का सेवन करते हैं, इसलिए बाजार में इसकी मांग बढ़ जाती है. अगर तरबूज की खेती उन्नत किस्मों और तकनीक से की जाए, तो इसकी फसल से अच्छी उपज मिल सकती है, तो आइए आपको इस लेख में तरबूज की खेती की जानकारी देते हैं.
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी (Suitable climate and soil)
इसकी खेती के लिए गर्म और औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र सर्वोत्तम होते हैं. इसके बीज के जमाव और पौधों के बढ़वार के समय लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा रहता है, तो वहीं रेतीली और रेतीली दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है. ध्यान दें कि इसकी खेती गंगा, यमुना और नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है.
खेत की तैयारी (Farm preparation)
खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. इसके बाद जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से कर सकते हैं. ध्यान दें कि खेत में पानी की मात्रा कम या ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इसके बाद नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बना लें. अब भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें. अगर रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए.
तरबूज की उन्नत किस्में (Improved varieties of watermelon)
इसकी फसल से अच्छी उपज लेने के लिए किसानों को तरबूज की स्थानीय किस्मों का चयन करना चाहिए. नीचे कुछ उन्नत किस्मों के नाम बताए गए हैं.
-
सुगर बेबी
-
दुर्गापुर केसर
-
अर्को मानिक
-
दुर्गापुर मीठा
-
काशी पीताम्बर
-
पूसा वेदना
-
न्यू हेम्पशायर मिडगट
बुवाई का समय (Time of sowing)
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में तरबूज की बुवाई फरवरी में की जाती है, तो वहीं नदियों के किनारों पर खेती करते वक्त बुवाई नवम्बर से मार्च तक करनी चाहिए. इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल में बुवाई की जाती है.
बुवाई की विधि (Sowing method)
-
इसकी बुवाई में किस्म और भूमि उर्वरा शक्ति के आधार पर दूरी तय करते हैं.
-
तरबूज की बुवाई मेड़ों पर लगभग 2.5 से 3.0 मीटर की दूरी पर 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली बनाकर करते हैं.
-
इसके बाद नालियों के दोनों किनारों पर लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 से 3 बीज बोये जाते हैं.
-
नदियों के किनारे गड्डे बनाकर उसमें मिट्टी, गोबर की खाद और बालू का मिश्रण थालें में भर दें. अब थालें में दो बीज लगाएं.
-
ध्यान दें कि अंकुरण के लगभग 10-15 दिन बाद एक जगह पर 1 से 2 स्वस्थ पौधों को छोड़ दें और बाकि को निकाल दें.
सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management)
तरबूजे की खेती में सिंचाई बुवाई के लगभग 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए. मगर ध्यान दें कि खेती नदियों के कछारों में कर रहे हैं, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि पौधों की जड़ें बालू के नीचे से पानी को शोषित कर हैं.
फलों की तुड़ाई (fruit picking)
तरबूजे के फलों को बुवाई से लगभग तीन महीने के बाद तोड़ सकते हैं. आपको पता होना चाहिए कि किस्म पर फलों का आकार और रंग निर्भर करता है. आप फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी फल पका या कच्चा है. अगर फलों को दूर भेजना है, तो पहले ही फलों को तोड़ लेना चाहिए. ध्यान दें कि फलों को डंठल से अलग करने के लिये तेज चाकू का उपयोग करें. इसके अलावा फलों को तोड़कर ठण्डे स्थान पर एकत्र करना चाहिए.
पैदावार (Yield)
तरबूज की पैदावार उन्नत किस्मों, खाद, उर्वरक, फसल की देखभाल पर निर्भर करती है, वैसे तरबूजे की औसतन पैदावार लगभग 800 से 1000 क्विंटल प्रति हेक्टर हो सकती है. इस तरह किसान तरबूज की खेती से अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.
Share your comments