किसान राजघाट नहर परियोजना से निकली सरसर माईनर में रिसाव होने के कारण उन्नाव के कईं किसानों के खेत सूखे-विरान पड़े हैं. खेतों के बंजर होने का कारण भूमि में नमी और आर्द्रता का बढ़ जाना है, जिसकी वजह से फसल की बुवाई नहीं हो पा रही है.
किसान हरीराम लगभग पांच बीघा जमीन में नीलगिरी के पौधे की बुवाई करके आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके है. किसान हरीराम पेशे से व्यापारी हैं लेकिन उनकी खेती में भी खास रूचि है. राजघाट नहर में लगातार लंबे समय तक रिसाव हो जाने से उनके खेत बंजर बन गए. इस समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने नीलगिरी के पौधे लगाए. अपनी मेहनत से उन्होंने नीलगिरी के कुल 500 पौधों को तैयार कर लिया है. यह पेड़ किसानों के लिए एक तरह से वरदान ही साबित हो रहे है.
पेड़ सोखता है पानी
दरअसल नीलगिरी का पौधा मूलतः स्पेन, चीन, आस्ट्रेलिया में अधिक मात्रा में पाया जाता है. यह पौधा प्रतिदिन 70 लीटर भूमि के जल को सोख लेता है. जिस जगह पर नीलगिरि के पौधे को लगाया जाता है वहां पर भूमि की नमी या आर्द्रता में गिरावट आने लगती है. आद्र्ता को बढ़ाने और नमी को रोकने के लिए नीलगिरि के पौधे का ईठक से रोपण किया जाता है.
उपयोग
नीलगिरी के पौधे की बात करें तो यह भू- जल को तो सोखता ही है साथ ही घरेलू उपयोग में इसकी लकड़ियों का इस्तेमाल होता है. इसकी पत्तियों और टहनियों से जो भी तेल निकलता है उसका प्रयोग वैदिक दवाईयों, इत्र के निर्माण और साबुन को बनाने में किया जाता है. नीलगिरी का तेल परिसंचरण को बढ़ाने वाला, सूखी त्वचा और गठिया को ठीक करने वाला होता है. इसे ज्यादा उपयोगी माना जाता है.
कहां उगता है नीलगिरी का पौधा
अगर हम नीलगिरी के विकास की बात करें तो यह समान्य मिट्टी और जलवायु में पाए जाते है. जिन क्षेत्रों में तापमान 30 से 35 डिग्री तक होता है वह नीलगिरी की खेती के लिए बेहद ही उपयुक्त माने जाते है. इस पौधे की खास बात है कि इसका विकास बीजों और कलम दोनों से ही आसानी से किया जा सकता है. यह पौधे आकार में लंबे होते है इसीलिए इनको जमीन में ही रोपा जाता है. इसके उचित विकास के लिए पानी, धूप और हवा की काफी ज्यादा आवश्यकता होती है.
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