पेठा विशेष कद्दू से बनाए जाने वाली एक मिठाई है, जिस कारण इसे कद्दू पेठा भी कहा जाता है. इस फल के ऊपर हलके सफेद रंग की पाउडर जैसी परत चढ़ी होती है. इस कद्दू की मांग सब्जियों के लिए बहुत कम होती है और इससे ज्यादतर पेठा ही बनाया जाता है. कद्दू पेठे की खेती सब से ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है. इसके अलावा यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और राजस्थान में भी उगाया जाता है. इसको अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कद्दू की खेती में रोगों के लगने की भी आशंका बहुत रहती है, ऐसे में आज हम आपको इसमें लगने वाले रोगों से रोकथाम के बारे में बताने जा रहे हैं.
लालभृंग-
यह चमकीले लाल रंग का कीट होता है, जो पौधे की पत्तियों को खाकर छलनी कर देता है, जिस कारण इसकी पत्तियाँ ग्रसित होकर फट जाती हैं तथा पौधों का विकास भी रूक जाता है. इससे बचाव के लिए फसल की बुवाई करते समय खरपतवारों को नष्ट कर दें और खेत की जुताई अच्छे से करें. मैलाथियान को 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टर भूमि में मिला दें और कार्बोरिल के घोल के साथ इसका खेतों में छिड़काव करें.
कटवर्म:
यह कीट उगने वाले छोटे पौधों के बीज पत्रों तथा उसके शीर्ष को काट देता है, जिससे खेत में पौधों की संख्या कम हो जाती है. इसके नियत्रंण के लिए ग्रीष्मकालीन समय में खेत की गहरी जुताई कर कीट की निष्क्रिय अवस्थाओं को नष्ट कर दें तथा बीजों की बुवाई या रोपाई के समय कार्बोफ्यूरॉन का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिला दें.
ब्लीस्टर बीटल:
यह आकर्षक चमकीले रंग तथा बड़े आकार का भृंग है. इसके पंखों पर तीन काले व तीन पीले रंग की पट्टियाँ होती हैं. यह पुष्पीय कलियों व फूलों को खाकर नष्ट कर देते हैं. इसके नियंत्रण के लिए खेत में इनकी संख्या कम होने पर इन्हें हाथ से पकड़कर नष्ट कर देते हैं. अगर इनका प्रकोप अधिक हो तो कार्बोरिल का छिड़काव करें.
लीफ माइनर:
यह कीट पत्तियों के ऊपरी भाग पर टेढे-मेढ़े भूरे रंग की सुरंग बना देते है. इन्हें नीम के बीजों के साथ ट्रायोफॉस के मिश्रण को तीन सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव करने से रोगों पर नियत्रण पाया जा सकता है.
फलमक्खी:
यह कद्दूवर्गीय सब्जी फसलों में फल पर आक्रमण करने वाला कीट है. इसके मैगट छोटे फलों में अधिक नुकसान करते है. इसके नियंत्रण हेतु रात के समय खेत में नर वयस्कों को फेरोमेन ट्रेप लगाकर नियंत्रित करें. इसके अलावा थायोडॉन को 6 मिली प्रति लीटर 4-5 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
चैंपा:
ये छोटे आकार के काले एवं गहरे हरे रंग के कीट होते हैं. ये कोमल पत्तियों व पुष्पकलिकाओं का रस चूसते हैं. यह कीट वायरस जनित बीमारियों के वाहक का कार्य करता है. इसके नियंत्रण हेतु डाइमिथिएट या फॉस्फोमिडॉन 0.5 प्रतिशत के घोल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
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जड़ गांठ सूत्रकृमि:
यह पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाता है, इसके प्रभाव से पौधा कमजोर होकर पीला पड़ जाता है तथा पौधे का विकास अवरूद्ध होकर फलन नहीं हो पाता है. इससे बचाव के लिए नेमागॉन अथवा कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 25 किग्रा प्रति हेक्टर को बुवाई के पूर्व खेत में मिला दें.
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