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कम अवधि में पत्तेदार मेथी के उत्पादन से कमाएं ज्यादा मुनाफा

पत्तीदार मेथी का हरी शाक सब्जियों में प्रमुख स्थान है. भारत में पत्तीदार मेथी का उत्पादन सितंबर माह से लगभग पूरे शीतकाल में चलता है. उत्तर भारत में प्राय: खरीफ की फसल कटने के तुरंत बाद इसकी बुवाई की जाती है. ऐसे क्षेत्र जिनमें खरीफ में ज्वार, बाजरे या अन्य चारे वाली फसल ली गई है, गेहूं या अन्य किसी रबी की फसल के उगाने से पहले मेथी उगाकर किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

KJ Staff
Fenugreek Farming
Fenugreek Farming

पत्तीदार मेथी का हरी शाक सब्जियों में प्रमुख स्थान है. भारत में पत्तीदार मेथी का उत्पादन सितंबर माह से लगभग पूरे शीतकाल में चलता है. उत्तर भारत में प्राय: खरीफ की फसल कटने के तुरंत बाद इसकी बुवाई की जाती है.

ऐसे क्षेत्र जिनमें खरीफ में ज्वार, बाजरे या अन्य चारे वाली फसल ली गई है, गेहूं या अन्य किसी रबी की फसल के उगाने से पहले मेथी उगाकर किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. उत्तर भारत में खरीफ की चारे वाली फसलों की अगस्त से सितंबर के प्रथम पखवाड़े तक कटाई करने के पश्चात खेतों को गेहूँ की फसल लेने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है. तथा गेहूँ की फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर से आरंभ करने के लिए लगभग 45 से 50 दिन का समय शेष रहता है. इसी बीच की अवधि में इन क्षेत्रों में मेथी उगाकर एक ओर तो किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं, वहीं दूसरी ओर गेहूं की फसल के लिए खेत की अच्छी तरह तैयारी भी हो जाती है.

मेथी की 35 से 40 दिन की फसल अवधि में 3 बार सिंचाई करनी पड़ती है. अंतिम सिंचाई करने के 4 से 5 दिन बाद मेथी को खेत से उखाड़ कर बाजार में बेच दिया जाता है. मेथी को जमीन से उखाड़ने के उपरांत भूमि में पर्याप्त नमी बनी रहती है जिससे गेहूं की बुवाई हेतु पहले सिंचाई करने की भी आवश्यकता नहीं रहती ओर सीधे एक 1 से 2 बार खेत की जुताई करके गेहूं की बुवाई भी समय से कर दी जाती है. मेथी लेग्युमिनेसी कुल का पौधा होने के कारण इसकी जड़े भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य भी करती हैं. पुष्प आने से पहले हरी चमकदार पत्तियों की बाजार मांग बहुत अधिक है. अतः किसान खरीफ की फसलों की समय से कटाई करने के पश्चात मेथी को आसानी से उगा सकते हैं. अल्प अवधि मे मेथी की फसल सफलतापूर्वक लेने के लिए निम्नलिखित जानकरियों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है.

प्रमुख किस्में

समूचे भारत वर्ष में मेथी की अनेक किस्में उगाई जाती हैं, उत्तर भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्मों का विवरण इस प्रकार है: 

एम एल 150 : इसके पौधे के पत्ते गहरे हरे होते हैं. इसकी पत्तियों की औसतन पैदावार 12 से 13  क्विंटल प्रति एकड़ होती है. 

एच एम 219:  यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इसकी पत्तियों की औसतन पैदावार 15 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है. यह पत्तों के सफेद धब्बे रोग की प्रतिरोधक है.

अन्य व्यापारिक किस्में : कसूरी मेथी-47, सी ओ-1, हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा,  मेथी नंबर- 14, पूसा अर्ली बंचिंग, राजेंद्र क्रान्ति, हरियाणा नंबर 1

मिट्टी

खास बात है कि मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बालू वाली मिट्टी इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होती है. इसमें कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है. बेहतर जल निकास वाली, अच्छी भुभरी मृदा जिसका पी एच मान 6-7 हो, इसके उत्पादन के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है.

बुवाई तथा बीज की मात्रा

मेथी की हरी पत्तियों के अधिक उत्पादन के लिए बीज की मात्रा ज्यादा लगती है. एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 60 किलोग्राम बीज का प्रयोग किया जाता है अधिक बीज की मात्रा के प्रयोग से सघन पौधे उगते हैं जिससे पत्तियों की उपज भी अधिक होती है. बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई करके पाटा लगाकर भूमि को समतल कर लिया जाता है तत्पश्चात छिटकवा विधि से बीज को बिखेर कर मिट्टी मे आची तरह मिला दिया जाता है और एक हल्की सिंचाई कर देते हैं जिससे मृदा में अंकुरण के लिये पर्याप्त नमी बनी रहे.

बीज उपचार

बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें. रासायनिक उपचार के बाद एजोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडर्मा विरीडी 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें.

खरपतवार नियंत्रण

मेथी की फसल की बुवाई के लगभग 15 दिन पश्चात इसमें कई प्रकार के खरपतवार जैसे बिसखपरा, बथुआ इत्यादि घास उग आती है जिनको उखाड़कर खेत से बाहर कर देना चाहिये. खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनों का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए.

सिंचाई

बीजाई के लगभग से 8 से 10 दिन बाद जब पौधों में 4 से 6 पत्तियाँ निकाल आए, दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. तथा जब पौधों की ऊंचाई लगभग 10 से 12 सेमी हो जाये तो अंतिम सिंचाई करनी चाहिए

बीमारियां और रोकथाम

जड़ गलन : फसल को जड़ गलन से बचाने के लिए मिट्टी में नीम केक 60 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें. बीज उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें. यदि खेत में जड़ गलन का हमला दिखें तो इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीकलोराइड 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें.

पत्तों पर सफेद धब्बे : पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. यदि इनका हमला दिखे तो पानी में घुलनशील 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें. यदि दोबारा स्प्रे की जरूरत पड़े तो 10 दिनों के अंतराल पर करें या पेनकोनाज़ोल 10 ई सी 200 मिली को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में छिडकाव करें.

बाजार मांग एवं कीमत

मेथी की पत्तियों को विभिन्न प्रकार के व्यंजनों एवं सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिससे इसकी बाजार मांग बहुत अधिक रहती है. लगभग 12-14 सेमी ऊँचाई के चौड़े, चमकदार पत्तियों वाले पौधों की बाजार मांग एवं कीमत दोनों अच्छी होती हैं. अगेती किस्मों को शीघ्र तैयार करके स्थानीय बाजारों में 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल तक बेचा जा सकता है. पत्तीदार मेथी की सामान्य बाजार कीमत 2000-2500 रुपए प्रति क्विंटल रहती है.    

कटाई एवं उपज

मेथी की कटाई उसकी बाजार मांग के अनुसार की जाती है पौधों को खेत से उखाड़कर, उनको जूट की बारीक रस्सी से गुच्छियाँ बनाकर गठरियों में बांध ली जाती है खेत से पौधों को उखाड़ते समय ध्यान रहे मृदा में पर्याप्त नमी बनी रहे. एक एकड़ खेत से लगभग 15 से 20 क्विंटल हरी मेथी की पत्तियों की पैदावार होती है.

इस प्रकार विशेष समय अवधि को ध्यान में रखकर पत्तीदार मेथी की खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं तथा अपने खेत की मृदा को स्वस्थ भी रख सकते हैं.  

लेखक: अरुण कुमार
राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान, (निआप) पूसा, नई दिल्ली-110012

English Summary: Earn more profits from the production of leafy fenugreek! Published on: 07 December 2020, 05:50 PM IST

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