प्राचीन काल से कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी रही है और भारतीय कृषको को सदैव अन्नदाता की श्रेणी में रखा गया है। परन्तु देश में किसानो की स्थिति दिन प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है इसके निदान के लिए यदि देखा जाय तो समयसमय पर भारत सरकार द्वारा किसानो को स्वालम्बी और सशक्त बनाने के लिए कई प्रोग्राम चलाये गये है भारतीय कृषि मुख्यतः उत्पादन उन्मुख है परन्तु उत्पादन के साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि फसल को बाजार में उचित दाम पे बेचा जा सके आज हमारे देश में कृषक कृषि उत्पादन से ज्यादा उसके विपणन के लिये बाजार मे कठिनाइयों का सामना करते है देश की कुल फसल क्षेत्र का 86 % हिस्सा छोटे और सीमांत किसानो का है और कुल उत्पादन में इन किसानो का हिस्सा 44% है इस स्थिति को देखते हुए भारतीय कृषि में बदलाव की आवश्यकता है जिसमें बडे स्तर पर संरचनात्मक सुधार और परिवर्तन जैसी पहल की जाये वर्तमान में छोटे और सीमांत किसानो को किसान संगठन से जुडकर काम करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है इस क्षेत्र में किसान उत्पादक संगठन एफ.पी ओ. जैसी भारत सरकार की परियोजना को बडे स्तर पर लाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। आने वाले समय में एफ.पी ओ. के बढतें दूरगामी प्रभाव को भारतीय कृषक व्यवस्था के सुधार में मील का पत्थर साबित किया जा रहा है यहाँ तक की कोरोना संकट के दौर में किसान उत्पादन संगठनो की सफलता को सरकार ने भी सराहा है।
एफ.पी ओ. क्या है?
एफ.पी ओ. यानि किसान उत्पादक संगठन किसानो का एक समूह होता है जो कंपनी एक्ट,२०१३ के जरिये अपने आप को रजिस्टर्ड कराता है।मुख्यतः एफ.पी ओ.लघु एंव सीमान्त किसानो का एक समूह है इससे जुडे किसानो को न सिर्फ अपनी उपज के लिये बाजार मिलता है बल्कि खेत में लगने वाले खाद, बीज, दवाइयों और कृषि यंत्रो की खरीद भी सस्ती मिलती है।बाजार की सस्ती सेवाये सीधे मिलने से किसानो को बिचैलियों के मकड़जाल से भी मुक्ति मिलती है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य किसानो की हर संभव मदद करना है।छोटे किसानो को सरकारी सहायता आदि इस तरह से नही मिल पाती है जैसे कि बडे किसान उठा लेते है। भारतीय कृषि विपणन में दलालो की एक लम्बी चेन होती है जो बिल्कुल भी पारदर्शी तरीके से काम नही करती है जिसकी वजह से किसानो को उनके उत्पादों का बहुत कम दाम मिल पाता है। इसके साथ ही उपभोक्ता जितना पैसा उस उत्पाद के लिये देता है उसका बहुत कम हिस्सा किसानो तक पहुॅच पाता है। संगठन की ताकत से किसान अपने उपज को ज्यादा मूल्य पर बंेच पाने में सफलता प्राप्त करते है। केंद्र सरकार द्वारा किसान और कृषि को आगे बढाने के लिये अगले पांच साल के लिये 5000 करोड़ रूपये के आर्थिक बजट की घोषणा की गई है जिसमें किसानो का एफ.पी ओ. बनाना और उन्हे आर्थिक सहायता प्रदान कर समृ़द्ध बनाना होगा । सरकार ने 2019-20 से लेकर 2023-24 तक 10,000 बनाने की घोषणा की है। इसका रजिस्ट्रेशन ;पंजीकरणद्ध कंपनी एक्ट के तहत होगा इसलिये इसमें वो सारे फायदे मिलेंगे जो एक कंपनी को मिलते है।
देश में एफ.पी ओ. की संख्या
केंद्र सरकार के कृषि एंव किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा एफ.पी ओ.(SFAC) को नोडल एजेंसी के रूप में देशभर में की विभिन्न परियोजनाओं का बढ़ावा देने के लिये 2011 से चुना गया है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और अन्य एजेंसियां इसके अंतर्गत कई कार्यक्रम चला रही है। एफण्पीण्ओण् के गठन और इसकी संख्या को बढाने के लिये अभी एफ.पी ओ.।ब्द्ध एंव नाबार्ड ; मिल कर काम कर रही थी लेकिन सरकार इसे और बढाना चाहती है जिसके लिये राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम ;NCDC को भी जिम्मेदारी सौंपी गयी है। देश में अभी तक करीब 5000 एफपीओ रजिस्टर्ड हो चुके है। ये एफ.पी ओ. सरकार की विभिन्न पहलो के तहत गठित हुए है जिसमें भारत सरकार की SFAC, राज्य सरकारे और पहले 8-10 वर्षो में नाबार्ड के साथ अन्य संगठन भी शामिल है। मैनेज रिपोर्ट, 2019 के अनुसार एफ.पी ओ.अभी अपनी शुरूआती चरण में है जिसमें से 30% एफ.पी ओ. सक्रिय रूप से काम कर रहे है, लगभग 20ः संघर्षशील है और 50ः अभी संगठन बनाने की प्रक्रिया में है। एफ.पी ओ. को प्रमोट करने वाली एजेंसी निम्नवत है.
एफ.पी ओ. संचालन का त्रिस्तरीय मॉडल
एफ.पी ओ. संचालन की जिम्मेदारी एफ.पी ओ. को दी गयी है जिसमें 10,000 एफ.पी ओ. के गठन के लिये एक विश्वस्तरीय मॉडल प्रस्तावित किया गया है। एफ.पी ओ. के अंतर्गत एफ.पी ओ. परियोजना का निष्पादन और निरीक्षण एक राष्ट्रीय परियोजना प्रबंधन एजेंसी; NPMA के द्वारा किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त फील्ड स्तर पर निष्पादन के लिये क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठन; CBBO की क्षमता के आधार पर चयन किया जायेगा। प्रत्येक राज्य से एक या एक से अधिक CBBO चुने जायेगे । एफ.पी ओ. जरूरी तकनीकी और व्यासासिक क्षमता के विकास के लिये CBBO को सहायता प्रदान करेगी और इन सभी की निगरानी और संचालन एफ.पी ओ. के अंतर्गत किया जायेगा।
एफ.पी ओ. के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण नियम
1.अगर संगठन मैदानी क्षेत्र में काम कर रहा है तो कम से कम 300 किसान उसमें जुड़े होने चाहिये। पहले यह संख्या 1000 थी।
2.पहाड़ी क्षेत्र में एक कम्पनी के साथ 100 किसानो का जुड़ना जरूरी है। प्रत्येक कम्पनी में 10 बोर्ड ऑफडायरेक्टर्स होंगे।
3.यह क्लस्टर बेस्ड बिजनेस आर्गेनाइजेेंशस; CBBO के तहत बनाया जाना चाहिये। राज्य और जिला स्तर पर इसे लागू करने के लिये एजेंसी होनी चाहिए।
4.इसे एक जिला एक उत्पाद के तहत बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसी के साथ विपणन, ब्राॅडिंग, प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट पर भी जोर देना चाहिये।
5.FPO उत्पाद सम्बन्धित पर्याप्त प्रशिक्षण और हैंड होल्डिंग CBBO के स्तर से प्रदान किया जाना चाहिये।
6.FPO के निर्माण में उन जिलों को प्राथमिकता दी जाती है जो एस्पीरेशनल होते है और कम से कम एक ब्लाक में एक FPO होना चाहिये।
7.नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज कम्पनी; नाबार्ड के अंतर्गत FPO का काम देख कर रेटिंग करेगी और इसके आधार पर ही गा्रंट मिलेगा।
एफ.पी ओ. का आवेदन और क्रियान्वयन
एक एफ.पी ओ. को सुव्यवस्थित चलाने के लिये उस संगठन में किसान होते है। किसानो का यह संगठन एग्रीकलचर कंपनी के रूप में कार्य करता है और संगठन की सभी जिम्मेदारियों को आपस में बाॅट लिया जाता है। इसमें यदि 10 लोगो को बोर्ड मेम्बर बनाया गया है तो एक बोर्ड मेंबर के अंदर 30 किसानो का होना आवश्यक है। यदि किसी गाॅव के किसान बिना किसी बाहरी एजेंसी के, स्वंय तालमेल के साथ FPO बनाना चाहते है तो इसकी भी प्रक्रिया आसान है। किसानो को अपने संगठन का एक नाम रखकर उसे कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर करवाना होता है। इसके साथ ही समस्त सदस्य भारत के नागरिक और किसान वर्ग के होने चाहिये। इसका अलग से आवेदन करते समय आधार कार्ड, स्थायी प्रमाण पत्र, जमीनी दस्तावेज, बैंक खाता, पासपोर्ट साइज फोटो और रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर होना चाहिये। संगठन को आवेदन के लिये आधिकारिक एफ.पी ओ.की वेबसाइट पर सारे दस्तावेज जमा करने होंगे। जोकि सर्कार के पास पहुँच जायेंगे।
सरकार द्वारा मिलने वाली सहायता और निरीक्षण
जो किसान उत्पादक संगठन अपने किसानो के हितो मे 3 साल तक लगातार काम करता है उसे सरकार से 15 लाख रुपये पी.एफ. किसान एफपीओ योजना के तहत मिलते है। ये यहायता किसानों को उनकी खेती के खर्चो के निपटारे के लिये दी जाती है। जिसमे खेत की तैयारी, बीजो की खरीद, सिचांई व्यवस्था और कृषि उपकरणो से लेकर खाद, उर्वरक, कीटनाशक तक के सभी खर्चे शामिल है। आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाने के लिये नाबार्ड किसान उत्पादक संगठनो की निगरानी करता है। जिसमें यह देखा जाता है कि किसान उत्पादक संगठन के जरिये कितने किसानो को क्या फायदा पहुंच रहा है। बाजार में किसानो की पहुॅच को किस प्रकार आसान बनाया जा रहा है, कागजी कार्यो को किस प्रकार निपटाया जाता है, किसानो को सस्ती दरो पर सामान उपलब्ध हो रहा है या नही । इन सभी बातों पर अमल करके किसान उत्पादक संगठनो को रेटिंग प्रदान की जाती है। जिसके बाद किसान उत्पादक संगठनो के पास सरकार द्वारा जारी आर्थिक अनुदान पहुॅचना शुरू होता है।
एफ.पी ओ.के मुख्य लाभ
1.संगठन मे किसानो को सौदेबाजी की शक्ति मिलती है।
2.समूह में बहुलता से व्यापार करने पर भण्डारण, परिवहन और प्रोसेसिंग के खर्चो में बचत होती है।
3.एफण्पीण्ओण् के गठन से ग्रीन हाउस, कृषि मशीनीकरण, शीत भण्डारण इत्यादि की सुविधा मिलती है।
4.समूह के किसान कस्टम केन्द्र आदि शूरू कर अपने व्यापार का विस्तार कर सकता है।
5.इसके सदस्य किसान आदानो ओैर सेवाओ का उपयोग रियायती दरो पर ले सकते है।
6.भारत मे मौजूद लघु उद्योगों का जो लाभ मिलते है वे सब लाभ इन संगठनो को भी मिलते है। परन्तु इनको एक अतिरिक्त लाभ यह है कि इन पर कोओपरेटिव एक्ट के नियम लागू नही होते है।
एफ.पी ओ.गठन में प्रमुख चुनौतियाॅ
नाबार्ड द्वारा किये गये अध्ययनों से यह पाया गया हेै कि एफ.पी.ओ. किसानो की आय को बढ़ाने मे सकारात्मक भूमिका को निभातें है। परन्तु इसके निर्माण में मुख्य चुनौतियां नियमानुसार है
1.व्यावसायिक अनुभव की कमी: प्रशिक्षित और व्यवसायिक रूप से योग्य सीईओ और दूसरे बोर्ड मेंबर वर्तमान के ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध होना मुश्किल होता है जबकि सीबीबीओ की देखरेख में यह कुशलतापूर्वक होना चाहिये।
2.पिछडी आर्थिक स्थिति: किसी भी संस्था की शुरूआत के लिये मजबूत आर्थिक स्थिति की आवश्यकता होती है। जबकि एफपीओ ज्यादातर छोटे किसानो द्वारा चलाया जाता है जिनके पास संसाधनो की कमी होती है।
3.सुचारू ऋ़ण व्यवस्था स्थिति: एफ.पी ओ.द्वारा प्रदान किये जाने वाली किफायती ऋण क्रेडिट गांरटी कवर केवल एफपीओ निर्माता को मिलता है जिसमें 500 न्यूनतम शेयर धारक होने चाहिये । इस नियम के तहत स्वंय पंजीकृत और छोटे एफ.पी ओ. को क्रेडिट गांरटी योजना के लाभो की सुविधा नहीं मिल पाती है।
4.इंश्योरेंस की कमी: इस समय एफ.पी ओ.के व्यावासायिक जोखिमो केा कवर करने के लिये कोई भी प्रावधान नही है।
5.विपणन में सफलता की कमी: उचित मूल्यो पर उत्पादो की मार्केटिंग किसी भी एफण्पीण्ओण् के लिये सबसे महत्वपूर्ण है। इनपुट कीमतों को बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट उत्पादको द्वारा निश्चित किया जाता है। इनपुट और आउटपुट कीमतों में बाजार प्रक्रियाओ के जटिल तालमेल के कारण किसानों को घाटा होता है।
6.बुनियादी ढांचे का अभाव: एफ.पी ओ. की परिवहन सुविधाओ, भंडारण, मूल्यांकन ओैर प्रसंस्करण, बा्रंड निर्माण और विपणन जैसे समेकन के लिये बुनियादी ढांचे की कमी होती है। इसके साथ ही कॉर्पोरेट फार्मिग में उत्पादको को आमतौर पर नियमों से बाहर रखा जाता है।
7.जागरूकता की कमीः सगंठन के संभावित लाभो के विषय में किसानो के बीच जागरूकता की कमी होती है। इसके अलावा उनमें गठन संम्बन्धित तकनीकी ज्ञान व नियमो की जानकारी का भी आभाव होता है।
आज के समय में एफ.पी ओ. को किसानो की आय बढाने ओैर कृषि विकास को बढ़ावा देने के लिये भविष्य का तरीका माना जा रहा है। क्योकि भारत में छोटे और सीमांत किसानो की संख्या 86 फीसदी है जिनके पास औसतन 1.1 हेक्टेयर से भी कम जोत है। आमतौर पर इन किसानो केा प्रौद्योगिकी, उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और समुचित वित्त की समस्याएं झेलनी पडती है. आजकल एफ.पी ओ. को उपरोक्त लिखित इन सभी समस्याओ का समाधान माना जा रहा है। परन्तु एफपीओ के बेहतर संवर्धन के लिये भविष्य की रणनीतियों मे प्रभावी हस्ताक्षेप की जरूरत है जिसमें कि जन जागरूकता निर्माण, संस्था विकास और डिजिटल निगरानी मुख्य है. भारत सरकार के नीतिगत ढांचे के अनुरूप राज्य सरकारे भी एफपीओ संवर्धन और उन्हे मजबूत करने के लिये उपयुक्त लचीली नीति बना सकती है ताकि किसानों को व्यावसायिक रूप से उद्यमी बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त आवश्यक विभिन्न लाइसेंस जारी करने की प्रणाली को राज्यव्यापी सिंगलविंडो लाइसेंस प्रणाली स्थापित कर सरल बनाया जा सकता है।
लेखक-
डॉ. कुमुद शुक्ला- सहायक आचार्य, कृषि विभाग, गलगोटियाँ विश्वविद्यालय, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
डॉ. मनमीत कौर- सहायक आचार्य, कृषि महाविद्यालय, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, राजस्थान
डॉ. हरदेव राम- व. वैज्ञानिक, सस्य विज्ञान, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा
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