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चन्द्रशूर की उपयोगिता एवं दुधारु पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर प्रभाव

परिचयः चंद्रशूर (लेपिडीयम स्टाव्म) एक महत्वपूर्ष आर्युवेदिक जड़ी बूटी है. यह औषधीय पौध बहुत ही तेजी से बढ़ने वाला है, जो कि मिस्र और पश्चिम एशिया का स्थाई पौध है, हांलांकि अब पूरी दुनिया मे इसकी खेती की जा रही है. यह पौध ब्रासीकेसी कुल से सम्बन्ध् रखता है तथा 50-100 से0 मी0 तक की ऊंचाई तक पंहुचता है. इसके बीज व्यवसायिक तौर पर बहुत ही महत्वपूर्ष हैं, जो कि लाल रंग व बेलनाकार के हेते है.

परिचयः चंद्रशूर (लेपिडीयम स्टाव्म) एक महत्वपूर्ष आर्युवेदिक जड़ी बूटी है. यह औषधीय पौध बहुत ही तेजी से बढ़ने वाला है, जो कि मिस्र और पश्चिम एशिया का स्थाई पौध है, हांलांकि अब पूरी दुनिया मे इसकी खेती की जा रही है.  यह पौध ब्रासीकेसी कुल से सम्बन्ध् रखता है तथा 50-100 से0 मी0 तक की ऊंचाई तक पंहुचता है. इसके बीज व्यवसायिक तौर पर बहुत ही महत्वपूर्ष हैं, जो कि लाल रंग व बेलनाकार के हेते है.

अन्य नामः  इसके अन्य नामों में कदरीकी ;असामीसी हालिम ;संस्कृत, चंद्रशूरा हालिम ;बंगाली कौमन करैस ;इंगलिश, एसलियो ;गुजराती चन्द्रशूर ;हिन्दी अलीबिजा, कपिला ;कन्नड ऐलियन ;कशमीरी, असली ;मलयालम अहालिवा, हालिव ;मराठी, चन्द्रसारा, अली विराई ;तामिल, अदित्यालू, अदालू ;तेलगूद हालीम ;उर्दू।

प्राप्ति स्थानः यह पौध यूरोप, फ्रांस, इटली और जर्मनी सहित यूरोप के विभिन्न हिस्सों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है. भारत में यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में इसे व्यवसायिक रूप से उगाया जाता है. यह पौध उष्ण तथा शीतोष्ण भागों में 1500 मीटर की ऊंचाई तक प्राकृतिक रूप में पाया जाता है. हिमाचल प्रदेश में यह पौध, बिलासपुर, मण्डी, हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा तथा सोलन जिला में निचले भागों में पाया जाता है.

रासायनिक तत्वः चन्द्रशूर के पौधे में गलूक्ट्रोपोइओलीन, सिनेपाईन, सिनेपिक एसिड, बिटा,सिटोसटीरोल आदि पाए जाते हैं चन्द्रशूर के बीजों में गलाइकोसाइड पाए जाते हैं. परन्तु बीजों से निकलने वाले तेल में अनुपस्थित होते हैं. पत्तियों में प्रोटिन ;5.8, फैट ;1.0, कैल्शियम ;8.7, फॉस्फेट, आइरन, आयोडीन तथा विटामिन ए पाई जाती है.

औषधीय उपयोगिताः आयुर्वेद में यह गर्म कड़वा, गैलेक्टोगॉग, कामोदिपक के रूप में वर्णित किया गया है. और यह वाट ;वायु एवं कफ को नष्ट करने का दावा करता है.

1. इसके बीज सुजन, अनियमित अवध्यिं और एैस्ट्रोजन की कमी में उपयोग किए जाते हैं.

2. पौधे की ताजी पत्तियों को सलाद के रूप में खाया जाता है और चटनी के रूप में पत्तियों को रोटी के साथ भी खाया जाता है.

3. सर्दी और खांसी लगने पर पूरे पौधे को पीस कर हर चार घण्टों के बाद दिया जाता है.

4. कठिन पेशाब में, बहुत कम पेशाब या पेशाब करने में दिक्कत होने पर पूरे पौधे का काढ़ा बनाकर एक दिन में तीन बार लिया जाता है.

5. हड्डी के टूटने के उपचार में सुधार के लिए अरबी देशों में चन्द्रशूर के बीजों का उपयोग किया जाता है.

6. सूखे बीज का चूर्ण और पत्तियों को चिकित्सीय रूप से मूत्र उत्पादन उत्तेजक श्वास बिमारी ;अस्थमा, ब्रोनकाइटिस, गठिया सूजन का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है.

7. स्त्री प्रसव के उपरांत टॉनिक के रूप में और दुधारू पशुओं में दुग्ध के उत्पाद को बढ़ाता है.

9. दस्त लगने पर चन्द्रशूर के बीज को चूर्ण को चीनी और मीश्री के साथ मिलाकर दिया जाता है.

10. कब्ज और अपच के लक्षणों को दूर करने के लिए भी चन्द्रशूर के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है.

11. चन्द्रशूर के बीज लौहे की कमी वाले अनिमिया से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है. इन बीजों की खप्त समय के साथ हिमोग्लोबिन स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है.

प्रवर्ध्नः  उत्तम निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 6 से 7 हो वो चन्द्रशुर की फसल के लिए उपयुक्त पाई गई है. यह हल्का उसरपन या अम्लीयता भी सहन कर सकता है. खेत को एक से दो बार हल चलाकर समतल करें. इस जड़ी बूटी के बीज बहुत छोटे होते हैं तथा ढेलें होने पर मिट्टी में दब जाते हैं और उग नहीं पाते. चन्द्रशूर की बिजाई 15 अक्तूबर से लेकर 30 नवम्बर तक की जा सकती है. एक एकड़  के लिए बीज की मात्रा 2 कि.ग्रा. तय की गई है. चन्द्रशूर के बीज लगभग 5 से 15 दिनों में मिट्टी में अंकुरित हो जाते हैं. लेकिन सर्म्पित प्रसार मिडिया जैसे कि ओसिस रूट क्यूबस, रैपिड रूटर्स या गरोडन स्टोबल के रूप में 24 घण्टे से 4 दिन में बीज अंकुरित हो सकते हैं.

बीज की संख्या 350 बीज प्रति ग्राम है. पौधें के बीच में 10 से मी तथा लाईनों में 30 से. मी का अन्तर रखा गया है. बीज लगाने के तुरंत बाद फुआरे से सिंचाई करें. यदि एक या दो बार सिंचाई की जाए तो फसल की पैदावार को अध्कि लाभ मिलता है. चन्द्रशुर की फसल 4 महिनों में पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाती है.

पैदावारः एक एकड़ भूमि में 6-7 क्विंटल बीज की उपज प्राप्त होती है.

आय व्ययः कुल आय 1000 - 13000 रूपये प्रति एकड़.

कुल खर्चः 1500-2000 रूपये प्रति एकड़

शुद्ध आय:  9000-11500 रूपये प्रति एकड़

कीट एवं रोग नियंत्राणः यदि पाऊडरी मिल्डयू की शिकायत मिले तो सल्फर डस्ट का प्रयोग करें. फसल कीट, एफिड का प्रकोप हो तो मैलाथियान, एण्डोसल्फान 1 मि. ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

चन्द्रशूर के बीज पशुध्न के दुध् को बढ़ाने के लिए सहायक होता है.कुमार एट.एल 2011 ने पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन महाविद्यालय जबलपुर के पशुफार्म में 28 दुध् देने वाली मूर्रा भैंसों का चयन किया. भैंसों को उनके शरीर के वजन, दुध की पैदावार और स्तनपान के आधर पर चारा समूहों में बांटा गया .

उपचारः  टी, सामान्य राशन ;नियंत्राणद्ध

टी2:   राशन +50 ग्राम चन्द्रशूर बीज पाऊडर

टी3 : सामान्य राशन + 100 ग्राम चन्द्रशूर बीज पाऊडर

टी4 : सामान्य राशन + 150 ग्राम चन्द्रशूर बीज पाऊडर

टी1, टी2, टी3 टी4 समूहों की भैसों में क्रमशः एवरेज ड्राई मैटर ;क्तल उंजजमत पदजांम का सेवन क्रमशः 13.53, 13.80, 13.88 और 14.33 कि.ग्रा. था.

प्रयोग के दौरान भैसों के शरीर के वजन में क्रमशः टी1  1071, टी2 1571, टी3 18.57 और टी4 1071 कि. ग्राम की वृद्धि मापी गई.

टी1, टी2, टी3 और टी4 समूहों की भैसों में पांच महिनों की अवधी में दूध की कुल पैदावार 1178.3, 1232.4, 1240.8 और 1257.9 लीटर थी.

प्रत्येक भैंस को प्रति दिन 100 ग्राम चन्द्रशूर के बीज का पाऊडर देने से दूध की पैदावार में वृद्धि हुई जो की किसानों के लिए लाभदायक साबित हुई. इस शोध से पता चलता है कि चन्द्रशूर को दूधारू पशुओं के आहार में शामिल करने से दूध में कार्बोहाईड्रेड, वसा, प्रोटिन एवं लैकटॉस में वृद्धि होती है. जिससे दूध की गुणवत्ता अच्छी हो जाती है.

निष्कर्षः  चन्द्रशूर एक अत्यंत लाभकारी औषधीय पौध है. जिसका वैज्ञानिक तौर पर कई लाभ देखे गए हैं. यह किसान के लिए उसके पशुओं के दूध की गुणवत्ता की वृद्धि (एवं मनुष्य की कई समस्याओं जैसे खुनी बवासीर, कैंसर, अस्थमा व हड्डी को जोड़ने में बहुत ही लाभदायक हैं.

 

लेखक - 1.कृष्ष लाल गौतम, 2.रोहित वशिष्ट , 3.अरूणा मेहता , 4.विक्रांत    

1 एवं 2 - डिपार्टमेंट ऑफ सिल्वीकल्चर एंड एग्रोफोरेस्ट्री

3 - डिपार्टमेंट ऑफ फोरेस्ट प्रोडक्ट्स

4 - डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी

डॉ. यशवन्त सिंह परमार औद्दानिकी एवं वानिकी विश्वविद्दालय

नौणी (सोलन)- 173230 (हिमाचल प्रदेश)

English Summary: Effect of Chandrashur's usefulness and milk production of milch animals Published on: 08 September 2018, 08:27 AM IST

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